SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 714
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ याज्ञवल्क्य प्राचीन चरित्रकोश याज्ञवल्क्य था। उदाहरणार्थ, जनक की सभा में उद्दालक के प्रश्न का | शाखाप्रवर्तक शिष्य--वायु में याज्ञवल्क्य के निम्नउत्तर देते समय यह एकाएक ध्यानमग्न हुआ, तथा ईश्वर | लिखित पंद्रह शाखाप्रवर्तक शिष्य बताये गये हैं-१. कण्व; की व्यापकता बताते हुए इसने कहा, 'ईश्वर तो जगत्व्यापी | २. वैधेय; ३. शालिन् ; ४. मध्यंदिन५. शापेयिन; है। याज्ञवल्क्य के उक्त विचार 'अत यामी ब्राह्मण' | ६. विदिग्ध; ७. उद्दल; ८. ताम्रायण; ९. वात्स्य; नामक ग्रन्थ में सम्मिलित है (बृ. उ. ३.७.१)। १०. गालव; ११. शैषिरिन् ; १२. आटविन्; १३. पर्णिन् ; जनक राजा के साथ हुए संवाद में, आत्मा के 'अव्यय | १४. वीरणिन् १५. परायण (वायु. ६१.२४-२५)। रूप' के सम्बन्ध में अपने विचार भी इसने बिना पूछे इन शिष्यों को ‘वा जिन् ' सामुहिक नाम प्राप्त था। ही प्रकट किये थे । इस प्रकार, जब यह भावमग्न हो कर ब्रह्मांड में ये नाम कई पाठभेदों के साथ प्राप्त है (ब्रह्मांड. आत्मज्ञानसम्बन्धी विचारों को प्रकट करता था, तो प्रकट | २.५.८-३०)। अन्य पुराणों में भी इन शाखा-प्रवर्तक ही करता जाता था,जैसे कि आकाश के बादल बरसते नहीं, | आचार्यों के नाम अनेकानेक रूप से दिये गये हैं। तथा जब ऋतु पा कर बरसते हैं, तो बरसते ही जाते हैं। इन शाखाप्रवर्तक आचायों में से किण्व एवं ___ परिवार--याज्ञवल्क्य को मैत्रेयी एवं कात्यायनी नामक | 'माध्यंदिन' शाखाओं के ग्रंथ आज प्राप्त हैं। बाकी दो पत्नियाँ थी। उनमें से मैत्रेयी आध्यात्मिक ज्ञान की शाखाओं के ग्रंथ नष्ट हो चुके हैं। पिपासु थी। इस कारण, इसने उसे आत्मज्ञान कराया, ग्रंथ--याज्ञवल्क्य के नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त एवं संन्यास लेने के पश्चात् भी यह उसे अपने साथ अरण्य है:-१. शुक्लयजुर्वेद संहिता (श. बा. १४.९.४.३३); में ले गया (मैत्रेयी देखिये )। स्कंद में मैत्रेयी के लिए | २. ईशावास्योपनिषदः ३. सांग शतपथ ब्राह्मण (म.शा. 'कल्याणी' नामान्तर प्राप्त है (स्कंद. ६.१३०-१३१)। ३०६.१-२५); ४. बृहदारण्यक उपनिषद (याज्ञ. ३. वैदिक ग्रंथों में से 'जाबालोपनिषद्' एवं 'शतपथ ब्राह्मण' ११०);५. याज्ञवल्क्य शिक्षा, जिसमें २३२ श्लोक हैं; . में भी उसका उल्लेख प्राप्त है (श. ब्रा. १.४.१०-१४)। |६. मनःस्वार शिक्षा, जिसमें हस्तस्वर की अपेक्षा भिन्न प्रकार. इसकी दूसरी पत्नी कात्यायनी एक सामान्य गृहिणी के विचारों को प्रतिपादित किया गया है; ७. बृहद्थी, जिससे इसे कात्यायन एवं पिप्पलाद नामक दो पुत्र | याज्ञवल्क्य; ८. बृहद्योगीयाज्ञवल्क्य; ९. योगशास्त्र। उत्पन्न हुये थे (स्कंद. ५.३; ४२.१; पिप्पलाद देखिये)। इनके सिवा इस के नाम पर 'याज्ञवल्क्यस्मृति' नामक शिष्यपरंपरा-काण्व एवं माध्यदिन परंपरा में एक स्मृतिग्रंथ भी प्राप्त है । . इसके निम्नलिखित शिष्यों का निर्देश प्राप्त है :-- ___ शुक्लयजुर्वेद-शुक्लयजुर्वेद संहिता के कुल चालीस १. आसुरि-यह याज्ञवल्क्य का प्रमुख शिष्य था, जिससे अध्याय हैं, एवं उनमें निम्नलिखित विषयों का विवरण 'आसुरि' नामक शिष्यशाखा का निर्माण हुआ (श.वा. प्राप्त हैं :-अ. १-२, दशपूर्णमासमंत्र एवं पिंडपितृयज्ञ; १४.९.४.३३)। आसुरि के शिष्य का नाम 'पंचशिख' | अ. ३, नित्याग्निकर्म, अग्निप्रतिष्ठा, हवन एवं चातुर्मास्यअथवा 'कापिलेय' अथवा 'कपिल' था (मत्स्य. ३. यज्ञ; अ. ४-८, सोमयज्ञ, पशुयज्ञ एवं राजसूय यज्ञ के मंत्र २९)। पंचशिख के शिष्यों में विदेह के राजा 'जनक | अ. ९-१०,-सोमयज्ञ के मंत्र; अ. ११-१८, अग्निचयनजानदेव' एवं 'जनक धर्मध्वज' प्रमुख थे। पंचशिख के विधि एवं मंत्र; अ. १९-२१, सौत्रामणियज्ञ के मंत्र; अ. शिष्यों में आसुरायण प्रमुख था, जो याक का समकालीन २२-२५, अश्वमेधयज्ञ के मंत्र; अ. २६-३०, पुरुषमेध था। | (यज्ञरहस्य ); अ. ३१, पुरुषसूक्त; अ. ३२, तत्त्वज्ञान २. मधुक पेंग्य--इसके शिष्यों में चूड भागवित्ति | (उपनिषद् );अ.३३-३४, शिवसंकल्पोपनिषद्; अ.३५, प्रमुख था। चूड भागवित्ति से लेकर जानकि आयस्थूण, | अंत्येष्टिमंत्र, अ. ३६-३९, प्रवर्य मंत्र; अ. ४०, सत्यकाम जाबाल ऐसी इसकी शिष्यपरंपरा थी (बृ. उ.. ईशावास्य उपनिषद् । इनमें से अध्याय २६-३५ को ६.३.७-११)। 'खिल' (परिशिष्ट ) कहते है। ३. सामश्रवस्--इसे जनक के विद्वत्सभा में अपनी | यह संहिता गद्य एवं पद्य भागों से बनी है। उनमें से ओर से संपत्ति उठाने के लिए याज्ञवल्क्य ने कहा था। पद्य भाग ऋग्वेद से लिया गया है, एवं गद्य भाग नया ___ इनके सिवा महाभारत में इसके सौ शिष्य बताये गये | है। उस गद्य भाग को ही 'यजुः' कहते है, जिस कारण हैं (म. शां. ३०६.१७; व्यास देखिये )। इस वेद को यजुर्वेद नाम प्राप्त हुआ है। ६९२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy