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________________ परशुराम 'राम भागवेय' नामक एक वैदिक ऋषि का नाम एक सूक्तद्रष्टा । सूक्ता के रूप में आया है (ऋ. १०.११० ) । 'सर्वांनु क्रमणी' के अनुसार यही परशुराम है । 'राम भार्गवेय' श्यापर्ण लोगों का पुरोहित था राम भार्गवेय एवं । परशुराम एक ही थे यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा प्राचीन चरित्रकोश सकता । हैहय राजा कार्तवीर्य एवं परशुराम के युद्ध का निर्देश अथर्ववेद में संक्षिप्त रूप में आया है (अ. वे. ५.१८०१०) अथर्ववेद के अनुसार, कार्तवीर्य राजा ने ममि ऋषि जमदग्नि की धेनु हठात् से जाने का प्रयत्न किया। इसीलिये परशुभम द्वारा कार्तवीर्य एवं उसके वंश का पराभव हुआ। परशुराम महर्षि जमदग्नि के पाँच पुत्रों में से कनिष्ठ पुत्र था। इसकी माता का नाम 'कामली रेणुका' था जो इक्ष्वाकु वंश के राजा की पुत्री थी। परशुराम धनुर्विद्या मैं ही नहीं, बल्कि अन्य सभी अस्त्र-शस्त्र सम्बन्धी विद्याओं । प्रवीण था (ब्रह्म. १०) । यह विष्णु का अवतार था (पद्म, उ. २४८ मरस्य ४७.२४४ वायु. ९९.८८९ २६.९०)) इसका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था (रेणु. १४) । यह १९ वें त्रेतायुग में उत्पन्न हुआ था (दे. भा. ४.१६ ) । त्रेता तथा द्वापर युगों के संधिकाल में परशुराम का अवतार हुआ था (म. आ. २:३) । शिक्षा -- उपनयन के उपरांत यह शाख्याम पर्वत पर गया । वहाँ कश्यप ने इसे मंत्रोपदेश दिया ( पद्म. ३. २४१ ) । इसके अतिरिक्त इसने शहर को प्रसन्न कर धनुर्वेद, शस्त्रास्त्रविद्या एवं मंत्र प्रयोगादि का ज्ञान प्राप्त किया (रेणु, १५. ३.२२-५६-६० ) । शिष्य तपस्या से वापस आते समय राह में शालग्राम शिखर पर शान्ता के पुत्र को लकड़बग्घे से मुक्त करा कर यह उसे अपने साथ ले आया । वही आगे चल कर, अकृतत्रण नाम से परशुराम का शिष्य प्रसिद्ध हुआ । आश्रम - जमदग्नि का आश्रम नर्मदा के तट पर था (ब्रह्मांड. ३.२३.२६ ) । परशुराम का आश्रम भी वही था। - परशुराम भजेय हो, तथा स्वेच्छा पर ही मृत्यु को प्राप्त हो सकते हो ( विष्णुधर्म. १,३६.११ ) | अविद्या- परशराम को निम्नलिखित भन्छ-त्रों की जानकारी प्राप्त थी: 3 १ ब्रह्मास्त्र, २ वैष्णव, ३ रौद्र, ४ आग्नेय, ५ वासव, ६ नैर्ऋत, ७ याम्य, ८ कौबेर, ९ वारुण, १० वायव्य, ११ सीम्य १२ सौर, १२ पार्वत, १४ चन, १५ बज्र, चक्र, १६ पाश, १७ सर्व १८ गांधर्व, १९ स्वापन, २० भीत २१ पाशुप्त २२ ऐशीक, २३ सर्जन, २४ प्रास २५ भारुड, २६ नर्तन, २७ अस्त्ररोधन, २८ आदित्य, २९ रेवत, २० मानय ३१ अक्षिवर्जन, १२ भीम, ३३ जृम्भण, ३४ रोधन, २५ सौपर्ण, २६ पर्जन्य, २० राक्षस, २८ मोहन, ३९ कालाख, ४० दानवास्त्र, ४१ ब्रह्मशिरस ( विष्णुधर्म २.५० ) । हैहयों से शत्रुत्व -- हैहय राजा कृतवीर्य ने अपने कुलगुरु 'ऋचीक और्व भार्गव' को बहुत धन दिया था । पश्चात् वह धन वापस करने का ऋचीक ने इन्कार कर दिया। उस कारण कृतवीय का पुत्र सहस्रार्जुन कार्तवीर्य अर्जुन) ( ने ऋचीक के उपर हाथ चलाया, जिस कारण अपने अन्य भार्गव बांधवों के साथ वह कान्यकुब्ज को भाग गया । ऋचीक स्वयं अत्यंत स्वाभिमानी एवं अस्त्रविद्या में कुशल था कान्यकुब्ज पहुँचते ही हैहयों से अपमान का लेने की वह कोशिश करने लगा। उस कार्य के लिये, इसने नाना प्रकार के शस्त्रास्त्र इकट्ठा किये एवं उत्तर भारत के शक्तिशाली राजाओं को अपने पक्ष में खाने का प्रयत्न करने लगा। इस हेतु से मान्यकुब्ज देश के गाधि राजा की कन्या सत्यवती के साथ विवाह किया एवं अपने पुत्र जमदशि का विवाह अयोध्या के राजवंश में से रेणु राजा की कन्या रेणुका के साथ कराया। इस तरह, कान्यकुब्ज एवं अयोध्या के ये दो देश भार्गवों के पक्ष में आ गये । , कामधेनुहरण -- जमदग्नि पराक्रमी एवं अस्त्रविद्या निपुण था। पर उसका पुत्र परशुराम उससे भी अधिक पराक्रमी था। एक बार परशुराम जब तप करने गया था, तब कार्तवीर्य अर्जुन जमदग्नि से मिलने उसके आश्रम में आया । तपश्चर्या को जाने के पहले, अपनी कामधेनु नामक गौ परशुराम ने अपने पिता जगदमि के पास अमानत रूप मे रखी थी । कार्तवीर्य ने उसे जमदग्नि से छीनने की कोशिश की। कामधेनु के शरीर से उत्पन्न हुये हजारों यवनों ने कार्तवीर्य का वध करने का प्रयत्न किया। किंतु अंत में रेणुकावध – एक बार जमःशि रेणुका पर क्रोधित हुये तथा परशुराम को उसका वध करने की आशा दी, जिसका परशुराम ने तुरन्त पालन किया ( म. व. ११६.१४ ) । मनि इस पर प्रसन्न हुये तथा इनकी इच्छानुसार रेणुका को पुनः जीवित कर इसे वरदान दिया- तुम | ३८९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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