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________________ द्रोण. प्राचीन चरित्रकोश द्रोण भारतीयंयुद्ध--दुर्योधन ने किसी का भी उपदेश नहीं मना करने पर भी धर्म ने, अश्वत्थामा के पश्चात् सुना। भारतीययुद्ध का प्रसंग निर्माण हुआ। निरुपाय हो | 'हाथी' शब्द का उच्चार किया। परंतु वह उच्चारण कर, द्रोण को कौरवों के पक्ष में लड़ना पड़ा। अनेक वर्ष इतने धीरे से किया गया कि, द्रोण उसे सुन न सका। कौरवों का नमक खाने के बाद, उन्हें सहायता देने का | धर्म से यह वार्ता सुनते ही, पुत्रशोक से विव्हल हो अवसर संपन्न हुआ था । उस अवसर पर उन्हे सहायता | कर द्रोण ने शस्त्रसंन्यास किया। इतने में द्रोण के न देना, इसे योग्य नहीं प्रतीत हुआ। भरद्वाजादि पितर वहाँ आकर उन्होंने इसे कहा, 'ब्राह्मण भारतीययुद्ध के दसवें दिन, कौरवों का प्रथम सेनापति होते हुएँ भी क्षत्रियों के समान युद्ध कर, अस्त्रों से भीष्म मृत हुआ। तत्पश्चात् दुर्योधन ने द्रोण को सैनापत्य तुमने पृथ्वी को ताप दिया हैं। यह महत्पाप है। दिया। इसके रथ के ध्वज पर कृष्णा जिन तथा कमंडलु इसलिये विलंब मत करो । शस्त्र नीचे रख कर, योगमार्ग का चिन्ह था (म. द्रो. परि. १. क्र. ५, पंक्ति १-२)। का आलंबन करो'। यह सुन कर, द्रोण ने शस्त्र नीचे रख पाँच दिन युद्ध कर के, इसने पांडवसेना में हाहाकार मचा दिया। अच्छी संधि देख कर, द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न ने निःशस्त्र दिया। द्रोण का खड्ग से वध किया (म. द्रो. १६५. ५४)। द्रोण के सैनापत्य के प्रथम दिन, दुर्योधन ने धर्मराज । पौष वद्य द्वादशी को दोपहर में द्रोण का वध को जीवित पकड़ लाने की प्रार्थना इसे की। इसने अर्जुन हुआ (भारत-सावित्री)। नीलकंठ का कथन है कि, के अतुल सामर्थ्य का वर्णन दुर्योधन के पास किया। उसे मृत्यु के समय इसकी उम्र चारसौ वर्ष की थी, परंतु इसकी सुन कर, दुर्योधन तथा कर्ण ने व्यंग वचनों से इसे कहा, उम्र पच्यासी वर्ष की होना अधिक संभवनीय है । 'अशीति'पांडवों की जय हो, यही भावना आपके हृदय में है। इस | कात् परः' पाठभेद इस विषय में प्राप्त है। उससे प्रतीत कारण, आप युद्ध में बेमन से लड़ते है' (म. द्रो. १६०)। होता है कि, युद्धकाल में द्रोण की आयु अस्सी से तब कोपाविष्ट हो कर द्रोण ने प्रतिज्ञा की, 'पांडवपक्ष पच्यासी वर्ष की थी (म. द्रो. १६५.४९)। के किसी न किसी शूर योद्धा का वध मैं कल अवश्य ही करूंगा'। इस प्रतिज्ञा के अनुसार, इसने द्रुपद का वध | भारतीय युद्ध में, इसने द्रुपदपुत्र शंख (म. भी. ७८. किया (म. द्रो. १६१.३४)। | २१), वसुदान (म. द्रो. २०.४३ ), एवं विराट तथा द्रुपद का वध किया था (म. द्रो. १६१.३४)। . अभिमन्युवध की वार्ता सुन, संतप्त हो कर अर्जुन ने जयद्रथवध की प्रतिज्ञा की। तब द्रोण ने एक में एक ऐसे ___ मृत्यु के पश्चात् , द्रोण स्वर्ग में गया, एवं कुछ काल तीन व्यूह रच कर, जयद्रथ के संरक्षण की पराकाष्ठा के बाद बृहस्पति के अंश में विलीन हो गया (म. स्व. ४. की। फिर भी अर्जुन ने जयद्रथ वध किया ही । जयद्रथ २१५.१२)। श्रीव्यास ने आवाहन करने पर, परलोकवध का बदला लेने के लिये, द्रोण ने अहोरात्र युद्ध चालू वासी कौरव-पांडव वीरों के साथ, यह गंगाजल से प्रगट रखने की प्रतिज्ञा की, एवं मशालों की सहायता से रात्रि हुआ, एवं इसने युधिष्ठिर को दर्शन दिया (म. आश्र. के समय भी युद्ध चालू रखा। ३२.७)। वध-वह युद्ध का पंद्रहवा दिन, अर्थात् द्रोण के इंद्रियसंयम एवं तपस्या के कारण, समाज में इसे काफी सैनापत्याभिषेक का पाँचवाँ दिन था। दिन के युद्ध से | मानमान्यता थी। इसका युद्धशास्त्रप्रभुत्व भी परशुराम सारे वीर थक गये थे, तथापि ईर्ष्यावश, रात्रि के समय | जामदग्न्य जैसा ही अतुलनीय था। किंतु परशराम का भी वीरता से लड़ रहे थे। किंतु धीरे-धीरे सारी सेना साहस एवं ज्वलंत स्वाभिमान इसमें न होने के कारण, को निद्रा ने घेर लिया। यह संधि देख कर, भीम ने | इसकी सारी आयु सेवावृत्ति में ही व्यतीत हुई । उस इन्द्रवर्म राजा का अश्वत्थामा नामक हाथी मार डाला, | दुर्बल सेवावृत्ति से, इसकी उत्तरआयु अयशस्वी एवं एवं अश्वत्थामा मृत हो गया, ऐसी गर्जना की। असमाधानी शाबित हुई। - चिरंजीव होते हुए भी अश्वत्थामा मृत कैसे हुआ, इस | द्रोण शार्ग-एक मंत्रद्रष्टा पक्षी (ऋ. १०. १४२. विचार से द्रोण को आश्चर्य हुआ, एवं निर्णय के लिये, यह | ३-४)। मंदपाल ऋषि को शार्गी नामक पक्षिणी से धर्मराज के पास गया । कृष्ण के कथनानुसार युधिष्ठिर ने | उत्पन्न चार पुत्रों में से यह एक था (म. आ. २२८. द्रोण से कहा, 'अश्वत्थामा मृत हो गया है, '। कृष्ण के | १७)। ३०९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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