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________________ 卐ya {196) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ॥ (उपासका. 23/282) जो काम स्वयं के लिए प्रतिकूल हों, दुःखकारक हों, उन कामों को दूसरों के के 卐 लिए भी नहीं करना चाहिए। {1971 明明明明明明明明明 हिंसादिदोसमगरादिसावदं दुविहजीवबहुमच्छं। जाइजरामरणोदयमणेयजादीसदुम्मीयं ॥ (भग. आ. 1765) उस संसार-रूपी समुद्र में हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म और परिग्रहरूपी मगर आदि क्रूर जन्तु रहते हैं। स्थावर और जंगम जीवरूप बहुत से मच्छ हैं। जाति अर्थात् नया शरीर धारण करना, जरा अर्थात् वर्तमान शरीर के तेज-बल आदि में कमी होना, मरण अर्थात् 卐 शरीर का त्याग। ये जाति, जरा, और मरण उस (समुद्र) के उठाव हैं तथा अनेक जीव卐 जातियां/उपजातियां उसमें तरंगें हैं। % 明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 % %%%% (198) सव्वे वि य संबंधा पत्ता सव्वेण सव्वजीवेटिं। . तो मारंतो जीवो संबंधी चेव मारेइ॥ ___ (भग. आ. 792) सब जीवों के साथ सब जीवों के सब प्रकार के सम्बन्ध पूर्वभवों में रहे हैं। अतः उनको मारने वाला अपने सम्बन्धी को ही मारता है और सम्बन्धी को मारना लोक में अत्यन्त ॐ निन्दित माना जाता है। %%%%%% (199) रुट्ठो परं वधित्ता सयंपि कालेण मरइ जंतेण । हदघादयाण णत्थि विसेसो मुत्तूण तं कालं॥ (भग. आ.796) क्रोधी मनुष्य दूसरे को मार कर समय आने पर स्वयं भी मर जाता है। अतः मरनेवाले और मारने वाले में काल के सिवाय अन्य भेद नहीं है। पहले वह जिसे मारता है वह 卐 मरता है और पीछे स्वयं भी मरता है। YESHIYEFESTERESTERESENTERNESSFET [जैन संस्कृति खण्ड/92
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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