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प्राचीन चरित्रकोश
त्याज्य
तुहुंड-दनुपुत्र ।
तृत्सु-एक राजा एवं ज्ञातिसंघ । तृत्सु नामक राजा २. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र पुत्र ।
का निर्देश ऋग्वेद में अनेक बार आता है (ऋ. ७.१८. ताज-इंद्र का एक आश्रित । इंद्र ने द्योतन नामक | ३.)। राजा के लिये तुग्र, वेतसु, दशोणि एवं इसको पराजित । तृसुओं के ज्ञातिसंघ का निर्देश भी प्राप्त है (ऋ. ७. किया (ऋ. ६.२०.८)। तुजि एवं तूतु जि दोनों एक १८.६,७,१५,१९:३३.५,६:८३.४,६,८)। इस संघ के ही हैं।
लोक, दाशराज्ञ युद्ध में सुदास के सहायक थे । वसिष्ठ तूर्वयाण--एक नृप । अतिथिग्व, आयु एवं कुत्स का
ज्ञातिसंघ के लोगों के साथ तृत्सुओं का घनिष्ठ संबंध था यह शत्रु था, तथा दिवोदास का मित्र था। (ऋ. १.५३.
दास का मित्र था। (ऋ. १.१३ (सुदास देखिये)। १० ६.१८.१३; १०.६१.१)।
तेज-सुतप देवों में से एक । तृक्षि-त्रसदस्यु का पुत्र (ऋ. ६.४६.८८.२२.७;
तेजस्विन्-एक इंद्र । आगे चल कर, यही पांडुपुत्र
| सहदेव हुआ। त्रासदत्यव देखिये)। द्रुह्य तथा पुरु के साथ इसका निर्देश प्राप्त है (ऋ. ६.४६.८)
२. गोकुल का एक गोप । कृष्ण का यह परम मित्र था .
(भा. १०.२२.३१)। तृणक--एक क्षत्रिय (म. स. ८.१६ )।
तेजोयु--एक क्षत्रिय । यह रौद्राश्व का पुत्र था (म. तृणकर्णि-अंगिराकुल का गोत्रकार।
आ. ८९.१०)। तृणबिंदु-(सू. दिष्ट.) भागवत एवं वायु के मता
तैटिकि--एक आचार्य (नि. ४.३)। नुसार बंधु राजा का पुत्र । इसे विशाल, शून्यबंधु, धूम्रकेतु तैत्तिरि--तित्तिरि ऋषि का पुत्र । एवं इडविडा नामक चार संताने थीं।
तैत्तिरीय-वैशंपायन एवं याज्ञवल्क्य के सिवा यजुःविष्णु एवं रामायण के मतानुसार बुध राजा का यह | शिष्यपरंपरा के अन्य शिष्यों का सामान्यनाम । इन्होंने पुत्र था। इसकी स्त्री अलंबुषा । इसे विशाल एवं इलविला तित्तिरि पक्षियों के रूप धारण कर, याज्ञवल्क्यद्वारा त्यक्त नामक दो संतानें थीं । इलविला पुलस्त्य को दी गयी थी। वेद का ग्रहण किया (व्यास देखिये)। यह नेतायुग के तीसरे पाद में राज्य करता था (ब्रह्मांड.
तैलक--अंगिराकुल का एक गोत्रकार । .३.८.३६-६०; वायु. ७०.३१; २४.१५)। इसके पुत्र
तैलप--अत्रिकुल का गोत्रकार विशाल से वैशाली राजवंश का आरंभ हुआ।
तैलेय--धूम्रपराशरकुलोत्पन्न एक ऋषिगण । २. वैवस्वत मन्वंतर के तेईसवाँ तथा चौबीसवाँ व्यास | २. अंगिराकुल का गोत्रकार । (व्यास देखिये)।
तोडमान-एक ऋषि । सोमकुल के सुवीर को यह - इ. एक ऋषि । यह पांडवों के साथ काम्यकवन में नंदिनी नामक पत्नी से पैदा हुआ। पांड्य राजा की कन्या रहता था (म. व. २६४)। यह अत्यंत धर्मशील तथा पद्मा इसकी पत्नी थी। पूर्वजन्म में यह रंगदास था। संयमी था। प्रत्येक माह, घांस के एक तृण को पानी में | संकटाचल की उपासना कर यह मुक्त हुआ (स्कन्द, डुबा कर, उसके साथ जितने जलबिंदु बाहर आते थे, | २.१.९-१०)। (भीम २३. देखिये )। उतन हा पा कर यह रहता था। इसके इस नियम के तोशालक--कंससभा का एक मल्ल । कृष्ण ने इसका कारण, इसका नाम तृगबिंदु हुआ (कंद. ७.१.१३८)। वध किया (भा. १०.४४.२७)। ४. वेन देखिये।
तोष--तुपित देवों में से एक । तृणावर्त---कृष्ण के द्वारा मारा गया एक असुर २. (वा.) भागवतमत में यज्ञ तथा दक्षिणा का पुत्र । (पन. ब्र. १३)। कंस ने इसे कृष्णवध के लिये तोग्य-भुज्यु का पैतृक नाम। गोकुल भेजा था। इसने आँधी का रूप धारण कर गोकुल में तौरुष्य--लकुलिन् नामक शिवावतार का शिष्य । प्रवेश किया, तथा सारे गोकुल को धूलिमय कर दिया। तौल्वालि--आश्वलायन देखिये । पश्चात् कृष्ण को ले कर यह उड़ गया। किंतु कृष्ण ने इसे | तोसुक-सौमुक के लिये पाठभेद । एक शिला पर पछाड़ कर, इसके प्राण ले लिये (भा.१०. त्याज्य-भृगु तथा पौलोमी का पुत्र । यह देवों में से ७.२६ )।
| एक था (मत्स्य. १९५.१३)। प्रा. च. ३२]
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