SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 766
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रावण प्राचीन चरित्रकोश रावण विश्रवस् ऋषि को अपनी देववर्णिनी नामक पत्नी से | एक बार, कुबेर पुष्पक विमान में बैठ कर अपने पिता कुवेर (वैश्रवण ) नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। एक बार | विश्ववस् ऋषि से मिलने आया । रावण की माता कैकसी सुमालि ने कुबेर को पुष्पक विमान पर विराजमान हो कर | ने इसका ध्यान कुवेर की ओर आकर्षित कर के कहा, बड़े ही वैभव से भ्रमण करते हुए देखा, जिस कारण | 'तुम भी अपने भाई के समान वैभवसंपन्न बन जाओ। उसने अपनी कन्या कैकसी विश्रवस् ऋषि को विवाह में | अतः यह अपने भाईयों के साथ गोकर्ण में तपस्या करने देने का निश्चय किया । विश्रवस् ऋषि ने कैकसी का | लगा (वा. रा. उ. ९.४०-४८)। स्वीकार करते हुए कहा, 'तुम इस दारुण समय पर आई इस तरह यह दस हजार वर्षों तक तपस्या करता हो, इस कारण तुम्हारे पुत्र क्रूरकर्मा राक्षस होंगे; किन्तु | रहा, जिसमें प्रति सहस्त्र वर्ष के अंत में, यह अपना एक सिर अंतीम पुत्र धर्मात्मा होगा। इसी शाप के अनुसार, अग्नि में हवन करता था। दस हजार वर्षों के अन्त में यह कैकसी को रावण, कुंभकर्ण, एवं शूर्पणखा नामक लोकोद्वेग- अपना दसवाँ सिर भी हवन करनेवाला ही था कि, करी संतान, एवं विभीषण नामक धर्मात्मा पुत्र उत्पन्न इतने में प्रसन्न हो कर ब्रह्माने इसे कर दिया, 'तुम हुआ। सुपर्ण, नाग, यक्ष, दैत्य, दानव, राक्षस तथा देवताओं के महाभारत में रावण को विश्रवस् एवं पुष्पोत्कटा का | लिए अवध्य रहोगे'। पश्चात् ब्रह्मा ने इसके नौ सिर पुत्र कहा गया है । विश्रवस् का अन्य पुत्र कुवेर था, जिसने | लौटा कर, इसे इच्छारूपी बनने का भी वर प्रदान किया अपने पिता की सेवा के लिए पुष्पोत्कटा, राका एवं | (वा. रा. उ. १०-१८-२६; पन. पा. ६; म. व. २६९. मालिनी नामक तीन सुंदर राक्षसकन्याएँ नियुक्त की। इन | २६)। राक्षसकन्याओं में से पुष्पोत्कटा से रावण एवं कुंभकर्ण ब्रह्मा से वर प्राप्त करने के पश्चात् , रावण ने अपने का, राका से खर एवं शूर्पनखा का, एवं मालिनी से पितामह सुमालि के अनुरोध पर अपने मंत्री प्रहस्त. को विभीषण का जन्म हुआ (म. व. २५९.७)। कुबेर के पास भेज़ दिया, एवं लंका का राज्य राक्षसवंश वाल्मीकि रामायण एवं महामारत में प्राप्त उपर्युक्त के लिए माँग लिया। तत्पश्चात् अपने पिता विश्रवसे ऋषि कथाओं में रावण को ब्रह्मा का वंशज एवं कुबेर का भाई की आज्ञा मान कर कुवेर कैलास चला गया, एवं रावण कहा गया है, जो कल्पनारम्य प्रतीत होता है। रावण का | ने अपने राक्षसबांधनों के साथ लंका को अपने अधिकार स्वतंत्र निर्देश प्राचीन साहित्य में रामकथा के अतिरिक्त | में ले लिया (वा. रा. उ. ११.३२)। अन्य कहीं भी प्राप्त नहीं है, जैसा कि ब्रह्मा अथवा ___ अत्याचार--ब्रह्मा से वर प्राप्त करने के पश्चात् , लंकाकुबेर का प्राप्त है । इससे प्रतीत होता है कि, प्राचीन ऐति- धिपति रावण पृथ्वी पर अनेकानेक अत्याचार करने हासिक राक्षस कुल से रावण का कोई भी संबंध वास्तव | लगा। इसने अनेक देव, ऋषि, यक्ष, गंधवों का वध किया, में नहीं था। किन्तु रामकथा के विकास के साथ साथ रावण | एवं उनके उद्यानों को नष्ट किया। यह देख कर इसके सौतेले का भी महत्त्व बढ़ने पर, राक्षस वंश के साथ इसका संबंध | भाई कुवेर ने दूत भेजकर इसे सावधान करना चाहा । प्रस्थापित किया गया। किन्तु रावण ने अपनी तलवार से उस दूत का वध किया, भागवत में इसका संबंध हिरण्याकशिपु एवं हिरण्याक्ष | एवं अपने मंत्रियों के साथ कैलासपर्वत पर रहनेवाले के साथ प्रस्थापित किया गया है, जहाँ विष्णु के | कुवेर पर आक्रमण किया। वहाँ इसने यक्ष सेना को द्वारपाल जय एवं विजय शापवश अपने अगले तीन | पराजित किया, एवं कुबेर को द्वंद्व युद्ध में परास्त कर उसका जन्मों में, क्रमशः हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष, रावण एवं पुष्पक विमान छीन लिया (वा. रा. उ. ९) कुंभकर्ण, शिशुपाल एवं दंतवक के रूप में पृथ्वी पर प्रगट | गर्वहरण-कुबेर को पराजित करने के बाद, पुष्पक होने का निर्देश प्राप्त हैं (भा.७.१.३५-३६)। विमान में बैठकर यह कैलासपर्वत के उपर से जा रहा तपश्चर्या--रावण के सौतेला भाई वैश्रवण कुबेर ने था, तब पुष्पक अचानक रुक गया। फिर रावण पुष्पक से तपस्या कर के चतुर्थ लोकपाल (धनेश) का पद एवं पृथ्वी पर उतरा, एवं शिवपार्षद नंदी का वानरमुख देख पुष्पक विमान प्राप्त किया। विश्रवस् ने भी अपने पुत्र कर इसने उसका उपहास किया। इस कारण नंदी ने इसे कुबेर को लंका का राज्य प्रदान किया था, जो राक्षसों के | शाप दिया, 'मेरे जैसे वानरों के द्वारा तुम पराजित होंग' द्वारा विष्णु के भय से छोड़ा गया था (वा. रा. उ. ३)।। (वा. रा. उ. १६)। ७४४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy