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मनु स्वारोचिष
प्राचीन चरित्रकोश
मंथरा
मनु स्वारोचिष--स्वारोचिष नामक द्वितीय मन्वंतर मनोहरा--सोम नामक वसु की पत्नी, जिसे निम्नका अधिपति मनु । इसकी माता का नाम आकूति था, जो लिखित चार पुत्र थे :--वर्च, शिशिर, प्राण एवं रमण मनु स्वायंभुव की कन्या थी। इसे ब्रह्मा ने सात्वत धर्म | (म. आ. ६०.२१)। का उपदेश दिया था, जो कालान्तर में इसने अपने पुत्र | २. अलकापुरी की एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्र के शंखपद को प्रदान किया था ( म. शां. ३३६.३४-३५; | स्वागत के लिए इन्द्रसभा में नृत्य किया था (म. अनु. स्वारोचिष देखिये)।
१९.४५)। मनुज--दस विश्वेदेवों में से एक ।
मंथरा--कैकयी की एक कुबडी दासी, जो दुन्दुभी मनवश--(सो. क्रोष्णु.) एक यादव-राजा, जो वायु नामक गंधर्वी के अंश से उत्पन्न हुयी थी (म. व. २६०. के अनुसार मनु राजा का पुत्र था।
१०)। महाभारत में रामोपाख्यान में, जब राम की मनुष्यधर्मन्--कुवेर का नामान्तर ।
सहायता करने के लिए देवताओं द्वारा ऋक्षों तथा वानरों मनप्यराजन्-एक सन्मान्य उपाधि, जो राजसूय यज्ञ | की स्त्रियों से पत्र उत्पन्न करने का उल्लेख किया गया है. करनेवाले मनुष्य राजाओं के लिए प्रयुक्त की जाती थी।
तब गंधर्वी दुन्दुभी को मंथरा के रूप में प्रकट होने की राजसूय यज्ञ करनेवाले देवों के लिए 'देवराजन्' उपाधि
चर्चा मिलती है (म. व. २६०.१०)। इसी मंथरा कैकयी प्रयुक्त की जाती थी (देवराजन् देखिये)।
के मन में भेद उत्पन्न कर राम के वनगमन का कारण मनसुत-ब्रह्मसावर्णि मनु के पुत्रों में से एक।
बनी थी। मनोजव--अनिल नामक वसु का ज्येष्ठ पुत्र। इसकी माता का नाम शिवा था (म. आ. ६०.२४)। पाठभेद
वाल्मीकि रामायण की मंथरा कैकयी की चिरकाल (भांडारकर संहिता)-'पुरोजव'।
से पतिता दासी है, जो राम का राज्याभिषेक सुनकर क्रोध ' २. (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो मेधातिथि राजा का
से प्रज्वलित हो उठती है। यह कैकयी को भावी अरिष्टों . पुत्र था।
की ओर ध्यान दिलाकर अपने वश में ऐसा कर लेती है ३. चाक्षुष मन्वन्तर का इन्द्र।
कि, वह इसकी प्रशंसा करने लगती है (वा. रा. अयो.९. ४. लेख देवों में से एक ।
४१-५०)। कैकेयी इसके द्वारा ही समझाये जानेपर राम ५. धर्मसावर्णि मन्वन्तर का एक देव ।
को वन में भेजने के लिए प्रवृत्त हुयी । कैकेयी राम के राज्य६. सोमवंशीय एक राजा, जिसका मंगलतीर्थ नामक
भिषेक से अत्यधिक प्रसन्न थी, किन्तु इसके द्वारा दी गयी तीर्थस्थान में स्नान करने के कारण उद्धार हुआ था ( स्कंद.
दलीलों को सुनकर वह हतबुद्ध हो गयी, और दशरथ ३.१.१२)।
से वर माँग कर राम को वन भेजा (वा. रा. अयो. ७.९) मनोजवा--स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श.
शत्रुघ्न इसके इस दुष्कार्य से इतने क्रुद्ध हो उठते है कि, ४५.१६)।
वह मंथरा को पीटते भी है (वा. रा. अयो.७८) अग्नि मनोभद्र--एक राजा, जिसका गंगामाहात्म्य श्रवण
में, मंथरा के इस उत्पीडन को राम के वनवास का कारण करने के कारण उद्धार हुआ (पद्म. क्रि.३)।
बताया है (अग्नि. ५.८)।. मनोभवा---एक अप्सरा, जो कश्यप एवं मुनि की आनन्द रामायण में लिखा है कि, मंथरा कृष्णावतार कन्याओं में से एक थी।
के समय जन्म लेगी, तथा पूतना के रूप में कृष्ण के द्वारा मनोभुव-चाक्षुष मन्वन्तर का एक इन्द्र। मारो जायेगी (आ. रा. ९.५.३५)। अन्य स्थल पर कंस मनोरमा--एक अप्सरा, जो कश्यप एवं प्राधा की |
के यहाँ कुब्जा के रूप में अवतार लेने की बात भी कही कन्याओं में से एक थी। अर्जुन के जन्मोत्सव में यह गयी है (आ. रा. १.२.३)। उपस्थित थी।
इसी प्रकार पद्मपुराण के पाताल खण्ड के गौडीय पाठ २. ध्रुवसंधि राजा की पत्नी, जिसके पुत्र का नाम | (अध्याय १५), आनन्द रामायण (आ. रा. १.२.२) सुदर्शन था।
कृत्तिवास रामायण (२.४ ) में इसकी कथा प्राप्त है। ३. विद्याधराधिप इंदीवराक्ष नामक गंधर्व की कन्या | बाद के अनेक वृत्तान्तों में थरा को मोहित करने के लिए, (इंदीवराक्ष देखिये)।
सरस्वती के भेजे जाने का भी वर्णन मिलता है (अ. रा.
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