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________________ मेधातिथि काण्व प्राचीन चरित्रकोश मेनका के अनुसार, सुविख्यात पौरव राजा अजमीढ को कण्व- रूप-यौवन से यह मोहित हुआ, एवं अपनी तपस्या छोड़ नामक एक पुत्र था, जिसका पुत्र मेधातिथि था। आगे चल | कर, यह उसीके साथ रहने लगा। कर, इसी मेधातिथि से काण्वायन ब्राह्मण उत्पन्न हुए इस तरह अनेक साल बीत जाने पर मंजुघोषा ने इसे (मत्स्य. ४९.४६-४७; वायु. ९९.१६९-१७०)। समय की कल्पना दी । फिर अपने तपःक्षय के विचार इसी काण्वायन' गोत्र में निम्नलिखित वैदिक सूक्तद्रष्टा । से यह विव्हल हो उठा, एवं इसने मंजुघोषा को पिशाच आचार्य उत्पन्न हुए थे:-प्रगाथ काण्व (ऋ. ८.६५.१२ | बनने का शाप दिया । उसके द्वारा दया की याचना की बृहदे. ६.३५-३९); पृषध्र काण्व, जो दस्यवेवृक का जाने पर, इसने उःशाप दिया, 'चैत्र माह के कृष्णपक्ष समकालीन था (ऋ. ८.५६.१-२); देवातिथि काण्व | की पापमोचनी एकादशी का व्रत करने पर तुम्हे मुक्ति (ऋ.८.४.१७); वत्स काण्व (ऋ. ८.६.४७); सध्वंस काण्व (ऋ. ८.८.४)। आगे चल कर, अपने पिता के कहने पर इसने भी उसी एकादशी का व्रत किया, जिस कारण इसे मुक्ति .मेधातिथि गौतम-एक ऋषि, जिसकी पत्नी का प्राप्त हुयी (प. उ. ४६)। नाम अहल्या, एवं पुत्र का नाम चिरकारिन् था (चिरकारिन् देखिये)। । मेधाविनी-कुलिंद राजा की पत्नी, जिसके पुत्र का नाम चंद्रहास था। मेधाविन्-एक उद्दण्ड ऋषिपुत्र, जो बालधि ऋषि | मध्य-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.५३-५४ का पुत्र था । इसकी आयु पर्वतों पर निर्भर थी, इसलिए | ५७-५८) । ऋग्वेद के वालखिल्य सूक्त में इसका मेध्य इसे 'पर्वतायु' भी कहते थे। धनुषाक्ष नामक मुनि ने | एवं मातरिश्वन के साथ निर्देश प्राप्त है (ऋ.८. इसकी आयु के निमित्तभूत पर्वतों को भैंसों से विदीर्ण | ५२.२)। करा दिया, जिस कारण इसकी मृत्यु हुयी (म. व.१३४; २. वायंभुव मनु के पुत्रों में से एक। बालधि देखिये)। मेध्यातिथि काण्व-मेधातिथि काण्व नामक वैदिक . २. एक ब्राह्मण बालक, जिसने अपने पिता को संसार | | ऋषि का नामान्तर (मेधातिथि काण्व देखिये )। ऋग्वेद की क्षणभंगुरता बता कर मोक्ष एवं धर्म की ओर प्रेरित | में इसे वैदिक सूक्तद्रष्टा बताया गया है (ऋ.८.३; ३३; किया था (म. शां. १६९)। यही कथा मार्कंडेय में | | ९.४१-४३)। भधिक विस्तृत रूप में प्राप्त है (मार्क. १०)। मेनका-स्वर्गलोक की एक श्रेष्ठ अप्सरा, जो कश्यप बौद्धधर्मीय 'धम्मपद' में, एव जैनधर्मीय 'उत्तरा- एवं प्राधा की कन्याओं में से एक थी। इसकी गणना ध्यायन सूत्र' में यही कथा कुछ अलग ढंग से प्राप्त है, छः प्रधान अप्सराओं में की जाती थी (म. आ. ६८. जहाँ इसे राजकुमार मृगपुत्र कहा गया है (धम्म. ४. ६७) । अर्जुन के जन्मोत्सव में, एवं उसके स्वागत४७-४८; उत्तराध्यायन. १४.२१-२३)। इससे प्रतीत समारोह में इसने नृत्य किया था (म. आ. ११४.५३; होता है कि, तत्कालीन समाज में प्रचलित एक ही लोक व. ४४.२९)। कथा के आधार पर, इन तीनों कथाओं की रचना की ___ ऋग्वेद एवं ब्राह्मण ग्रंथों में इसे वृषणश्व की पुत्री गयी हैं। इनमें से महाभारत में प्राप्त कथा सर्वाधिक अथवा कन्या कहा गया है (ऋ. १.५१.१३; श. ब्रा. सुयोग्य प्रतीत होती है। ३.३.४.१८)। उन्ही ग्रंथों में वृषणश्व की एक उपाधि ३.( सो. कुरु. भविष्य.) एक कुरुवंशीय राजा, जो | 'मेन' दी गयी है, जिस कारण इसे मेनका नाम प्राप्त विष्णु, वायु एवं भागवत के अनुसार सुनय राजा का, | हुआ होगा (प. बा. १.१)। एवं मत्स्य के अनुसार सुतपस् राजा का पुत्र था। | विवाह-इसे ऊर्णायु गंधर्व की पत्नी कहा गया है। . ४. च्यवन ऋषि का एक पुत्र, जिसकी कथा ‘पापमोचनी | गंधर्वराज विश्वावसु से इसे प्रमद्वरा नामक कन्या उत्पन्न एकादशी' का माहात्म्य बताने के लिए पद्म में दी हयी थी । स्थूलकेश ऋषि के आश्रम में प्रमद्वरा को जन्म गयी है। दे कर, इसने उसे वहीं त्याग दिया (म. आ.८.६-८)। पापमोचनी एकादशी- एक बार चैत्ररथ नामक वन| इसके लावण्य से पृषत् राजा मोहित हुआ था, जिससे में इसकी मंजुघोषा नामक अप्सरा से भेंट हुयी। उसके | इसे द्रुपद नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। ६६३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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