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________________ %%%% %%%% FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEE 7. मारणा (मारणा)- हिंसा मरण को उत्पन्न करने वाली होने से मारणा है। 8. वहना (वधना)- हनन करना, वध करना। 9. उद्दवणा (उपद्रवणा)- अन्य को पीड़ा पहुंचाने के कारण यह उपद्रवरूप है। ___ 10. तिवायणा (त्रिपातना)- वाणी एवं काय अथवा देह, आयु और इन्द्रिय- इन है तीन का पतन कराने के कारण यह त्रिपातना है। इसके स्थान पर 'निवायणा' पाठ भी है, किंतु अर्थ वही है। 11. आरंभ-समारंभ (आरम्भ-समारम्भ)- जीवों को कष्ट पहुंचाने से या कष्ट 卐 पहुंचाते हुए उन्हें मारने से हिंसा को आरम्भ-समारम्भ कहा है। जहां आरम्भ-समारम्भ है, 卐 वहां हिंसा अनिवार्य है। 12. आउयक्कम्मस्स-उवद्दवो- भेयणिट्ठवणगालणा य संवट्टगसंखेवो (आयुःकर्मणः उपद्रवः- भेदनिष्ठापनगालना-संवर्तकसंक्षेपः)- आयुष्य कर्म का उपद्रवण म करना, भेदन करना अथवा आयु को संक्षिप्त करना- दीर्घकाल तक भोगने योग्य आयु को अल्प समय में भोगने योग्य बना देना। 13. मच्चू (मृत्यु)- मृत्यु का कारण होने से अथवा मृत्यु रूप होने से हिंसा मृत्यु है। ____ 14. असंजमो (असंयम)- जब तक प्राणी संयमभाव में रहता है, तब तक हिंसा म नहीं होती। संयम की सीमा से बाहर- असंयम की स्थिति में ही हिंसा होती है, अतएव वह ॐ असंयम है। 15. कडगमद्दण (कटकमर्दन)- सेना द्वारा आक्रमण करके प्राणवध करना अथवा सेना का वध करना। 16. वारमण (व्युपरमण)- प्राणों से जीव को जुदा करना। 17. परभवसंकामकारओ (परभवसंक्रमकारक)- वर्तमान भव से विलग करके परभव में पहुंचा देने के कारण यह परभवसंक्रमकारक है। 18. दुग्गतिप्पवाओ (दुर्गतिप्रपात)- हिंसा नरकादि दुर्गति में गिराने वाली है। - 19. पावकोव (पापकोप)- हिंसा पाप को कुपित- उत्तेजित करने वाली-भड़काने * वाली है। 20. पावलोभ (पापलोभ)- हिंसा पाप के प्रति लुब्ध करने वाली- प्रेरित करने वाली है। 21. छविच्छेअ (छविच्छेद)- हिंसा द्वारा विद्यमान शरीर का छेदन होने से यह ॥ छविच्छेद है। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 LEADLALALALALALALALALALALALALELETELELELELELELELELELELELELELENA अहिंसा-विश्वकोश/87]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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