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________________ HERE F EEEEEEEEEEEEEENA हिंसाप्रियता व दूषित गनोवृत्तिः चोरी और लूट की प्रेरक 14701 विउलबलपरिग्गहा य बहवे रायाणो परधणम्मि गिद्धा सए व दव्वे असंतुट्ठा परविसए अहिहंणति ते लुद्धा परधणस्स कज्जे चउरंगविभत्त- बलसमग्गा 卐 णिच्छियवरजोहजुद्धसद्धिय-अहमहमिइ-दप्पिएहिं सेण्णेहिं संपरिवुडा पउम-सगड-卐 ॐ सूइ-चक्क-सागर-गरुलवूहाइएहिं अणिएहिं उत्थरंता अभिभूय हरंति परधणाई।। (प्रश्न. 1/3/सू.63) इनके अतिरिक्त विपुल बल- सेना और परिग्रह-धनादि सम्पत्ति या परिवार वाले ॥ ॐ राजा लोग भी,जो पराये धन में गृद्ध अर्थात् आसक्त हैं और अपने द्रव्य से जिन्हें सन्तोष नहीं - है, दूसरे (राजाओं के) देश-प्रदेश पर आक्रमण करते हैं। वे लोभी राजा दूसरे के धनादि को हथियाने के उद्देश्य से रथसेना, गजसेना, अश्वसेना और पैदलसेना, इस प्रकार चतुरंगिणी 卐 सेना के साथ (अभियान करते हैं)। वे दृढ़ निश्चय वाले, श्रेष्ठ योद्धाओं के साथ युद्ध करने म में विश्वास रखने वाले, मैं पहले जूझंगा, इस प्रकार के दर्प से परिपूर्ण सैनिकों से संपरिवृतॐ घिरे हुए होते हैं। वे नाना प्रकार के व्यूहों (मोर्चों) की रचना करते हैं, जैसे कमलपत्र के आकार का पद्मपत्र व्यूह, बैलगाड़ी के आकार का शकटव्यूह, सूई के आकार का सूचीव्यूह, चक्र के आकार का चक्रव्यूह, समुद्र के आकार का सागर-व्यूह और गरुड़ के आकार का गरुड़व्यूह । इस तरह नाना प्रकार की व्यूहरचना वाली सेना द्वारा दूसरे-विरोधी राजा की सेना को आक्रान्त करते हैं, अर्थात् अपनी विशाल सेना से विपक्ष की सेना को घेर लेते हैं-उस पर 卐 छा जाते हैं और उसे पराजित करके दूसरे की धन-सम्पत्ति को हरण कर लेते हैं-लूट लेते हैं।' 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 卐 {471) णिरणुकंपा णिरवयक्खा गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-' पट्टणासम-णिगम-जणवए य धणसमिद्धे हणंति थिरहियय-छिण्ण-लज्जा-बंदिग्गह गोग्गहे य गिण्हंति दारुणमई णिक्किवा णियं हणंति छिंदंति गेहसंधि णिविखत्ताणि य 卐 हरंति धणधण्णदव्वजायाणि जणवय-कुलाणं णिग्घिणमई परस्स दव्वाहिं जे अविरया। ___ (प्रश्न. 1/3/सू.68) जिनका हृदय अनुकम्पा-दया से शून्य है, जो परलोक की परवाह नहीं करते, ऐसे लोग धन से समृद्ध ग्रामों, आकरों, नगरों, खेटों, कर्वटों; मडम्बों, पत्तनों, द्रोणमुखों, आश्रमों, निगमों एवं देशों को नष्ट कर देते-उजाड़ देते हैं। और वे कठोर हृदय वाले या स्थिरहितनिहित स्वार्थ वाले, निर्लज लोग मानवों को बन्दी बना कर अथवा गायों आदि को ग्रहण EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE अहिंसा-विश्वकोश/203)
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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