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________________ GreeGE म प्रमोदभावना ॥ गुणीजनों को देखकर प्रसन्नता का एहसास करना। शीलयुक्त तपस्वी, दानी आदि गुणों से युक्त व्यक्ति को देखकर अनुमोदना करनी। हमारे से उपर, आगे बढ़े हुए गुणीजन को देखकर आनंद विभोर होना चाहिये। ईर्ष्या तथा निंदा करने से गुण चले जाते है। अवगुण प्रगट होते है। जीवन में अच्छा सुनना, अच्छा देखना और अच्छा बोलना चाहिए गुणवान व्यक्ति तथा दानी तपस्वी आदि मिलने पर विचारना कि मुझे भी ऐसी शक्ति कब मिले ? प्रमोद भावना युक्त सामने वाले व्यक्ति के गुणों को देखेगा। खराब सुनना बंद करें। खराब देखना बंद करें। खराब बोलना बंद करें। कृष्ण गुणानुरागी थे अतः मरे हुए सुअर की दुर्गध से परेशान लोगों के बीच में भी सुअर के उजवल दाँतों की तारिफ करी ।
SR No.016126
Book TitleAdhyatmik Gyan Vikas Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherRushabhratnavijay
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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