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पणि
प्राचीन चरित्रकोश
पतंजलि
प्रयोग किया गया हैं (ऋ. ७.६.३)। इन्हें 'वैरदेय' | को मृत्यु के पश्चात् 'धूम्रशरीर की प्राप्ति हो गयी (जै. कह कर मनुष्यों से हीन माना गया है (ऋ. ५.६१.८)। | उ. ब्रा. ३.३०.३)। कृपण के रूप में, पणि वैदिक यज्ञकर्ताओं के विरोधी
| पतंचल 'काप्य'–एक वैदिक ऋषि । अंगिरसकुल के थे (त्ररु.१.१२४.१०; ४.५१.३) । दैत्यों के रूप में आ कर
कपि नामक क्षत्रिय ब्राह्मणवंश में इसका जन्म हुआ था। ये आकाश की गायों या जलों को रोक रखते थे (ऋ.
यह मद्र देश में रहता था। एकबार भुज्यु लाहथायनि १.३२.११; श. बा. १३.८.२.३)। ऋग्वेद के 'सरमा
नामक याज्ञवल्क्य का समकालीन ऋषि, घूमते घूमते पणि संवाद ' में ऐसी ही एक कथा दी गयी हैं (ऋ. १० इसके घर आया । वहाँ उसकी मुलाकात पतंजल की कन्या १०८) । पाणया ने इंद्र की गायों का हरण किया। फिर से हो गयी। उस कन्या के शरीर में सुधन्वन अंगिरस बंद के दत बन कर, सरमा पणियों के पास आयी, एवं | नामक एक गंधर्व वास करता था। सुधन्वन् का कृपा से इंद्र की गायें लौटाने की धमकी उसने इन्हें दे दी। वही भुज्यु को विशेष ज्ञान की प्राप्ति हो गयी। इसी ज्ञान 'सरमा-पणि-संवाद' है।
विषयक प्रश्न, 'याज्ञवल्क्य-भुज्यु संवाद' में भुज्यु पणियों का वध कर के देवों ने उन्हें पराजित किया ने याज्ञवल्क्य से पूछे (बृ. उ. ३.३.१; ७.१)। किंतु था। फिर पणियों की सारी संपत्ति कब्जे में ले कर, देवों | अंत में याज्ञवल्क्य ने उसे पराजित किया । ने उसे अंगिरसों को दे दी (ऋ. १.८३.४)। अथर्वन् पतंजलि-संस्कृत भाषा का सुविख्यात व्याकरणकार अंगिरस इंद्र का गुरु था, एवं उसने अनि उत्पन्न कर, पणन वाध्यायी व्याकरण उसे हवि अर्पण किया था। इस पुण्य के कारण, देवों ने |
| प्रामाणिक व्याख्याकार । संस्कृत व्याकरणशास्त्र के बृहद अंगिरसों पर कृपा की।
नियमों एवं भाषाशास्त्र के गंभीर विचारों के निर्माता के लुडविग के अनुसार, 'पणि' लोग आदिवासी | नाते पाणिनि, व्याडि, कात्यायन, एवं पतंजलि इन व्यवसायी थे एवं काफिलों में चलते थे (लुडविग-ऋग्वेद चार आचार्यों के नाम आदर से स्मरण किये जाते है। अनुवाद ३.२१३-२१५)। हिलेब्रान्ट के अनुसार ये | उनमें से पाणिनी का काल ५०० खि पू. हो कर, शेष लोग इराण में रहनेवाले थे, एवं स्ट्राबो के 'पर्नियन', | वैय्याकरण मौर्य युग के (४०० खि. प.-२०० ई. पू.) टॉलेमी के 'पारूपेताइ,' अर्रियन के 'बारसायन्टेस' से माने जाते है। समीकृत थे (हिलेवान्ट-वेदिशे माइथोलोजी १.८३)। | वैदिकयुगीन साहित्यिक भाषा ('छंदस्' या 'नैगम') दिवोदास राजा के साथ हुए पणियो के युद्ध का संबंध भी एवं प्रचलित लोकभाषा ('लौकिक') में पर्याप्त अंतर हिलेब्रान्ट ने इराण से ही लगाया है। किंतु दिवोदास एवं था। 'देववाक्' या 'देववाणी' नाम से प्रचलित पणियों का यह स्थानान्तर असंभाव्य प्रतीत होता है। साहित्यिक संस्कृत भाषा को लौकिक श्रेणी में लाने का युग
प्रवर्तक कार्य आचार्य पाणिनि ने किया । पाणिनीय व्याकरण २. पाताल का एक असुर (भा. ५.२४.३०)।
| के अद्वितीय व्याख्याता के नाते, पाणिनि की महान् ख्याति पण्डक-धर्मसावर्णि मन्वंतर के मनु का पुत्र ।।
को आगे बढ़ाने का दुष्कर कार्य पतंजलि ने किया। पण्डित--एक विद्वान व्यक्ति के अर्थ से प्रयुक्त व्याकरणशास्त्र के विषयक नये उपलब्धियों के स्रष्टा, एवं नये सामान्य नाम (बृ. उ. ३.४.१; छां. उ. ६.१४.२)। उपादनों का जन्मदाता पतंजलि एक ऐसा मेधावी वैय्याकरण
२. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक। था कि, जिसके कारण ब्रह्माजी से ले कर पाणिनि तक की भीमसेन ने इसका वध किया (म. भी. ८४.२४; पाठमेद संस्कृत व्याकरणपरंपरा अनेक विचार वीथियों में फैल कर, पण्डितक)।
चरमोन्नत अवस्था में पहुँची। पतंग प्राजापत्य-एक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. पतंजलि पाणिनीय व्याकरण का केवल व्याख्याता ही १७७)। यह प्रजापति के वंश में उप्तन्न हुआ था। न हो कर, स्वयं एक महान् मनस्वी विचारक भी था। इसलिये इससे 'प्राजापत्य' उपाधि प्राप्त हुी थी। इसकी उँची सूझ एवं मौलिक विचार इसके 'व्याकरण __ ऋग्वेद के उस सूक्त की रचना इसने की है, जिसमें | महाभाष्य' में अनेक स्थानों पर दिखाई देते हैं । इसीलिये 'पतंग' का अर्थ 'सूर्य पक्षी' है (ऋ. १०.१७७.१)। | इसको स्वतंत्र विचारक की कोटि में खड़ा करते हैं । अपने इसने प्रणयन किये साम के कारण, ' उचैःश्रवस् कौपेय' निर्भीक विचार एवं असामान्य प्रतिभा के कारण, इसने
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