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इंद्रजित्
प्राचीन चरित्रकोश
इंद्रद्युम्न
विभीषण की भर्त्सना-बिभीषण ने रावण को सलाह | उसे रोकने के लिये कहा। बिभीषण के कारण यह सारा दी कि, सीता को राम के पास पहुंचा कर राम से मित्रता हो रहा है यह जान कर, इंद्रजित् उसका वध करने के कर लें। यह बात किसी को नहीं रुची । उस समय इंद्रजित् लिये प्रवृत्त हुआ। स्वकीयों से युद्ध करने प्रवृत्त हुए ने बिभीषण की बहुत भर्त्सना की । इस पर विभीषण ने | बिभीषण की उसने निर्भर्त्सना की। इंद्रजित् को युद्ध से परावृत्त होने का उपदेश दिया। । वय--यह संवाद चल ही रहा था कि, लक्ष्मण ने
नागपाश---सीता की खोज लगाने पर मारुति | बीच में पड़ कर इंद्रजित् से युद्ध चालू कर दिया । पहले किष्किंधा गया। रामचंद्रजी सुग्रीव की वानरसेनासहित | सारथी को मार गिराया। तब इंद्रजित् स्वतः सारथ्य लंका आये तब इंद्रजित् ही प्रथम युद्ध करने आगे आया। तथा युद्ध दोनों करने लगा। उसी समय प्रमाथी, रभम, अंगद से उसका युद्ध हुआ, जिसमें यह अदृश्य हो कर शरभ तथा गंधमादन इन चार वानरों ने इसके चार घोडे लड़ता रहा तथा रामलक्ष्मण को नागपाश में बांध कर, | मार डाले । तब इंद्रजित् दूसरे रथ पर बैठ कर आया देख सारी वानर सेना को मार्छत कर लंका चला गया (वा. । बिभीषण ने लक्ष्मण को सावधानी से युद्ध करने को कहा। रा. यु. ४५)।
इंद्रजित तथा लक्ष्मण का घमासान युद्ध तीन दिनों तक __ युद्ध-देवांतक, नरांतक आदि रावणपुत्र, कुंभकर्ण,,
हुआ। इंद्रजित मरता नहीं है इसलिये लक्ष्मण ने ऐंद्रास्त्र महापाव, महोदर इ. जब मारे गये, तब रावण बहुत |
हाथ में ले, प्रतिज्ञा की कि यदि श्रीराम धर्मात्मा तथा दुखित हुआ। उस समय इंद्रजित् उसे सांत्वना दे कर |
सत्य प्रतिज्ञ होंगे, तो इस बाण से इंद्रजित् मरेगा । यह युद्ध करने चल पड़ा। पहले यह शस्त्रास्त्रों को अभिमंत्रित कह कर लक्ष्मण ने अस्त्र छोड़ा जिससे इंद्रजिन् कां किरीटकरने निकुंभिला गया । युद्धभूमि पर आ कर राम की
| कुंडलयुत सिर जमीन पर आ गिरा (म. व. २७२सेना को गुप्त रूप से कष्ट देने लगा तथा इस युद्ध में
| २७३)। राक्षस सेना पीछे हट गयी तथा भाग कर लंका उसने सडसठ करोड़ वानरों को एक प्रहर में मार डाला
में जा इंद्रजित् की मृत्यु का समाचार रावण को दिया। राम एवं लक्ष्मण को मूछित कर, लंका वापस चला
वानरों ने उसका सिर उठा लिया और राम को दिखाने गया (वा. रा. यु. ७३)।
के लिये सुबल पर्वत की. ओर ले गये (वा..रा. यु. . मायावी युद्ध-मकराक्ष की मृत्यु के बाद, रावण ने ८६-९२) । सासससुर की आज्ञा से इंद्रजित् की स्त्री इसे फिर से. युद्ध करने के लिये भेजा। राम की सेना | सुलोचना ने सहगमन किया (आ. सार. ११)। को बहुत कष्ट दिये । मायावी सीता को निर्माण कर उसे २. दनुपुत्र दानवों में से एक । रथ पर बैठाया, जो दीनवाणी में राम राम कह रही थी।
इंद्रजिह्व--रावणपक्ष का राक्षस (वा. रा. सु. ६)। फिर उसका उसने वध किया, जिससे राम तथा अन्य इंद्रतापन--कश्यप तथा दनु का पुत्र ।। लोग दुखित हुए. (वा. रा. यु.८१)।
२. वरुण की सभा का एक असुर (म. स. ९)। दिव्यस्थ--बिभीषण ने सबको सांत्वना दी कि, यह ____ इंद्रदत्त--एक स्मृतिकार ) इसने इंद्रदत्त स्मृति की सारी घटना मायावी है। तत्पश्चात् इंद्र जित् निकुंभिला | रचना की हैं (C.C.)। जा कर हवन करने लगा। इस कार्य में कोई विघ्न इंद्रद्यम्न-एक राजर्षि (म. स. ८.१९) । पुण्य उपस्थित न हो इसलिये उसने बहुत से राक्षसों को रक्षा | समाप्त हो जाने के कारण मृत्युलोक में आया, तथा करने को रखा । बिभीषण की सूचनानुसार रामचंद्रजी ने | अपनी कीर्ति नष्ट हुई या नहीं, यह जानने के लिये मार्कलक्ष्मण तथा हनुमान को, वानर मेना दे कर, निकुंभिला | डेय, हिमालय पर रहनेवाले प्रावारकर्ण उलूक, इंद्रद्युम्न भेजा । उन लोगों ने राक्षसोंका संहार कर यज्ञभंग किया। सरोवर के नाडीजंघ बक तथा उसी सरोवर में रहनेवाले इंद्रजित् का यज्ञ पूर्ण होनेवाला ही था अतः उसने अपार कछवे की तरह के एक से एक वृद्ध लोगों के ध्यान नहीं दिया, परंतु जब वानरों ने उसके शरीर को | पास जा कर उसकी कीर्ति उन्हें मालूम है या नहीं यह छिन्नविच्छिन्न करना प्रारंभ किया, तब विवश हो कर वह | पूछा । अंत में अकृपार कछुवे ने बताया कि, इंद्रद्युम्न की क्रोधित हो कर उठा, तथा वानरों को उसने मार भगाया। कीर्ति एक बडे यज्ञकर्ता के नाते प्रसिद्ध है। कीर्ति के रहते, अदृश्य होने के लिये यहाँ उसका वटवृक्ष था। उस बाजू एक मनुष्य का अस्तित्व रहता है यह बताने के लिये वह जाने लगा, तब बिभीषण ने हनुमानादि वानरों को | मार्कंडेय ने यह कथा पांडवों को सुनाई (म. व. १९१)।
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