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________________ रुक्मरथ प्राचीन चरित्रकोश रुक्मिणी गया योद्धा शल्यपुत्र रुक्मरथ न हो कर, शल्य का अन्य । ४. एक कुष्ठरोगी राजा, जो कौडिन्यपूर के भीम राजा पुत्र रुक्मांगद होगा। का पुत्र था। इसकी माता का नाम चारुहासिनी था। ३. (सो. द्विमीढ.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार श्रीगणेश के चिंतामणि-क्षेत्र में स्नान करने के कारण, महापौरव राजा का पुत्र था। यह कुष्ठ रोग से मुक्त हुआ (गणेश १.२७-३५)। ४. द्रोणाचार्य का नामांतर, जो उसे उसके सुवर्णरथ | रुक्मिणी-विदर्भाधिपति भीष्मक (हिरण्यरोमन् ) के कारण प्राप्त हुआ था (म. द्रो. १२.२२)। राजा की लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न कन्या, जो श्रीकृष्ण की ५. त्रिगर्त देशीय राजकुमारों के एक दल का सामूहिक | पटरानी थी (ह. वं. २.५९.१६)। भीष्मक राजा की नाम । इसने कर्ण की आज्ञा से अर्जुन पर आक्रमण किया | कन्या होने के कारण इसे 'भैष्मी., एवं विदर्भराजकन्या था (म. द्रो. ८७.१९-२५)। होने के कारण इसे 'वैदर्भी' नामान्तर भी प्राप्त थे रुक्मवती-विदर्भदेशाधिपति भीष्मक राजा की (भा. १०.५३.१; ६०.१)। इसके पिता भीष्मक को पौत्री, एवं रुक्मि की कन्या । अपनी बहन रुक्मिणी के | हिरण्यरोमन् नामान्तर होने के कारण, इसे एवं इसके कहने पर रुक्मि ने अपनी इस कन्या का विवाह रुक्मिणी | पाँच बन्धुओं को रुक्मि' (सुवर्ण) उपपद से शुरु होनेका पुत्र प्रद्युम्न के साथ किया था (भा. १०.६१.२३)। | वाले नाम प्राप्त हुये थे ( भीष्मक देखिये)।। रुक्मांगद-मद्रराज शल्य का द्वितीय पुत्र, जो श्रीकृष्ण से प्रेम--विवाहयोग्य होने के उपरांत, एक अपने पिता एवं ज्येष्ठ बंधु रुक्मरथ के साथ द्रौपदी- बार, नारद के द्वारा कृष्ण के गुण, रूप तथा सामर्थ्य स्वयंवर में उपस्थित था (म. आ. १७७.१३)। भारतीय- | का वर्णन इसने सुना, जिस कारण कृष्ण के ही साथ युद्ध में यह सहदेव के द्वारा मारा गया ( रुक्मरथ २. | विवाह करने का निश्चय इसने किया (भा. १०.५२.३९)। देखिये)। इसके रूप एवं गुणों को सुन कर कृष्ण के मन में भी २. (सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो ऋतुध्वज इसके प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न हुई, तथा उन्होंने इसके राजा का पुत्र था (नारद. २.१२.२०)। इसकी पत्नी का | साथ विवाह करने की अपनी इच्छा इसके पिता भीष्मक से नाम विंध्यावली, एवं पुत्र का नाम धर्मांगद था। प्रकट की। परन्तु इसका ज्येष्ठ भ्राता रुक्मि जरासंध का ___ रुक्मांगद राजा की एकादशीव्रत पर विशेष श्रद्धा थी। अनुयायी था, एवं कंसवध के समय से कृष्ण से क्रोधित ब्रह्मा के मन में इसे उस व्रत से भ्रष्ट करने की इच्छा था। अतएव उसने भीष्मक से कहा, 'रुक्मिणी की शादी उत्पन्न हुई, जिस काम के लिए उसने मोहिनी नामक | कृष्ण से न कर के शिशुपाल के साथ कर दो, जो कन्या अप्सरा की नियुक्ति की। एक बार यह मंदर पर्वत पर | के लिए अधिक योग्य वर है'। भीष्मक ने अपने पुत्र की शिकार करने गया था, जहाँ मोहिनी भी उपस्थित हुई। इस सूचना का स्वीकार किया,एवं इसका विवाह शिशुपाल मोहिनी ने अपने नृत्यगायन से इसका मन आकर्षित | से निश्चित किया। किया, एवं इसने उससे विवाह की माँग की। यह वार्ता सुन कर यह अत्यधिक दुःखित हुई, एवं एक बार मोहिनी ने इसे अपने प्रेम की आन दे | इसने मौका देख कर श्रीकृष्ण को एक पत्र लिखा, जो कर, एकादशीव्रत से इसे परावृत्त करने का प्रयत्न किया। सुशील नामक एक ब्राह्मण के द्वारा इसने द्वारका भेज किन्तु इसने मोहिनी की माँग अमान्य कर दी। फिर | दिया। इस पत्र में इसने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी प्रणयउसने इसे अपने पुत्र धर्मांगद का सिर तलवार से | भावना स्पष्ट रूप से प्रगट कर, आगे लिखा था, 'हमारे काटने को कहा । मोहिनी की इस मांग को यह पूरी करने- घर ऐसी प्रथा है कि, विवाह के एक दिन पूर्व कन्या नगर वाला ही था कि, इतने में श्रीविष्णु ने साक्षात प्रकट हो के बाहर स्थित अंबिका के दर्शन के लिए जाती है। उस कर, इस कृत्य से इसे परावृत्त किया, एवं प्रसन्न हो कर | समय गुप्त रूप में आ कर, आप मेरा हरण करें। इसे अनेकानेक वर प्रदान कियें (नारद. २.३६)। । श्रीकृष्ण का आगमन-रुक्मिणी का यह पत्र मिलते ३. वीरमणि राजा का पुत्र, जिसने राम का अश्व- | ही, कृष्ण सुशील ब्राह्मण के सहित रथ में बैठ कर एक मेधीय अश्व पकड़ लिया था। तत्पश्चात हुए युद्ध में | रात्रि में आनर्त देश से कुंडिनपुर पहुँच गये। यह शत्रुघ्नपुत्र पुष्कल ने इसे परास्त कर आहत कर दिया | देख कर, एवं परिस्थिति गंभीर जान कर, बलराम भी (पन. पा. ३९-४१)। यादवसेना को ले कर कृष्ण के पीछे निकल पड़ा। बलराम ७५१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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