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राम
प्राचीन चरित्रकोश
राम
राम के द्वारा उसे दिया गया अभयदान, ये दोनों प्रसंग | लिए नियुक्त किया गया । लंका के उत्तर द्वार पर, लक्ष्मण वैष्णव धर्म की परंपरा में 'भगवद्गीता' के समान ही की सहाय्यता से राम ने रावण से स्वयं ही सामना देने महत्त्वपूर्ण एवं पवित्र माने जाते हैं।
का निश्चय किया (वा. रा. यु. ३७)। पश्चात् इसने विभीषण को रावण का वध कर, उसे दूतप्रेषण-रावण से युद्ध शुरू करने के पूर्व, राम ने लंका का राजा बनाने का आश्वासन दिया। विभीषण ने भी | सुवेल पर्वत पर चढ़ कर लंका का निरीक्षण किया। उसी इसे वचन दिया कि, वह रावणवध में इसकी सहाय्यता समय, सुग्रीव सहसा पर्वत पर चढ़ कर लंका का के गोपुर करेगा (वा. रा. यु. १७-१९)।
पर कूद पड़ा, एवं वहाँ अकेले ही उसने रावण को द्वंद्वयुद्ध राम के द्वारा लंका पर आक्रमण होने के पूर्व, रावण | में परास्त किया (वा. रा. यु. ४०)। ने अपने शुक नामक गुप्तचर के द्वारा, सुग्रीव को अपने तत्पश्चात् विभीषण के परामर्श पर, राम ने अंगद के पक्ष में लाने का प्रयत्न किया, किन्तु सुग्रीव ने उसकी द्वारा रावण को संदेश भेजा, 'यदि तुम सीता को नहीं उपेक्षा की।
लौटाओंगे, तो मैं सारे राक्षसों के साथ तुम्हारा संहार सेतुबंध-लंका में पहुँचने के लिए समुद्र पार करना
करूँगा'। अंगद के मुँह से राम का यह संदेश सुन कर, आवश्यक था। समुद्र में मार्ग प्राप्त करने के लिए, इसने रावण ने उसका वध करने का आदेश दिया। चार राक्षसों कुशासन पर आधिष्ठित हो कर, एवं तीन दिनों तक प्रायो- ने अंगद को पकड़ना चाहा, किंतु अंगद उन चारों को उठा पवेशन कर, समुद्र की आराधना की। किन्तु समुद्र ने इसे | कर इतने वेग से एक भवन पर कूद पड़ा कि, वे - राक्षस मार्ग न दिया, जिस कारण इसने क्रुद्ध हो कर समुद्र पर | निःसहाय्य भूमि पर गिर पड़े। पश्चात् अंगद उस भवन ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया (वा. रा. यु. २१)। तत्पश्चात् | ढहा कर, सुरक्षितता से राम के पास आ पहुँचा । राम समुद्र इसकी शरण में आया, एवं विश्वकर्मापुत्र नल के ने जब समझ लिया कि, किसी प्रकार मित्रता के साथ युद्ध द्वारा समुद्र पर वृक्षों तथा पत्थरों से एक सेतु बाँधने की टालना असंभव है, तब इसने अपने सेनापति नील की उसने इसे सलाह दी।
युद्ध शुरु करने की आज्ञा दे दी (वा. रा. यु.: ४१नील के द्वारा निर्माण किया गया यह सेतु सौ योजन | ४२) । लंबा था, जो उसने पाँच दिनों में, प्रतिदिन चौदह, बीस. प्रथम दिन-लंका को वानरसेना से अवरुद्ध जान • इक्कीस, बाइस, तेइस योजन इस क्रम से तैयार किया था। कर, रावण ने उसका सामना करने के लिए अपनी सेना इस सेतु के द्वारा, ससैन्य, समुद्र को लाँघ कर यह लंका को भेज़ दिया । इस समय राम एवं इसके सहयोगियों पहुँच गया (वा. रा. यु. २२.४१-७७)। वहाँ 'सुवेल | के द्वारा निम्नलिखित गक्षस योद्धा मारे गये :-राम के पर्वत' के समीप इसने पड़ाव डाले (वा. रा. यु. २३- | द्वारा-अग्निकेतु, रश्मिकेतु, मित्रघ्न एवं यज्ञकेतुः प्रबंध २४)।
के द्वारा--संपाति; सुग्रीव-प्रघस; लक्ष्मण-विरूपाक्ष; मैंदलंका का अवरोध--वानर सेना के समुद्र पार करने वज्रमुष्टि; नील-निकुंभ; द्विविद-अशनिप्रभः सुषेणके बाद, रावण ने शुक, सारण एवं शार्दुल नामक अपने | विद्युन्मालिन् ; गजवर-तपन; हनुमत्-जबुमालिन् ; नलगुप्तचरों को वानरवेश से राम सेना की ओर भेज़ दिया, तथा प्रतपन (वा. रा. यु. ४३)। रामसेना की गणना करने के लिए कहा। किंतु विभीषण | सायंकाल के समय, प्रथम दिन का युद्धं समाप्त हुआ, ने उनको पहचान लिया, एवं राम के संमुख पेश किया। किंतु राक्षसों के द्वारा पुनः युद्ध प्रारंभ किये जाने पर पश्चात् वे शरण आने के कारण, राम ने उन्हें जीवनदान राम ने यज्ञशत्रु, महापार्श्व, महोदर, शुक एवं सारण दिया (वा. रा. यु. २५-२७)। रे. बुल्के के अनुसार, | आदि राक्षसों का पराजय किया। वाल्मीकि रामायण में प्राप्त गुप्तचरों का यह वृत्तांत, एवं नागपाश--तत्पश्चात् अंगद ने रावण के पुत्र इंद्रजित तत्पश्चात् दिया गया राम के कटे हुए मायाशीष का वृत्तांत से युद्ध प्रारंभ कर उसे परास्त किया । फिर इंद्रजित् ने प्रक्षिप्त है (रामकथा पृ. ५५५-५५६)।
ब्रह्मा के वरदान से अदृश्य हो कर, राम एवं लक्ष्मण को युद्ध के पूर्व, राम ने अपनी सेना को सुसंघटित बनाया, नागमय शरों से आहत किया, जिस कारण ये दोनों जिसमें अंगद को लंका के दक्षिण द्वार पर, हनुमत् को | निश्चेष्ट पड़े रहे । तब इंद्र जित् ने इन दोनों को मृत समझ पश्चिम द्वार पर, एवं नील को पूर्व द्वार पर आक्रमण के | कर वैसी सूचना रावण को दी (वा. रा. यु. ४२-४६ )।
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