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________________ भीष्म प्राचीन चरित्रकोश भीष्म यह बालक और न हो कर, शंतनुपुत्र भीष्म ही था। सत्यवती की मोहकता ने शंतनु के हृदय में इतना किन्तु इतने दिनों के बाद देखने के कारण, वह उसे पहचान | घर कर लिया कि, वह दिन पर दिन चिन्ता में जलने लगा। न सका । जैसे ही शंतनु ने इसे देखा, वह तत्काल ही दृष्टि | भीष्म ने पिता की उदासीनता का कारण कई बार पूँछा, से ओझिंल हो गया । उसके मन में शंका हुयी, कहीं यह | किन्तु उसने इसे लज्जावश न बताया। आखिर एक दिन मेरा तो पुत्र नहीं ? यह बात मन में आते ही उसने गंगा | भीष्म को पता चल ही गया । पितृसुख के लिए स्वार्थत्याग को सम्बोधित कर पुत्र को पुनः दिखाने के लिए आग्रह | करने का निश्चय कर, यह उस धीवर के पास जा पहुँचा । किया। तब स्त्रीरूपधारणी गंगा, शुभ्र परिधानों तथा | वहाँ इसने धीवर से अपने पिता के लिए सत्यवती को बहुमूल्य अलंकारों को धारण किए हुए उपस्थित हुयीं। माँगा, किंतु उसने अबकी बार भी वही शर्त सामने रखी। अन्त में गंगा ने सपूंर्ण पूर्वकथन कहते हुए, अपने पुत्र | तब भीष्म ने आजन्म ब्रह्मचारी रह कर राज्यलोभ छोड़ कर, भीष्म को अपनी गोद से उतार कर, राजा शंतनु को दिया | सदैव सत्यवती के पुत्रों की रक्षा करते हुए, उसके द्वारा (.म. आ. ९४.३१)। हुए ज्येष्ठ पुत्र को ही राज्याधिकारी बनाने की प्रतिज्ञा की जिस समय गंगा ने भीष्म को दिया, उस समय उसका (म.आ. ९४.७९)। इसकी इस भयंकर प्रतिज्ञा सुन कर देवताओ ने पुष्पवर्षा करना आरम्भ किया, एवं इसे मातृहृदय शोक से विह्वल था, क्योंकि, जिस पुत्र का पालन पोषण किया, शिक्षादि दी, वही पुत्र आज उससे 'भीष्म' नाम दिया (म. आ. ९४.९३)। दूर जा रहा था। अंत में गंगा उस पुत्र को दे कर | शंतनु की मृत्यु-भीष्म सत्यवती को ले आया, जिसे अंतर्धान हो गयीं। | देखते ही पिता ने इसे आनंदित हो कर आशीर्वाद दिया, 'तुम 'इच्छामरणी' होगे' (म. आ. ९४.९४)। दृस्तिनापुर में-शंतनु ने गांगेय (भीष्म) को अपनी बाद में सत्यवती के चित्रांगद तथा विचित्रवीर्य नाम राजधानी हस्तिनापुर लाया, तथा शुभ मुहूर्त पर उसका युव- | के दो पुत्र हुए । उनमें से चित्रांगद को गद्दी पर बैठा कर राज्याभिषेक किया (म. आ. ९४.३८)। इस प्रकार भीष्म स्वयं राज्यभार ले कर राजकाज चलाता रहा। 'राज्यसूत्र को अपने हाथों में ले कर, यह अपने पिता की उग्रायुधवध-शन्तनु की मृत्यु के उपरांत, उसकी राज्यव्यवस्था की देखरेख करने लगा। इसकी योग्यता । मान्यता नवयौवना पत्नी सलवती को प्राप्त करने के लिए पड़ोस के एवं व्यवहार से समस्त प्रजा एवं अन्यजन प्रसन्न थे। राजा उग्रायुध ने भीष्म के पास सन्देश भेजा कि, यह भीष्मप्रतिज्ञा--गंगा के विरह में पीड़ित शंतनु को अपनी सौतीली माँ सत्यवती को उसके यहाँ भेज दे। कुछ भी न सूझता था। एक दिन जब वह मृगया के लिए किन्तु अपने पिता के शोक में विह्वल भीष्म ने इसका गया था, तो उसे पास ही कहीं किसी सुगन्ध का ज्ञान कोई उत्तर न दिया। इस पर क्रोधित होकर उग्रायुध ने हुआ। उस सुगन्ध को ढूंढ़ते ढूंढते, वह एक धीवरकन्या भीष्म पर चढाई करने के लिए सेनापति को आज्ञा दी। सत्यवती के पास आ खड़ा हुआ, जिसके शरीर से वह लोगों ने समझाया भी कि, भीष्म इस समय अशौच में है। मादक सुगन्ध चारों ओर फैल कर, वातावरण को भर रही अतएव इस समय उसे छेड़ना उचित नहीं । किन्तु थी। शंतनु उसकी उठती युवावस्था एवं कौमार्य को उग्रायुध ने भीष्म पर हमला कर दिया। युद्ध तीन दिन देख कर लुब्ध हो उठा, एवं धीवर से उसे प्राप्त करने की | तक चलता रहा, तथा उसके उपरांत, भीष्म ने उग्रायुध का इच्छा प्रकट की। किन्तु धीवर ने सत्यवती को देने से | वध किया (ह. वं.१.२०.४९-७१; म. शां. २७.१)। इन्कार करते हुए कहा, 'भीष्म के रहते हुए, सत्यवती का विचित्रवीर्य का राज्यारोहण-एक बार गंधर्वो से युद्ध भावी पुत्र राज्य नहीं प्राप्त कर सकता। आप उसके करता हुआ चित्रांगद उनके द्वारा मारा गया, तब सत्यवती भावी पुत्र को अपने उपरांत राज्याधिकारी घोषित करें, तो | की अनुमति से इसने विचित्रवीर्य को गद्दी पर बैठाया। मैं आप को सत्यवती को इसी क्षण दे सकता हूँ।' धीवर | किन्तु विचित्रवीर्य अभी छोटा ही था, अतएव राज्य की की यह बात सुनते ही शंतनु खिन्न हो उठा, एवं निराश पूरी देखदेख भीष्म ही करता था। विवाहयोग्य आयु हृदय वापस लौट आया, वयोंकि वह नहीं चाहता था होने के उपरांत, भीष्म ने उसके विवाह का निश्चय कि, भीष्म सा योग्य नेता राज्याधिकार से पदच्युत किया किया। इतने में इसे पता चला कि, काशिराज की तीन जाय। [ कन्याओं अंबा, अंबिका एवं अंबालिका की शादी के लिए ५७३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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