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________________ अर्जुन प्राचीन चरित्रकोश अर्जुन विपुल को, जो पांडु द्वारा नही जीता गया, जीता। आया। वहाँ चित्रांगदा तथा बभ्रुवाहन से मिल कर गोकर्ण पूर्व तथा पश्चिम दिशायें जीतीं । कुछ प्रतियों में तो कहा गया । वहाँ से प्रभासक्षेत्र में जाने पर कृष्णार्जुन मीलन है कि, अर्जुन ने पंद्रहवें वर्ष की उम्र में दिग्विजय किया हुआ। वहाँ से रैवतकपर्वत तथा द्वारका जा कर, कृष्ण (म. आ. १५१.४४.५० कुं.)। पांडवों की चारों तरफ की सहायता से सुभद्राहरण करने का इसने सोचा, तथा प्रसिद्धी होने के लिये, अर्जुन के पराक्रम का बहुत ही उसके लिये धर्मराज की संमति प्राप्त की । मृगया के उपयोग हुआ। आगे चल कर, जतुगृह से छुटकारा होने | निमित्त्य से बाहर गये अर्जुन ने, रैवतक पर्वत के देवताओं के बाद, सब पांडव ब्राहाणवेष में द्रौपदीस्वयंवर के लिये का दर्शन तथा प्रदक्षिणा किया। पश्चात् द्वारका वापिस जानेगये। राह में रात्रि के समय, अंगारपर्ण गंधर्व ने इन्हें वाली सुभद्रा को अपने रथ में बिठाया तथा वहाँ से पलायन रोका। तब उसका तथा अर्जुन का युद्ध हो कर अंगारपर्ण किया। पश्चात् अर्जुन का पक्ष ले कर, कृष्ण ने बलराम की का इस ने पराभव किया। अंगारपर्ण ने इसे चाक्षुषीविद्या ओर से.अर्जुन को निमंत्रण दिया, तथा बड़े धूमधाम से दी, तथा अर्जुन ने उसे अन्यस्त्र दे कर उसमे मैत्री | विवाह करवाया । वहाँ एक वर्ष रह कर, अर्जुन ने बाकी की (अंगारपर्ण देखिये)। पांचालनगरी में अर्जुन ने, दिन पुष्करतीर्थ में बिताये । परंतु निम्नलिखित लोकद्रौपदी के स्वयंवरार्थ लगाये गये मत्स्ययंत्रभेदन की शर्यत प्रसिद्ध कथा भी कुछ स्थानों पर वर्णित है । सुभद्रा के जीती, तथा द्रौपदी ने अर्जुन का वरण किया (म. आ. दुर्योधन से होनेवाले विवाह की वार्ता, अर्जुन को प्रभास१७९)। आगे चल कर, धृतराष्ट्र ने विदुर को भेज कर पांडवों क्षेत्र में मालूम हुई। उसे प्राप्त करने के लिये, त्रिदण्डी को हस्तिनापुर से वापस लाया। एक बार, आयुधा- सन्यास ले कर द्वारका में चातुर्मास बिताने का निश्चय इसने गार में युधिष्ठिर तथा द्रौपदी जब एकांत में थे, तब अर्जुन को किया। वहाँ सब पौरजनों में यह अत्यंत प्रसिद्ध हुआ। तब विवश हो कर वहाँ जाना पडा । कोई ब्राह्मणों की यज्ञीय बलराम ने भी इसे अपने घर में भोजन का निमंत्रण दिया। गौओं चोरी हो गई थीं, इस लिये वे राजा को सूचना देने | सीधे साधे भोले बलराम इसे पहचान न सके। वहाँ सुभद्रा आये थे । अर्जुन ने निर्भय होने का आश्वासन उन्हें दिया | तथा अर्जुन की दृष्टिभेट हुई । यात्रा के लिये, शहर से बाहर तथा अयुधागार से शस्त्र ले कर गायें वापस लोटा कर लाई। गई हुई सुभद्रा को रथ में डाल कर अर्जुन ने हरण कर युधिष्ठिर तथा द्रौपदी को एकांत में देखा, इस लिये नियत लिया, तथा विरोधकों को मार भगाया । अर्जुन के त्रिदण्डी शर्त के अनुसार यह बारह महीनों तक तीर्थाटन करने | संन्यास की कथा भागवत तथा महाभारत की कुंभकोणम् गया (म. आ. २०५)। प्रति में ही केवल है (भा. १०.८६; म. आ. २३८.४ कुं.)। तीर्थयात्रा-अर्जुन ने इस तीर्थाटन काल में, कौख्य स्कन्दपुराण में भी अर्जुन की तीर्थयात्रा का उल्लेख है नाग की उलूपी नामक कन्या से, पाताल में विवाह | तथा नारद ने अर्जुन को अनेक क्षेत्रों का महात्म्य कथन किया (म. आ. २०६) । तदनंतर यह हिमालय पर गया । किया है ( स्कन्द.१.२.१.५)। वहाँ से बिंदुतीर्थ पर गया । वहाँ से, पूर्व की ओर मुड कर | वस्तुप्राप्ति -अर्जुन को अनेक व्यक्तियों से भिन्न वस्तु उत्पलिनी नदी, नंदा, अपरनंदा, कौशिकी, महानदी, गया प्राप्त होने का उल्लेख है । मय ने बिंदुसर पर से उत्तम तथा गंगा नामक तीर्थस्थान इसने देखे। वहाँ से अंग, | आवाज करनेवाला देवदत्त नामक बारुण महाशंख अर्जुन वंग तथा कलिंग देश देख कर, यह समुद्र की ओर मुड़ा। कों दिया (म. स. ३.७.१८)। उसी प्रकार, अग्नि ने महेंद्र पर्वत पर से मणिपूर के राज्य में प्रविष्ट हुआ। अर्जुन को, खांडववन भक्षणार्थ देने के उपलक्ष में, गांडीव मणिपूर के राजा चित्रवाहन की चित्रांगदा नामक एक सुन्दरी | धनुष्य, दो अक्षय तूणीर, कपिध्वजयुक्त. सफेद अश्वों का कन्या थी । अर्जुन ने उसे अपने लिये मांग लिया। राजा | रथ, आदि चीजें दी (म. आ. ५५.३७; २५१ कुं.)। ने इस शर्त पर कन्या दी कि, कन्या का पुत्र उसे मिले। ये सारी चीजें अग्नि ने वरुण से तथा वरुण ने सोम से प्राप्त अर्जुन मणिपूर में तीन वर्ष रहा । उस अवधी में चित्रा- की थी। अर्जुन यद्यपि इन्द्रांश से उत्पन्न हुआ था, तथापि गदा को एक पुत्र हुआ। उसका नाम बभ्रुवाहन । आगे खांडवदाह के समय वर्षा कर के विरोध करने के कारण, मगरो के कारण, सब के द्वारा त्यक्त पंचतीर्थ में से सौभद्रतीर्थ इन्द्र का अर्जुन से युद्ध हुआ, तथा उसमें इन्द्र को पीछे पर अर्जुन प्रथम गया, तथा वहाँ शाप से मगर बनी हुई हटना पडा (म. आ. २१८)। आगे चल कर, इन्द्र ने अप्सराओं का उद्धार कर के, पुनश्च मणिपूर वापस इसे कवच तथा कुंडल दिये (म. व. १७१.४)।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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