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भरद्वाज
प्राचीन चरित्रकोश
भरद्वाज
अर्कोसिया एवं ड्रेजियाना में रहनेवाले थे। किंतु | भरद्वाज के नामकरण के सम्बन्ध में अनेकानेक कथाएँ इसके बारे में प्रमाणित रूप से कहना कठिन है। । पुराणों में प्राप्त है, इसका नाम भरद्वाज क्यों पडा ? वेदों का अथांगत्व--तैत्तरीय ब्राह्मण में, भरद्वाज के
(वायु. ९९.१४०-१५०; मत्स्य ४९.१७-२५, विष्णु. वेदाध्ययन के बारे में एक कथा दी गयी है । एक बार
४.१९.५-७)। किन्तु वे बहुत सी कथाएँ कपोलकल्पित भरद्वाज ऋषि ने समस्त वेदों का अध्ययन करना आरम्भ
प्रतीत होती है। महाभारत के अनुसार, इसके जन्मो
उपरांत बृहस्पति तथा ममता में यह विवाद हुआ कि, किया। किन्तु समय की न्यूनता के कारण यह कार्य पूरा न
इसके संरक्षण का भार कौन ले । दोनों ने एक दूसरे से कर सका, अतएव इसने इन्द्र की तपस्या करना आरंभ
कहा, 'तुम इसे संभालों ( भरद्वाजमिमम् ) '। इसी किया । इन्द्र को प्रसन्न कर इसने यह वरदान प्राप्त किया
कारण इसका नाम भरद्वाज पड़ा (म. अनु. १४२.३१ कुं.)। कि, यह सौ सौ वर्ष के तीन जन्म प्राप्त करेगा, जिनमें वेदों का सम्पूर्ण ज्ञानग्रहण कर सके।
इस प्रकार ममता तथा बृहस्पति का इसके संभालने
के सम्बन्ध में विवाद चलता रहा। यह देखकर वैशालीयह तीन जन्म ले कर वेदों का अध्ययन करता रहा, | नरेश मरुत्त ने भरद्वाज का पालनपोषण किया । बृहदेवता किन्तु सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त न कर सका । इससे दुःखी होकर |
में कहा गया है कि, इसका पालन पोषण मरुत् देवता ने यह रुग्णावस्था में चिन्तित पड़ा था कि, इन्द्र ने इसे दर्शन किया (बृहद्दे. ५.१०२.१०३)। किन्तु यह ठीक नही दिया। इसने इन्द्र से वेदों के ज्ञान की पूर्णता प्राप्त के जान पडता। इसका पालनापोषण वैशाली नरेश मरुत्त लिए पुनः एक जन्म प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की।।
ने ही किया होगा, क्योंकि बृहस्पति वैशाली देश का इन्द्र ने इसे समझाने के लिए समस्त वेदों को तीन भागों
राजगुरु था । पुराणों में भी बृहद्देवता की बात दुहरायी में विभाजित कर दिये, जो पर्वताकार रूप में विशाल थे ।
गयी है कि, भरद्वाज के मातापिता ने जब इसको त्याग फिर उनमें से एक ढेर से मुठी भर वेदज्ञान को उठा कर |
का उठा कर | दिया, तब मरुत् देवता ने इसका पालन पोषण किया उसके एक कण को दिखाते हुए इंद्र ने इसे कहा, ' तीन
| (भा. ९,२०, विष्णु. ४. १९; मस्त्य. ४९; वायु. ९९. जन्मों में तुमने इतना ज्ञान इतने परिश्रम से प्राप्त किया है,
१४०-१५७; ब्रह्मांड. २. ३८)। • और क्या, तुम इन पर्वताकार रूपी वेदाध्ययन को एक जन्म
वैशाली के पश्चिम में स्थित काशी देश का राजा में प्राप्त वर लोगे ? यह असम्भव है । तुम अपनी इस हठ
| सुदेवपुत्र दिवोदास था, आगे चल कर यह उसका को छोड़कर मेरी शरण में आकर मेरा कहना मानो । सम्पूर्ण |
पुरोहित बना । यह दिवोदास राजा वही है, जिसने वेद ज्ञान प्राप्त करने के लिए तुम ' सावित्राग्निचयन' यज्ञ |
वाराणसी नगरी की स्थापना की थी। एक बार हैहयराजा करो । इसीसे तुम्हारी जिज्ञासा पूर्ण होगी तथा तुम्हे स्वर्ग |
वीतहत्य ने काशी देश पर आक्रमण कर दिवोदास को • की प्राप्ति होगी।' इस प्रकार इन्द्र के आदेशानुसार
ऐसा परास्त किया कि, उसे भगा कर भरद्वाज के घर में इसने उक्त यज्ञ सम्पन्न करके यह स्वर्ग का अधिकारी बना
शरण लेनी पड़ी। बाद में भरद्वाज ने दिवोदास राजा के (तै. ब्रा. ३.१०.९-११)। 'सावित्राग्निचयन' की यही
पुत्रप्राप्ति के लिए एक यज्ञ किया, जिससे प्रतर्दन नामक विद्या आगे चलकर अहोरात्राभिमानी देवताओं ने
पुत्र उत्पन्न हुआ (म. अनु. ३०.३०.)। महाभारत विदेहपति जनक को दी थी।
के अनुसार, केवल भरद्वाज ऋषि के ही कारण, आगे२. अंगिरसवंशीय सुविख्यात ऋषि, जो बृहस्पति | चल कर, प्रतर्दन राजा वीतहव्य तथा ऐलों को पराजित कर, अंगिरसू ऋषि का पुत्र था। यह एवं इसके पिता बृहस्पति | अपने पिता की गद्दी को प्राप्त कर काशीनरेश हो सका दोनों वैशाली देश के रहने वाले थे, जहाँ मरुत्त राजाओं (म. अनु. ३४.१७) । पंचविंश ब्राह्मण में भी इसी कथा का राज्य था। बृहस्पति का पुत्र होने के कारण इसे 'भर- का निर्देश प्राप्त है (पं. ब्रा. १५.३.७; क. सं. २१.१०)। द्वज बार्हस्पत्य,' एवं उशिज का वंशज होने के कारण इसे | पुराणों के अनुसार, मरुत्त राजाओं ने भरद्वाज ऋषि को 'भरद्वाज औशिज' भी कहा जाता है । यह त्रेतायुग के | सुविख्यात पूरुवंशीय राजा भरत को पुत्र रूप में प्रदान प्रारम्भ काल में हुआ था । बृहस्पति का एक भाई उचथ्य | किया था (वायु. ९९.१५१, मस्त्य. ४९.२६)। वायु था, जिसकी पत्नी का नाम ममता था । ममता से बृहस्पति । एवं मस्त्य के इन कथनों को मान्यता देने के पूर्व हमें द्वारा उत्पन्न पुत्र ही भरद्वाज है ।
| यह भी समझना चाहिए कि, यह राजा भरत के एक दो ५४९