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________________ इंद्रवाह प्राचीन चरित्रकोश इरावती इंद्रवाह--(सू. इ.) विकुक्षि का पुत्र । ककुत्स्थ इंद्राभ-(सू. दिष्ट.)। धृतराष्ट्र का पुत्र । वैचित्रवीर्य इसका नामांतर है। धृतराष्ट्र का पुत्र नहीं है। __इंद्रसख-(सो. अज.) वायु के मतानुसार कृत | | इंद्रोत--यह सुदास का पुत्र होगा (ऋ. ८. ६८. राजा का पुत्र । इसे चैद्योपरिचर ऐसा दूसरा नाम भी है। १७)। यहाँ प्रियमेध अंगिरस ने दाता रूप में इसकी. (उपरिचर वसु देखिये)। स्तुति की है। अतिथिग्व के साथ भी इसका संबंध प्रतीत इंद्रसावर्णि-एक मनु (मनु देखिये)। होता है। इंद्रसेन--(स्वा. प्रिय.) ऋषभदेव तथा जयंती का | २. वृषशुष्ण का शिष्य । इसका शिष्य दृति (वं. ब्रा. पुत्र। २. ( सू. नरिष्यंत.) कूर्च राजा का पुत्र । इसका पुत्र | ३. (सो.) पांचाल वंशीय दिवोदास का पुत्र । वीतिहोत्र। ३. (सो. नील.) ब्रह्मिष्ठ का पुत्र । इसका पुत्र विंध्याश्व । । इंद्रोत देवाप शौनक--इसने जनमेजय के अश्वमेध ४. (सो. कुरु.) दूसरे जनमेजय का पुत्र (म. आ. | यज्ञ में पौरोहित्य किया था (श. ब्रा. १३.५.३.५, ४.१; ८९.४८)। सां. श्री. १६.७.७; ८.२७)। जनमेजय का पुरोहित तुर ५. सुतल का दैत्य (भा. १०.८५.५२)। कावषेय था (ऐ. ब्रा. ८.२१) यह श्रुतय का शिष्य (जै. ६. युधिष्ठिर का सारथि। उ. ब्रा. ३.४०.१)। यह भृगुकुल का था। इसने जनमे७. पांडव का दूत (म.स. १२.३०.३०.३० व २५३. जय को गार्ग्य मुनि के शाप से अश्वमेध करवा के मुक्त १०; स्त्री. २६.२५)। इसे पांडवों ने द्वारका भेजा था | किया (म. शां. ४६.२; ब्रह्म. १२; ह. वं. २.१३)। (म. वि. ४.३)। इरा-४ इला देखिये। ८. नल राजा का पुत्र (म. व. ५७.२१)। २. एक अप्सरा (म. स. १०.११)। . ९. कौरवपक्षीय एक क्षत्रिय (म. द्रो. १३१.८५)। ३. दक्ष तथा असिक्नी की कन्या। यह कश्यप की १०. माहिष्मती का राजा । नारद के कथनानुसार | पत्नी । लता, अलता, वीरुधा इसकी कन्यायें हैं। . आश्विन कृष्ण की इंदिरा एकादशी का व्रत कर इसने अपने यमलोक में रहनेवाले पिता को स्वर्ग पहुँचाया (प. उ. इरावत्-पंडुपुत्र अर्जुन को ऐरावत नाग की स्नुषा ५८)। उलूपी से उत्पन्न पुत्र । इसका बाल्यकाल नागलोक में ही इंद्रसेना-नल राजा को दमयंती से उत्पन्न कन्या बीता। आगे चल कर इसका अपने चाचा (ऐरावत (म. व. ५३-१०)। नाग का दूसरा पुत्र अश्वसेन) के साथ हमेशा झगड़ा २. पांचालवंशीय ब्रहिष्ठ राजा की पत्नी तथा वयश्व होने लगा तथा अश्वसेन ने इसे भगा दिया। अर्जुन उस की माता । ब्रह्मिष्ठ मुद्गल का नाम होगा। ऋग्वेद में समय देवलोक में इन्द्र के पास , गया हुआ था। तब मुद्गलानी इन्द्रसेना का उल्लेख है। उसका पिता भर्म्यश्वपुत्र इरावान् स्वर्ग में अर्जुन के पास गया । वहाँ दोनों पितापुत्र मुद्गल ही है (ऋ. १०.१०२.२; मुद्गल देखिये)। । का मिलन हुआ। भारतीययुद्ध में इरावान् ने काफी ३. बाभ्रवी इसका पैतृक नाम है । यह नरिष्यन्त की पराक्रम कर के कौरवसेना को थका दिया। इसने शकुनि पत्नी तथा दम की माता ( ३ वपुष्मत् तथा ३ मौद्गल्य | के छः भाइयों का वध किया। परंतु आगे चल कर वह देखिये)। नरिष्यन्त के वध के पश्चात् यह सती गयी। | आश्यशाग नामक राक्षर आयशंगि नामक राक्षस के हाथों मारा गया (म. भी. इंद्रस्नुषा–यह एक ऋचा की द्रष्टी है (ऋ. १०. । ८६.७०%; वृषक देखिये)। २८.१)। इरावती-अर्जुनपौत्र परीक्षित् राजा की पत्नी। यह इंद्रस्पृश-(स्वा.) ऋषभ को जयंती से उत्पन्न | विराटपुत्र उत्तर की कन्या । पुत्र। । २. ब्रह्मदेव ने मार्तड का गर्भ द्विधा किया। उसका बल इंद्राणी-ऋग्वेद में इसकी अनेक ऋचायें है (ऋ. | इसने नाभि के पास रखा । इससे उसे चार पुत्र हुए। वे १०.८६.२, ६)। पुत्रेच्छा से गौरीव्रत करते ही, इसे | अंजन, ऐरावत, कुमुद तथा वामन दिग्गज हैं (ब्रह्मांड. ३. जयंत पुत्र हुआ (भवि. ब्राह्म. २२; शची देखिये)। । ७.२.९२)। इरावती का विस्तृत वंश ब्रह्मांड में है तथा ७६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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