________________
रावण
प्राचीन चरित्रकोश
रावण
किष्किंधा में वालि के पास युद्ध करने के लिए गया, जब | परिव्राजक के रूप में रावण ने सीता की पर्णकुटी में प्रवेश वालि ने इसे बगल में दबा कर क्रमशः पश्चिम, उत्तर | किया । उससे आतिथ्यसत्कार ग्रहण करने के पश्चात् , एवं पूर्व सागरों में घुमाया। तब यह वालि के सामर्थ्य को | इसने अपना परिचय देते हुए कहा-- देख कर अत्यधिक आश्चर्यचकित हुआ, एवं अग्नि के
भ्राता वैश्रवणस्याऽहं सापत्नो वरवर्णिनि । साक्षी में यह उसका मित्र बना (वा. रा. उ. ३४)।
रावणो नाम भद्रं ते दशग्रीवः प्रतापवान् ॥ पराजय की अन्य कथाएँ–यह पाताललोक में बलि
(वा. रा. अर. ४८.२)। राजा को भी जीतने गया था। किन्तु वहाँ भी इसे नीचे देखना पड़ा (वा. रा. उ. प्रक्षिप्त १-५; बलि वैरोचन
( मेरा नाम रावण है, एवं मैं कुबेर का सापत्न भाई देखिये)।
हूँ। सुविख्यात पराक्रमी राजा दशग्रीव तो मैं ही हूँ)। एक बार नारद के कथनानुसार, यह श्वेतद्वीप में युद्ध
पश्चात् इसने सीता को अपने साथ आ कर लंका की करने गया। तब वहाँ की स्त्रियों ने इसे लीलापूर्वक एक
महारानी बनने की प्रार्थना की । इसने उसके सामने राक्षसदूसरी की ओर फेंक दिया। इस कारण अत्यंत भयभीत
विवाह का प्रस्ताव रखते हुए कहा-- हो कर, यह समुद्र के मध्य में जा गिरा (वा. रा.उ.प्र. अलं वीडेन वैदेहि धर्मलोपकृतेन ते। ३७)।
मार्षोऽयं देवि निष्पन्दो यस्त्वामभिभविष्यति ॥ यह सीता स्वयंवर के लिए जनक राजा की मिथिला
(वा. ग. अर. ५५.३४-३५.)। नगरी में गया था। जनक राजा के प्रण के अनुसार, इसने
(अपने पति का त्याग करने के कारण, धर्मविरुद्ध शिवधनुष्य उठाने की कोशिश की। किन्तु उसे सम्हाल न सकने
आचरण करने का भय तुम मन में नहीं रखना, क्यों कि, के कारण वह इसकी छाती पर गिरा; तब राम ने इसकी
जिस विवाह का मैं प्रस्ताव रखता हूँ, वह वेदप्रतिमुक्तता की (आ. रा.७.३)। यह कथा वाल्मीकि रामायण
| पादित ही है)। में अप्राप्य है। सीताहरण-एक बार राम के द्वारा विरूपित की गई
रावण के इस प्रस्ताव का सीता के द्वारा अस्वीकार रावण की बहन शूर्पणखा इसके पास आयी, एवं उसने |
| किये जाने पर, इसने अपना प्रचंड राक्षस-रूप धारण खरवध का समाचार, एवं सीता के सौंदर्य की प्रशंसा इसे
किया, एवं सीता को ज़बरदस्ती से रथ में बिठा कर यह सुनाई। फिर इसने सीता का हरण करने का मन में
लंका की ओर चला गया। मार्ग में बाधा डालनेवाले निश्चय किया। इस कार्य में सहाय्यता प्राप्त करने के लिए |
जटायु के पंख तोड़ कर इसने उसका वध किया । पश्चात् यह मारीच नामक इच्छारूपधारी राक्षस के पास गया,
इसने सीता को लंका में स्थित अशोकवन में रख दिया एवं कांचनमृग का रूप धारण कर सीताहरण में सहाय्यक
(वा. रा. अर. ४३-५४; पद्म. उ. २४२; भा. ९.१०. बनने की इसने उसे प्रार्थना की। मारीच ने इस प्रार्थना
३०; म. व. २६३)। का इन्कार कर दिया, एवं स्पष्ट शब्दों में कहा, 'यदि तुम
___ श्री. चिं. वि. वैद्य के अनुसार, वाल्मीकि रामायण के सीताहरण की ज़िद चलाओगे तो लंका का सत्यानाश सीताहरण के वृत्तांत में प्राप्त कांचनमृग का आख्यान होगा।
| प्रक्षिप्त है, एवं अद्भुत रस की उत्पत्ति के लिए यह आख्यान किन्तु रावण ने मारीच की यह सलाह न मानी, एवं बाद में रामायण में रखा गया है (वैद्य, दि रिडल ऑफ दि उसे इस कार्य में सहाय्यता करने के पुरस्कारस्वरूप. | रामायण पृ. १४४)। आधा राज्य प्रदान करने का आश्वासन दिया। रावण ने रावण-सीता संवाद-हनुमत् ने अशोकवन में प्रवेश उसे यह भी कहा, 'यदि यह प्रस्ताव तुम स्वीकार नहीं | पा कर सीता की भेंट ले ली। उसी रात्री के अन्त में करोंगे, तो मैं तुम्हारा वध करूँगा।
रावण अपनी पत्नियों के साथ सीता का दर्शन करने आया, मारीच की संमति प्राप्त करने के बाद, रावण ने उसे | एवं इसने दीनतापूर्वक सीता से प्रार्थना की, 'पति अपने रथ में बिठा कर, जनस्थान की ओर प्रस्थान किया। के रूप में तुम मेरा स्वीकार करो'। सीता के द्वारा इस वहाँ राम कांचनमृगरूपधारी मारीच के पीछे चले जाने | प्रार्थना का इन्कार किये जाने पर, इसने क्रुद्ध हो पर, एवं लक्ष्मण उसकी खोज के लिए जाने पर, एक | कर कहा
७४६