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प्राचीन चरित्रकोश
वयस्य
वन-(सो. अनु.) एक राजा, जो भागवत के | एवं शंकुकर्ण नामक दो पुत्र थे (म. आ. ४०.८, ९०. अनुसार उशीनर राजा का पुत्र था । इसे 'नववत् ' एवं | ९४)। 'नर' नामान्तर प्राप्त थे।
| वपुष्मत्--स्वायंभुव मनु के पुत्रों में से एक । वनजात-(सो. विदू.) एक राजा, जो मत्स्य के २. धर्मसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक। अनुसार हृदीक राजा का पुत्र था।
३. एक राजा, जो विदर्भराज संक्रंदन राजा का पुत्र था। वनस्पति--घृतपृष्ठ राजा के सात पुत्रों में से एक | सुविख्यात दिष्टवंशीय राजा दम के साथ इसका शत्रत्व (भा. ५.२०.२१)।
था। दशार्ण देश के राजा चारुवर्मन् की कन्या सुमना का वनायु--एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के दस |
के दम दम ने हरण किया, जिस कारण दप से इसका शत्रुत्व प्रधान पुत्रों में से एक था।
बढता ही गया। २. पुरूरवस् राजा को उर्वशी से उत्पन्न छः पुत्रों में |
___ कालोपरान्त दम से बदला लेने के लिए, इसने उसके से एक पुत्र । अन्य पाँच पुत्रों के नाम निम्न प्रकार थे:- | पिता नरिष्यन्त का वध किया । पश्चात् दम की माता आयु, धीमत् , अमावसु, दृढायु एवं शतायु (म. आ.
इंद्रसेना ने अपने पति नरिष्यन्त के मृत्यु की बात उसे ७०.२२)।
कह दी, एवं स्वयं पति के साथ सती हो गई। वनाह-एक यादव राजा, जो वायु के अनुसार हृदीक
माँ एवं पिता की मृत्यु की बात सुन कर दम अत्यधिक
क्रुद्ध हुआ, एवं उसने इस पर आक्रमण कर के इसका वध राजा का पुत्र था।
किया। पश्चात् उसने इसके रक्त से पितृतर्पण किया, एवं वनेन--प्रसूत देवों में से एक ।
| इसके ही मांस से पिंडदान कर, राक्षसकुलोत्पन्न ब्राह्मणों वनेयु--(सो. पुरूरवस्) एक राजा, जो भागवत, | को खाने के लिए दिया (मा. १३३: सुमना देखिये)। वायु एवं विष्णु के अनुसार रौद्राश्व राजा का पुत्र था।
| वपुष्मती--सिंधुराज की कन्या, जो मरुत्त राजा की इसकी माता का नाम मिश्रकेशी था। मत्स्य में इसे
२० पत्नी थी (मार्क. १२०.४७)। विनेयु कहा गया है।
२. स्कंद की अनुचरी एक मातृका। । इसके निम्नलिखित नौ भाई थे:- ऋचेयु, कक्षेयु वप्रिन--द्वापरयुगों में उत्पन्न अट्ठाईस व्यासों में से कृकणेयु, स्थण्डिलेयु, वनेयु, तेजेयु, स्थलेयु, धर्मयु एवं एक (व्यास देखिये)। संतनेयु (म. आ. ८९.९-१०)।
वमक--तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । वंदन-एक ऋषि, जिस पर अश्वियों की कृपा थी। सोमयज करनेवाला जति नियों यह जब कुएँ में गिरा था, तब अश्वियों ने इसे बाहर की कृपा थी (ऋ. १.५१.९, ११२.१५, १०.९९.५)। निकाला (ऋ. १.११६.११,११७.५:१०.३९.८)। पुराना वम्र वैखानस--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.९९.
4 जिस प्रकार नया बनाया जाता है, उसा प्रकार आश्वया १२)। ऋग्वेद के इसी सूक्त में अन्यत्र इसका निर्देश बम्र ने इसे तरुण बनाया (ऋ.१. ११९.७); इसकी आयु एवं वनक नाम से किया है, एवं इसे इंद्र की उपासना बटाई: एवं इसका उद्धार किया (रु. १.११६)। सायण | करनेवाला धनाढ्य ऋषि कहा गया है (ऋ. १०.९९. के अनुसार, कुएँ में गिरने के कारण इसे अपने पत्नी का विरह हुआ था, जिसे भी अश्वियों ने दूर किया।
| वम्रक-वम्र वैखानस नामक आचार्य का नामान्तर । वंदिन--बंदिन नामक पंडित का नामान्तर (बंदिन् । वम्री-एक व्यक्ति (ऋ. ४.११.९) । वम्र का देखिये)।
शब्दशः अर्थ 'चीटी' होता है। पिशेल के अनुसार, यह वपू-एक अप्सरा, जिसने दुर्वासस् के तपोभंग का | एक ऐसा व्यक्ति था कि, जो अविवाहित माता से उत्पन्न असफल प्रयत्न किया था। दुर्वासस् ने इसे शाप दिया, होने के कारण वन में छोड़ा गया था । वहाँ यह चींटियों जिस कारण अगले जन्म में यह कंधर एवं मेनका की ताी के द्वारा भक्षण किये जानेवाला था, जितने में इसकी मुक्तता नामक कन्या बन गई (माके. १.४९-५६:२.४१)। | की गई ।
वपुटमा-काशिराज सुवर्णवर्मन् की कन्या, जो | वय-वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। जनमेजय पारिक्षित राजा की पत्नी थी। इसके शतानीक वयस्य--पयस्य नामक अंगिरस्पुत्र का नामान्तर ।
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