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________________ प्रभंजन प्राचीन चरित्रकोश प्रभावती दिया, 'तुम्हारे वंश में कोई व्यक्ति निःसंतान न होगा। ३. अलकापुरी की एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्र के पर हर व्यक्ति के केवल एक एक ही संतान होगी, उससे स्वागतसमारोह में नृत्य किया था (म. अनु. १९.४५)। अधिक नहीं।' ४. (स्वा. उत्तान.) पुष्पार्ण राजाकी दो स्त्रियों में से वरप्राप्ति के उपरांत, इसके कुल में हर एक को एक एक (भा. ४.१३.१३)। एक पुत्र हुआ, और चित्रवाहन तक राज्य चलता रहा। ५. स्वर्भानु नामक दानव की कन्या, जिसका विवाह किन्तु चित्रवाहन के चित्रांगदा नामक कन्या हुयी। आयु राजा से हुआ था। इसे नहुष आदि पुत्र थे (ब्रह्मांड. चित्रवाहन राजा को इसी कन्या के द्वारा बंश आगे ३.६.२६)। चलाना था। इसलिए चित्रवाहन ने 'दौहित्राधिकार के । ६. सगर की सुमति नामक ज्येष्ठ पत्नी का नामांतर । शर्त पर, यह कन्या अर्जन को दी। पश्चात चित्रांगदा को इससे ही सगर को साठ हज़ार पुत्र हुये थे (मत्स्य. १२. अर्जुन से बभ्रुवाहन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे चित्र- ३९-४२)। वाहन ने मणिपुर का राज्य प्रदान किया (म. आ. | | ७. मद्रदेश का राजा प्रियव्रत की एक पत्नी (प्रियव्रत २०७)। ३. देखिये)। २. गंधवती नगरी का राजा । दस हजार वर्षों तक शिव | प्रभाकर-अत्रिकुल का एक महान् ऋषि, जिसका की आराधना कर के इसने 'दिगपालत्व' प्राप्त किया। विवाह पूरुवशाय राद्राश्व ( भद्राश्व ) का घृताचा अप्सरा इसके पुत्र का नाम पूतात्मन् था (स्कन्द. ४.१.१३)। से उत्पन्न दस कन्याओं से हुआ था। इसकी पत्नियों के नाम इस प्रकार थे-रुद्रा, शूद्रा, भद्रा, मलदा, मलहा, ३. क्षत्रियकुलोत्पन्न एक राजा । बालक को स्तनपान कराती हुई हिरनी को बाण से इसने मारा। उसके द्वारा खलदा, नलदा, सुरसा, गोचपला तथा स्त्रीरत्नकूटा। दिये गये शाप के कारण, १०० वर्षों तक इसे व्याघ्र राहु से ग्रसित सूर्य को देखकर उसे कष्ट से उबारने योनि में रहना पड़ा। व्याघयोनि में जब इसे नंदा नामक के लिए, इसने 'स्वस्ति' कहा, जिससे सूर्य कष्ट से . गाय ने उपदेश दिया, तब यह व्याघ्रदेह को नष्ट कर पुनः मुक्तता पा कर पुनः पूर्व की भाँति प्रकाशित होने लगा। इस पुण्यकृत्य के कारण इसे प्रभाकर नाम प्राप्त हुआ। राजदेह प्राप्त कर सका (पद्म. स. १८)। ज्ञानगरिमा तथा योग्यता के बल पर इसने अत्रिकुल के : प्रभंद्रक-पांचालो का एक क्षत्रियदल, जो भारतीय गौरव को संवर्धित किया। • युद्ध में पांडवो के पक्ष में शामिल था (म. उ. ५६.३३)। ___ एक बार इसने यज्ञ किया, जिसके उपलक्ष में देवों ने ये युद्ध में अजेय थे, एवं प्रायः द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न तथा विपुल धनराशि के साथ साथ इसे दस पुत्र प्रदान किये। शिलणडी का अनुगमन करते थे (म. भी.१९.२१-२२; उनमें से प्रमुख इस प्रकार थे:--स्वस्ति, आत्रेय, कक्षेय, ५२.१४ )। संस्त्रय, सभानर, चाक्षुष तथा परमन्यु (ह. वं. १.३१. ये अधिकतर शल्य द्वारा मारे गये (म. श. १०. ८-१७)। २१)। जो व्यक्ति शल्य के द्वारा बाकी बचे थे, वे अश्व २. एक कश्यपवंशीय नाग। स्थामा द्वारा रात्रिसंहार में मारे गये (म. सौ. ८.६१)। । ३. सुतप देवों में से एक । प्रभद्रा--अंगराज कर्ण के पुत्र वृषकेतु की पत्नी। प्रभाता--धर्म की पत्नी वसु का नामांतर । प्राचेतस इसे भद्रावती नामांतर भी प्राप्त है (जै. अ. ६३)। दक्ष की कन्या एवं धर्म की पत्नी वसु को कल्यभेदानुसार प्रभव--एक देव, जो भृगु तथा पौलोमी के पुत्रों में प्रभाता, धूम्रा आदि नाम प्राप्त थे (वसु १५. देखिये)। से एक था। प्रत्यूष तथा प्रभास नामक दो वसु इसके पुत्र माने जाते प्रभा-विवस्वान् आदित्य की पत्नी, जिसकी संज्ञा हैं (म. आ. ६०.१९)। तथा राजी नामक दो सौतें थीं। इसके पुत्र का नाम प्रभात प्रभानु--श्रीकृष्ण का सत्यभामा से उत्पन्न पुत्र (भा. था (पद्म. स. ८)। १०.६१.१०)। २. देवमाताओं में से एक, जो ब्रह्मा के सभा में रहकर प्रभावती--मेरुसावर्णि की कन्या स्वयंप्रभा का उनकी उपासना करती थी (म. स. ११.१३२%, पंक्ति नामांतर ( स्वयंप्रभा देखिये; म. व. २६६.४१)। यह १)। इसके नाम के लिए 'प्राधा' पाठभेद उपलब्ध है। एक तपस्विनी थी, जो मय दानव के निवासस्थान पर प्रा. च. ६०]
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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