SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन चरित्रकोश प्रजापति 'विश्वे प्रजानां पतयो येभ्यो लोका विनिसृताः ' ( मस्त्य. १७१.२५ ) । प्रजापतियों की संख्या--प्रजापतियों की संख्या के बारे में कहीं भी एकवाक्यता नहीं है। पुराणों में प्रजापतियों की संख्याओं के लिये, सात, तेरह, चौदह, इक्कीस आदि भिन्न भिन्न संख्यायें प्राप्त हैं। बहुत सारे पुराणों में निम्नलिखित व्यक्तियों का निर्देश प्रजापति के नाम से किया गया है—मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, दक्ष, वसिष्ठ, भृगु, नारद । वायु, ब्रह्मांड, गरुड़, मत्स्य एवं महाभारत में ‘अन्य', 'बहवः ' ऐसा निर्देश कर, और भी कई व्यक्तियों की नामावली प्रजापति के नाम से दी गयी है। जिस व्यक्ति के संतति की संख्या अधिक हो, उसे प्रजापति की संज्ञा पुराणों में प्रदान की गयी दिखती है। पुराणों में बहुत सारी जगहों पर प्रजापति को समस्त सृष्टि का सृजन करनेवाले ब्रह्मा से समीकृत किया गया है । कई जगह इसे व्यास भी कहा गया है ( व्यास देखिये) । प्रजापतियों की नामावलि – विभिन्न पुराणों में प्रजा पतियों की नामावलि निम्नप्रकार से दी गयी है- (१) वायु एवं ब्रह्मांडपुराण -- कर्दम, कश्यप, शेष, `विक्रांत, सुश्रवस्, बहुपुत्र, कुमार, विवस्वत्, अरिष्टनेमि, बहुल, कुशोच्चय, वालखिल्य, संभूत, परमर्षय, मनोजव, . सर्वगत, सर्वभोग ( वायु. ६५.४८; ब्रह्मांड. २.९.२१; ३.१) । (२) गरुड़ पुराण -- धर्म, रुद्र, मनु, सनक, सनातन, सनत्कुमार, रुचि, श्रद्धा, पितर, बर्हिषद, अग्निष्वात्त, कव्यादान, दीप्यान, आज्यपान (गरुड़ . १.५ ) । (३) मस्त्य पुराण -- गौतम, हस्तींद्र, सुकृत, मूर्ति, अपू, ज्योति, त्र्यय, स्मय । मस्त्य में निर्दिष्ट ये सारे प्रजापति स्वायंभुव मन्वन्तर में पैदा हुए थे ( मस्त्य. ९. ९-१०; १७१.२७ ) । प्रजापति के पुत्र का नाम प्रजापति अरिष्टनेमि अथवा कश्यप था, जिसका विवाह दक्ष की कन्याओं से हुआ था । उसी कश्यप से सारी सृष्टि का निर्माण हुआ। यादवों के चक्रवर्ति राजा शशबिन्दु को भी महाभारत में एक जगह प्रजापति कहा गया है ( म. शां. २००.११-१३ ) । ब्रह्मांड के अनुसार, हर एक कल्प में, नयी नयी सृष्टि का निर्माण करना प्रजापति का कार्य रहा है। स्वायंभुव फिर ब्रह्मा ने स्वयं कन्या को उत्पन्न कर उसे दक्ष को मन्वन्तर के प्रजापति को कोई संतान न होती थी । दिया । पश्चात्, दक्ष ने अनेक कन्यायें उत्पन्न कर उन्हें उस मन्वन्तर के प्रजापतियों को प्रदान किया । किन्तु दक्षयज्ञ के संहार में शंकर ने सारे प्रजापतियों को दग्ध कर दिया ( ब्रह्मांड. २.९.३१-६७ )। पद्म के अनुसार, रोहिणी नक्षत्र की देवता प्रजापति माना गया है। प्रजापति को जब शनि की पीड़ा होती है, तब सृष्टि का संहार (लोकक्षय) होता है (पद्म. उ. ३३ ) । ३. एक धर्मशास्त्रकार। बौधायन के धर्मसूत्र में, प्रजापति के धर्मशास्त्रविषयक मत ग्राह्य माने गये हैं (बौ. ध. २. ४. १५; २. १०.७१ ) । वसिष्ठ ने भी अपने धर्मशास्त्र में इसके मतों का अनेक बार निर्देश किया है (व. ध. ३. ४७, १४.१६.१९; २४ - २५, ३०-३२ ) । बौधायन तथा वसिष्ठ धर्मसूत्रों में निर्दिशित प्रजापति के सारे इलोक मनुस्मृति में पुनः प्राप्त हैं। इसी के आधार पर कहा जा सकता है कि, बौधायन तथा वसिष्ठ ने प्रजापति को मनु का ही नामांतर माना है । आनंदाश्रम संग्रह में ( ९० - ९८ ), प्रजापति, की श्राद्धविषयक एक स्मृति दी गयी है, जिसमें एक सौ अट्ठान्नवे श्लोक हैं। ये श्लोक अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा, उपजाति, वसंततिलका तथा स्रग्धरा वृत्तों में हैं। इस स्मृति में कल्पशास्त्र, स्मृति, धर्मशास्त्र तथा पुराणों पर विचार किया गया है । ' कन्या ' एवं ' वृश्चिक राशियों के बारे में प्रजापति स्मृति में एक श्लोक प्राप्त है, जिसे कार्ष्णाजिनि ने उद्धृत किया है । अशौच एवं प्रायश्चित के बारे में प्रजापति श्लोक मिताक्षरा में दिये गये हैं (याज्ञ. ३. २५.२६० ) । पदार्थशुद्धि, श्राद्ध, गवाह, 'दिव्य' तथा अशौच के सम्बन्ध में इसके श्लोक ‘ अपरार्क' ने उद्धृत किये हैं । किन्तु वे श्लोक मुद्रित प्रजापतिस्मृति में अप्राप्य हैं । ' परिव्राजक' के सम्बन्ध में इसका एक गद्य उद्धरण भी 'अपरार्क' मे दिया गया है ( अपरार्क. ९५२ ) । (४) महाभारत - रुद्र, भृगु, धर्म, तप, यम, मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह क्रतु, वसिष्ठ, चन्द्रमा, क्रोध, विक्रीत, बृहस्पति, स्थाणु, मनु, क, परमेष्ठिन्, दक्ष, सप्त पुत्र, कश्यप, कर्दम, प्रल्हाद, सनातन, प्राचीनवर्हि, दक्ष प्राचेतस, सोम, अर्यमन्, शशबिंदुपुत्र, गौतम ( म. स. ११.१४; शां. २०१; भा. ३.१२.२१ ) । महाभारत में मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप को प्रजापति कहा गया है, एवं उसे मनुष्य, देव एवं राक्षसों का आदि पुरुष कहा गया है। महाभारत के अनुसार, मरीचि ऋि प्रा. च. ५९ ] ४६५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy