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________________ राम प्राचीन चरित्रकोश स्थापितला राक्षस साम्राज्य विनष्ट हुआ। दक्षिण भारत का सारा प्रदेश राक्षसों के भय से विमुक्त हो कर, वहाँ दाक्षिणात्य वानरों का राज्य प्रस्थापित हुआ, एवं अगस्त्य के द्वारा दक्षिण भारत में प्रस्थापित किये गये आर्य संस्कृति का दृढ रूप से पुनरुस्थान हुआ । इस तरह राम का दक्षिण दिग्विजय अनेकानेक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। इस दृष्टि से सीता के अशि परीक्षा की कथा भी रूपकात्मक प्रतीत होती है, जो संभवतः राम के द्वारा शुरू किये गये दक्षिण भारत की आबादी एवं पुनर्वसन के कार्य की यशस्विता प्रतीवरूप से दर्शाती है । सीता शब्द का शब्दशः अर्थ भी भूमि ही है (सीता देखिये) । । राक्षससंग्राम का तिथिनिर्णय राम एवं रावण का युद्ध कुल ८७ दिनों तक चलता रहा, उनमें से पंद्रह दिन कोई युद्ध न हुआ था, जिस कारण राम-रावण का प्रत्यक्ष युद्ध ७२ दिनों तक हुआ प्रतीत होता है। यह युद्ध माघ शुद्ध द्वितीया को शुरु हुआ, एवं वैशाख कृष्ण द्वादशी के दिन रावण वध से समाप्त हुआ । । लंका का स्थनिर्णय रावणसंग्राम के संबंध में लंका बा के स्थलनिर्णय की समस्या महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती है। रायचौधरी आदि अभ्यासकों के अनुसार, आधुनिक । सिलेन ही का है, एवं आधुनिक महाराष्ट्र प्रदेश ही प्राचीन दण्डकारण्य है । किबे आदि अन्य अभ्यासक लंका का स्थान आधुनिक मध्य हिंदुस्थान में अमरकंटक पर्वत के पास मानते हैं। बजेर आदि कई अन्य अभ्यासक । आधुनिक मालदिव अंतरीप को राक्षसद्वीप मानते हैं। अन्य कई अभ्यासकों के अनुसार, प्राचीन का देश आधुनिक आंध्र प्रदेश के उत्तर में बंगाल उपसागर के बीच कहीं बसा हुआ था । डॅनिएल जॉन के अनुसार, प्राचीन वा आधुनिक सीलोन के दक्षिण में अथवा लंका दक्षिणीपूर्व में कहीं बसी हुई थी ( डॉ. पुसालकर स्टडीज इन दि एपिक्स ॲन्ड पुराणाज पृ. १९१ ) । वानर कौन थे— किबे एवं हिरालाल के अनुसार अमरकंटक पर्वत के प्रदेश में रहनेवाले वन्य खोग प्राचीन का में वानर एवं आधुनिक गोड खोग राक्षस महाते थे। अन्य कई अभ्यासक राक्षसों को असुरवंशीय मानते है। चक्रवर्ती राजगोलाचारी के अनुसार, आधुनिक । द्रवित प्रदेश में रहनेवाले द्रविडवंशीय लोग रामायण बलवान कहलाते थे (डॉ. पुसाळकर, ४ १९२ वानर देखिये) । राम उत्तरकाण्ड का विश्लेषण कई अभ्यासकों के अनुसार, रावणवध के साथ ही साथ राम का देवी अवतार समाप्त होता है । अपने इस अवतारकार्य के समाप्ति के पश्चात्, इक्ष्वाकुवंश का एक राजा यही मर्यादित स्वरूप रामचरित्र धारण करता है। इसी कारण, वाल्मीकि रामायण के उत्तर काण्ड में चित्रित किया गया राम, पहले काण्डों में चित्रित राम से अलग व्यक्ति प्रतीत होता है रे, के भी संपूर्ण उत्तर काण्ड को प्रक्षिप्त मानते है, जिसकी रचना बातमी के द्वारा नहीं, बल्कि भिन्न मित्र उत्तरकालीन कवियों के द्वारा हुयीं है ( रामकथा, पृ. ६०५६०६) । वाल्मीकिद्वारा रचित 'आदिरामायण' एवं अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी राम के द्वारा रावण की पराजय, एवं सीता की पुनःप्राप्ति के साथ ही ' रामकथा समाप्त की गयी है । अयोध्यागमन - युद्ध के पश्चात् राम, सीता एवं लक्ष्मण को साथ ले कर पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या की ओर चल पड़े। उस समय राक्षससंग्राम में भाग लेनेवाले समस्त वानरों ने इच्छा प्रकट की, कि वे अयोध्या में रामराज्याभिषेक देखना चाहते हैं। इस कारण, उन्हे एवं सुग्रीवादि अपने मित्रों को साथ ले कर यह अयोध्या में आया। अयोध्या जाते समय, राम ने सीता को युद्धभूमि, नल के द्वारा बाँधा गया सेतु किष्किंधा आदि ऐतिहासिक स्थान बतायें। । राम के चौदह वर्षों के वनवास में से एक दिन बाकी था, इसलिए वैशाख शुद्ध पंचमी के दिन, इसने भरद्वाज ऋषि के आश्रम में बास किया, एवं हनुमत् के द्वारा अपने आने का संदेश भेजा। दूसरे दिन पुष्य नक्षत्र के अवसर पर, नंदिग्राम में राम एवं भरत की भेंट हुयी, एवं उसके साथ अयोध्या जाकर अपनी माताओं एवं वसिष्ठ आदि गुरुजनों के इसने दर्शन किये ( वा. रा.यु. १२६)। । रामराज्याभिषेक - वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन, राम एवं भरत ने मंगल स्नान किये, एवं इसका राज्याभिषेक तथा भरत का यौवराज्याभिषेक वसिष्ठ के द्वारा किया गया। अनंतर राम ने पहले ब्राह्मणों को तथा बाद में सुप्रीवादि वानरों को विपुल दान दिया। राम ने लक्ष्मण को युवराज बनाना चाहा, किन्तु लक्ष्मण के द्वारा उस पड़ को अस्वीकार किये जाने पर, भरत को युवराज बनाया गया। גי वाल्मीकि रामायण में रामाभिषेक के लिए आमंत्रित राजाओं की जानकारी सविस्तृत रूप में प्राप्त है, जहाँ इसके ७३५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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