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________________ FEAFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFAR {169) पुरिसे णं भंते! अन्नयरं तसपाणं हणमाणे किं अन्नयरं तसपाणं हणइ, नोअन्नयरे ॥ 卐तसे पाणे हणइ? गोयमा! अन्नयरं पि तसपाणं हणइ, नोअन्नयरे वि तसे पाणे हणइ। (व्या. प्र. 9/34/5(1)) [प्र.] भगवन् ! कोई पुरुष किसी एक त्रस प्राणी को मारता हुआ क्या उसी त्रस म प्राणी को मारता है, अथवा उसके सिवाय अन्न त्रस प्राणियों को भी मारता है? [उ.] गौतम! वह उस त्रस प्राणी को भी मारता है और उसके सिवाय अन्य त्रस प्राणियों को भी मारता है। म % %%%%%%%%%% {170) से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'अन्नयरं पि तसपाणं [हणति] नोअन्नयरे वि 卐 तसे पाणे हणइ'? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ- एवं खलु अहं एगं अन्नयरं तसं पाणं हणामि, से卐 ॐणं एगं अन्नयरं तसं पाणं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ। ते तेणटेणं गोयमा! तं चेव। एए । सव्वे वि एक्कगमा। (व्या. प्र. 9/34/5 (2)) [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से आप ऐसा कहते हैं कि वह पुरुष उस त्रस जीव को भी ॐ मारता है और उसके सिवाय अन्य त्रस जीवों को भी मार देता है। [उ.] गौतम! उस त्रस जीव को मारने वाले पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि एक त्रस जीव को मार रहा हूं, किन्तु वह उस त्रस जीव को मारता हुआ, उसके सिवाय अन्य अनेक त्रस जीवों को भी मारता है। इसलिए, हे गौतम! पूर्वोक्तरूप से जानना चाहिए। इन सभी का एक समान पाठ (आलापक) है। {171) परिसे णं भंते ! इसिं हणमाणे किं इसिं हणइ, नोइसिं हणइ? गोयमा! इसिं पि हणइ नोइसिं पि हणइ। (व्या. प्र. 9/34/6(1)) [प्र.] भगवन्! कोई पुरुष, ऋषि को मारता हुआ क्या ऋषि को ही मारता है, अथवा मनोऋषि को भी मारता है। [ [उ.] गौतम! वह (ऋषिको मारने वाला पुरुष)ऋषि को भी मारता है, नो-ऋषि 卐 को भी मारता है। E EEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/14 N
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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