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________________ FFFFFFFFFFFFFFFFFFFM यह परिणाम (पूर्वोक्त) प्राणवध (हिंसा)का फलविपाक है, जो इहलोक (मनुष्यभाव)और परलोक (नारकादि भव) में भोगना पड़ता है। यह फलविपाक अल्प ॐ सुख किन्तु (भव-भवान्तर में) अत्यधिक दुःख वाला है। महान् भय का जनक है और ॐ अतीव गाढ़ कर्मरूपी रज से युक्त है। अत्यन्त दारुण है, अत्यन्त कठोर है और अत्यन्त असाता (दुःख) को उत्पन्न करने वाला है। हजारों वर्षों (सुदीर्घ काल) में इससे छुटकारा मिलता है। किन्तु इसे भोगे विना छुटकारा नहीं मिलता। हिंसा का यह फलविपाक ज्ञातकुल-' 卐 नन्दन महात्मा महावीर नामक जिनेन्द्रदेव ने कहा है। यह प्राणवध चण्ड, रौद्र, क्षुद्र और 卐 अनार्य जनों द्वारा आचरणीय है। यह घृणारहित, नृशंस, महाभयों का कारण, भयानक, जत्रासजनक और अन्यायरूप है। यह उद्वेगजनक, दूसरे के प्राणों की परवाह न करने वाला, ॐ धर्महीन, स्नेह-पिपासा से शून्य, करुणाहीन है। इसका अन्तिम परिणाम नरक में गमन करना है अर्थात् यह नरक-गति में जाने का कारण है। यह मोहरूपी महाभय को बढ़ाने वाला और मरण के कारण उत्पन्न होने वाली दीनता का जनक है। {2721 एयाणि सोच्चा णरगाणि धीरे ण हिंसए कंचण सव्वलोए। (सू.कृ. 1/5/2/24) धीर मनुष्य इन नारकीय दुःखों को सुन कर संपूर्ण लोकवर्ती किसी भी प्राणी की हिंसा न करे। 听听听听听听 {273) श्रूयते प्राणिघातेन, रौद्रध्यानपरायणौ। सुभूमो ब्रह्मदत्तश्च सप्तमं नरकं गतौ ॥ (है. योग.2/27) (आगम में) ऐसा सुना जाता है कि प्राणियों की हत्या से रौद्रध्यानपरायण हो कर सुभूम और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती सातवीं नरक में गए। FRELELELELELEBEDELEMEDEVELELELELELELELEUELEUEUEUELELEUEUEUELOUD [जैन संस्कृति खण्ड/124
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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