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________________ 卐 हिंसा प्रत्येक प्राणी के लिए भय का कारण है। अतएव प्रतिभय है- 'प्रतिप्राणि भयनिमित्तत्वात्।' हिंसा प्राणवध (मृत्यु) स्वरूप है। प्राणिमात्र को मृत्युभय से बढ़कर अन्य कोई भय नहीं है। अतिभयं- मरण से अधिक या मरण के समान अन्य कोई भय नहीं अत: 卐 इसे 'अतिभय' भी कहा जाता है। (12) वीहणअ- भय उत्पन्न करने वाली हिंसा होती है। (13) त्रासनक- हिंसा दूसरों को त्रास या क्षोभ उत्पन्न करने वाली है। (14) अन्याय्य- नीतियुक्त न होने के कारण वह हिंसा अन्याय्य है। (15) उद्वेगजनक- हिंसा हृदय में उद्वेग- घबराहट उत्पन्न करने वाली है। 卐 (16) निरपेक्ष- हिंसक प्राणी अन्य प्राणों की अपेक्षा-परवाह नहीं करता-उन्हें तुच्छ समझता है। प्राणहनन करना उसके लिए खिलवाड़ होता है। अतएव उसे निरपेक्ष कहा गया है। (17) निर्द्धर्म- हिंसा धर्म से विपरीत है। भले ही वह किसी लौकिक कामना की 卐 पूर्ति के लिए, सद्गति की प्राप्ति के लिए अथवा धर्म के नाम पर की जाए, प्रत्येक स्थिति में वह अधर्म है, धर्म से विपरीत है। अर्थात् हिंसा त्रिकाल में भी धर्म नहीं हो सकती। (18) निष्पिपास- हिंसक के चित्त में हिंस्य के जीवन की पिपासा-इच्छा नहीं 卐 होती, अत: हिंसा निष्पिपास कहलाती है। (19) निष्करुण- हिंसक के मन में करुणाभाव नहीं रहता- वह निर्दय हो जाता है, अतएव हिंसा निष्करुण है। . (20) नरकवासगमन-निधन- हिंसा नरकगति की प्राप्ति रूप परिणाम वाली है। 卐 (21) मोहमहाभयप्रवर्तक- हिंसा मूढ़ता एवं परिणाम में घोर भय को उत्पन्न 卐 卐 करने वाली प्रसिद्ध है। (22) मरणवैमनस्य- मरण के कारण जीवों में उससे विमनस्कता उत्पन्न होती है। 卐 उल्लिखित विशेषणों के द्वारा सूत्रकार ने हिंसा के वास्तविक स्वरूप को प्रदर्शित 卐 ॐ करके उसकी हेयता प्रकट की है। 出听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听作 अहिंसा-विश्वकोश/851
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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