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इंद्र
प्राचीन चरित्रकोश
बतायी । तब उसने इनकी नियुक्ति विभिन्न वायुओं पर ने गोवर्धनयाग करा कर इंद्र का अपमान किया करवा ली, तथा बंधुभाव से उनसे व्यवहार करने का (भा. १.३-२८; १०. २५. १९; ब्रह्म. १८८)। वचन ले कर इसे छोड दिया (मरुत् देखिये; मत्स्य. अर्जुन से मिल कर दिव्यास्त्र प्राप्त कर लेने को कहा (म. ७-८)। दिति ने वज्रांग नामक पुत्र उत्पन्न कर, उसे व. ३९.४३)। कर्ण के शरीर पर कवच कुंडल होने के इंद्र को मारने भेजा । उसने इंद्र को बांध कर लाया तथा कारण वह अजिंक्य तथा अवध्य है ऐसा जान कर ब्राह्मणउसे मारने वालाही था कि, ब्रह्माजी ने बीच में पड़ कर | रूप से उसके पास जा, उसकी दानशूरता से संतुष्ट हो मधुर शब्दों द्वारा उसे रोका ( वज्रांग देखिये)। मेघनाद कर, उसे इसने एक अमोघ शक्ति दी (कर्ण देखिये)। ने इंद्र को पराजित किया (इंद्रजित् देखिये)। सारे देवता इंद्र को छोड कर दूसरे को इंदद दे रहे हैं इंद्रने वज्रांग स्त्री वांगी को कष्ट दिये। इसलिये
यह देख इंद्राणी ने बृहस्पति को शाप दिया कि, तेरे जीते वज्रांग ने उससे तारक नामक पुत्र उत्पन्न कर, उसे इंद्र
जी इंद्र तेरी स्त्री से एक पुत्र उत्पन्न करेगा। इस कृत्य के पर आक्रमण करने भेजा। उसने इंद्र से बहुत समय तक
कारण गुरुपत्नी समागम का इसे दोष लगा ( स्कंद. १.१. युद्ध किया। इंद्र ने जंभासुर को पाशुपतास्त्र से मारा। तारक ने सब देवताओं को बांध कर लाया वाकी लोगों ने इस पातक का क्षालन मृत्यु के सिवा होना संभव बंदरों का रूप धारण किया। उनके हावभावों से संतुष्ट हो
नहीं इस लिये, मृत्यु होने तक पानी में डूब कर रहने के कर, तारक ने सब देवताओं को छोड़ दिया। इसी समय लिये बृहस्पति ने कहा (स्कंद. १.१.५१.)। .. तारक ने इंद्रपद का उपभोग लिया था (कंद १.१. पुराणों में स्थान-पुराणों में इंद्र को प्रथम स्थान नहीं १५-२१)। गौतम की स्त्री अहल्या ने उत्तंक को सौदास है परंतु त्रिमूर्ति के पश्चात् है। यह अंतरिक्ष तथा पूर्व राजा के पास से कवचकुंडल लाने को कहा। राह में दिशा का राजा है । यह बिजली चलाता तथा फंफता है, इंद्र ने वृषभारुढ पुरुष के रूप में उसे दर्शन दिया। उत्तक इंद्रधनुष सज्जित करता है । सोम रस के लिये इसे तीव्र को वृषभ का पुरीषपान करने को कहा। उत्तंक को नाग- आसक्ति है । असुरों से युद्ध करता है । असुरों का इसे लोक में अश्वारोही बन कर फिर से दर्शन दिये। अश्व भय लगा रहता है। का अपानद्वार उससे पुंकवाकर वासुकि आदि नागों को अधिकार--यह रूपवान है । श्वेत अश्व या हार्थी पर शरण ला कुंडल फिरसे प्राप्त करा दिये । गुरु के घर वज्र धारण कर सवारी करता है। प्रत्यक्ष रूप से इसकी जल्दी पहुंच जावे इसलिये इंद्र ने उत्तंक को वही घोडा पूजा नहीं होती है । शक्रध्वजोत्थान त्यौहार में इसकी दिया जिसके कारण क्षणार्ध में वह गुरुगृह पहुंच गया। पूजाविधि हैं। इसका निवासस्थान स्वर्ग, राजधानी इस कथा में वृषभ माने अमृतकुंभ तथा उसका पुरीष, अमरावती, राजवाडा वैजयंत, बाग नंदन, गज ऐरावत, अमृत है । वह पुरुष इंद्र एवं अश्व अग्नि है (म. आ. घोडा उच्चैःश्रवा, रथ विमान, मारथि मातली, धनुष्य ३) । सुमुख को इसने पूर्णायु किया इसलिये गरुड उस शक्रधनु एवं तलवार परंज है ।। पर नाराज हुआ। विष्णुजी की मध्यस्थता ने इस का पक्ष
। परस्पर संवाद-बृहस्पति ने बताया कि, सब गुणों का सम्हाला गया (गरुड देखिये)। एक बार इंद्र तथा सूर्य अंतर्भाव साम में होता है (म. शां. ८५.३ कु.) उसका भ्रमण कर रहे थे। तब एक सरोवर में स्नान करने के
उपयोग शत्रु के साथ करना चाहिये (म. शां. १०४)। कारण, स्त्री बने ऋक्षरज पर यह मोहित हुआ तथा उसके प्रह्लाद ने अपने शीलबल से इंद्रपद फिर प्राप्त किया। केशों पर इन्द्र का वीर्य जा गिरा। इस कारण तत्काल एक उस समय इंद्र ने मोक्षप्राप्ति का श्रेष्ठ उपाय बताया। पुत्र उत्पन्न हुआ। वही वाली है (वालिन् देखिये)।राम
इससे भी श्रेष्ठ ज्ञान है ऐसा शुक्र ने बताया तथा उससे रावण युद्ध के समय जब रावण रथारूढ हो कर आया भी अधिक श्रेष्ठ शील है ऐसा प्रह्लाद ने बताया (म. शां. तब इन्द्र ने सारथीसहित अपना रथ भेजा था (म. व. १२४-१२९ कुं.)। इसका एक बार महालक्ष्मी से संवाद २७४)।
हुआ (म. शां. २१८ कु.)। नमुचिमुनि ने भगवान के __यह दमयंती के स्वयंवर में गया था (म. व. ५१; नल | चिंतन से मिलनेवाला श्रेय इसे बताया (म. शा. २१६)। देखिये)। इन्द्र के प्रसाद से कुंती को अर्जुन उत्पन्न हुआ। इसका महाबलि से भी संवाद हुआ था (म. शां. २१८ (म. आ. ९०.६९)। नंदादि गोप लोगों द्वारा कृष्ण । कुं.)। मांधाताने इसे राजधर्म बताया (म. शां. ६४ कुं.)।
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