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बृहस्पति
प्राचीन चरित्रकोश
बृहस्पति
हुयी।
परिवार--बृहस्पति की पत्नियाँ, एवं पुत्रों के बारे में नामक वसु की पत्नी थी, तथा उससे उसे विश्वकर्मन् अनेक निर्देश महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है। किंतु, नामक पुत्र पैदा हुआ था। वहाँ देवता बृहस्पति, देवगुरु बृहसति एवं बृहस्पति ४. एक तत्वज्ञ आचार्य, जिसने धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र,
अंगिरस इन तीन स्वतंत्र व्यक्तियों के बारे में पृथगात्मता | अर्थशास्त्र, एवं व्याकरणशास्त्र पर अनेक ग्रंथों की रचना नही है, एवं इन तीनों को बहुत बूरी तरह संमिश्रित की थी। किया गया है। उदाहरणार्थ, तारा की कथा में, बृहस्पति | इसके द्वारा लिखित 'बृहस्पतिस्मृति' नामक एक ही को देवगुरु एवं आंगिरस कहा गया है (मत्स्य. ८३.३०; ग्रंथ मुद्रित रूप में प्राप्त है। किंतु कौटिलीय अर्थशास्त्र, विष्णु. ४.६.७)। देवगुरु बृहस्पति को भी, अनेक स्थानों कामंदकीय नीतिसार, याज्ञवल्क्यस्मृति, अपरार्क, स्मृति.. पर, आंगिरस कहा गया है, एवं बृहस्पति आंगिरस को चंद्रिका आदि विभिन्न विषयक ग्रंथों में, इसके मत एवं अनेक स्थानों पर देवगुरु कहा गया है । वस्तुतः इन तीनों इसके ग्रंथों के उद्धरण प्राप्त है, जिनसे प्रतीत होता है कि, व्यक्तियाँ संपूर्णतः विभिन्न थी, जैसे कि ऊपर बताया गया। इसके द्वारा धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, व्याकरणशास्त्र,
वास्तुशास्त्र, अदि विषयों पर काफी ग्रंथरचना की गई इस कारण, बृहस्पति की पत्नियाँ एवं पुत्रों के जो नाम होगा। पुराणों में प्राप्त हैं, वे निश्चित कौन से बहस्पति से संबधित बृहस्पति के द्वारा लिखित 'बृहस्पतिस्मृति' नामक जो है, यह कहना असंभव है।
ग्रंथ सांप्रत उपलब्ध है, वह अत्यधिक छोटा है, उसमें
केवळ अस्सी श्लोक हैं, एवं उसे आनंदाश्रम पूना ने बृहस्पति को तारा (चांद्रमसी) एवं शुभा नामक दो
प्रकाशित किया है । जीवानंद के संग्रह में भी इसके नाम पत्नियाँ थी। कई ग्रंथों में, प्रजापति की कन्या उषा को भी
पर एक छोटी स्मृति है, किन्तु उसमें दानप्रशंसा आदि बहस्पति की पत्नी बताया गया है। उनमें से शुभा से इसे
साधारण विषयों की चर्चा की गयी है। . सात कन्याँ, एवं तारा से सात पुत्र एवं एक कन्या उत्पन्न
___ अपरार्क आदि स्मृतियों में बृहस्पतिस्मृति के काफी
उद्धरण लिये गये हैं, जिनसे इसकी मूल स्मृति की महत्ता शुभा की कन्याओं के नाम इस प्रकार थे:-भानुमती, |
का अनुमान किया जा सकता है । मुकदमों के दो प्रकारों रागा, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनिवाली एवं |
(फौजदारी तथा दीवानी) का प्रचलन सर्वप्रथम इसके द्वारा हविष्मती । तारा को अग्नि के नाम धारण करनेवाले सात ही किया गया है। इसने ही सर्वप्रथम यह विधान रक्खा पुत्र उत्पन्न हुए, जिनक नाम इस प्रकार याशयु, निश्ववन, कि, जिन विधवाओं का पुत्र न हों, उन्हे पति के मृत्यु के विश्वभुज, विश्वजित् , वडवाग्नि, एवं स्विष्टकृत । उतथ्य नामक
बाद समस्त संपत्ति की अधिकारणी समझा जाय । वात्स्यायन अपने भाई की पत्नी ममता से इसे भरद्वाज नामक एक
कामसूत्र में इसके मतों का निर्देश प्राप्त है । राजा के सोलह पुत्र उत्पन्न हुआ था, जिसे इसने 'आग्नेयास्त्र' प्रदान
प्रधान होने चाहिये, ऐसा इसका ,अभिमत था, जो कौटिल्य किया था।
अर्थशास्त्र में निर्दिष्ट है । इसकी 'स्मृति' में नाणक, __ तारा की कन्या का नाम स्वाहा था, जो वैश्वानर अग्नि | दीनार आदि सिक्कों की जानकारी प्राप्त है। बृहस्पति, की पत्नी थी (स्वाहा २. देखिये)।
आंगिरस, नारद एवं भृगु इन चार ऋषियों ने मनुस्मृति कुशध्वज (कच) नामक इसके और एक पुत्र का को चार विभागो में विभक्त करने का निर्देश प्राप्त है। निर्देश महाभारत में अनेक बार आता है (म. अनु. इन चार आचार्यों में बृहस्पति के मत संपूर्णतः मनु के २६; कच २. देखिये)। किन्तु बृहस्पतिपत्नियों में | अनुकूल हैं। से कौनसी पत्नी से वह उत्पन्न हुआ था, यह - कहना | अपरार्क एवं कात्यायन द्वारा लिये गये इसके उद्धरणों मुष्किल है, क्यों कि, शुभा एवं तारा के पुत्रों में कही भी एवं नाणक एवं दीनार सिक्कों के आधार पर अनुमान कच का नाम प्राप्त नहीं होता है।
किया गया है कि, धर्मशास्त्रकार बृहस्पति का समय दूसरी द्रोणाचार्य की उत्पत्ति भी बृहस्पति के अंश से ही शताब्दी ईसा उपरांत होगा। हुई थी, ऐसा माना जाता है। बृहस्पति की भुवना नामक | वायु में बृहस्पति द्वारा किये गये इतिहास पुराण एक ब्रह्मवादिनी एवं योगपरायण बहन थी, जो प्रभास विषयक प्रवचन का निर्देश प्राप्त है, एवं 'अष्टांगहृदय' में
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