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जानश्रुति
जानश्रुति — पोत्रायण का पैतृक नाम ( छ. उ. ४. १.१ २.२ ) । इस उदार गृहस्थ ने सर्वत्र अन्नछेत्र खोल दिये थे (रैक्व देखिये )।
प्राचीन चरित्रकोश
जानश्रुतेय - उपावि, उक्य, श्रीपावि नगरिन तथा सायक का पैतृक नाम |
जानुजंध - एक क्षत्रिय (म. आ. १.१७६. अनु. २७१.५९ कुं.)।
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२. तामस मन्वन्तर में से मनुपुत्र । जांदकार--सूर्य के समीप रहनेवाले अठारह विनायकों में से एक (सांब. १६ ) । जांदकार का शब्दशः अर्थ है 'सहायता करनेवाला' यह हमेशा यम का कार्य करता है।
जाबाल -- महाशाल तथा सत्यकाम का मातृक नाम । एक सत्र का यह गृहपति था (सां. ब्रां. २३.५) । २. भृगुकुल का गोत्रकार ।
३. विश्वामित्र का एक पुत्र ।
४. विश्वामित्रकुल का गोत्रकार तथा एक ऋषिगण । ५. ब्रह्मांड मंत में व्यास की यजुः शिष्य परंपरा के, याश्वल्क्य का वाजसनेय शिष्य ( व्यास देखिये) ।
६. भास्करसंहिता के तंत्रसारतंत्र का कर्ता (ब्रह्मवे. २. १६) ।
जाबालायन - माध्यंदिनायन का शिष्य उद्दालकायन (बृ. उ. ४.६.२ जाबालि विश्वामित्र का पुत्र ।
२. दशरथ का एक मंत्री। यह राम के विवाह में · उपस्थित था (वा. रा. बा. ६९.४ ) । पित्राज्ञा तोड कर अयोध्या आने के लिये, इसने राम को कहा । इसलिये राम ने इसका निषेध किया ( वा. रा. अयो. १०८ ) ।
रामसभा का धर्मशास्त्री के नाते भी इसका उलेख प्राप्त है । जाबालनीति नामक इसका एक ग्रंथ है। भारत के ' कणिकनीति ' से वह साम्य रखता है ।
शिष्य । इसका ) ।
३. एक ऋषि । इसके वंश में पैदा हुए लोगों को भी यही नाम प्रयुक्त है। मंदार पर्वत पर इसकी तपश्चर्या की जगह थी। इसके लाखों शिष्य थे। निपुत्रिक राजा ऋतंभर को पुत्रप्राप्ति के लिये, इसने विष्णुसेवा, गोसेवा तथा शिवसेवा करने के लिये कहा।
जांबवत
उसकी जन्मकथा पूछी। बाद में कृष्णोपासना का रहस्य उससे जान पर यह स्वयं कृष्ण की आराधना करने लगा । उस तपश्चर्या के फलस्वरूप, गोकुल के प्रचंड नामक गोप के घर में, चित्रगंधा नामक गोपी का जन्म इसे मिला (पश्न. पा. ३०.७२,१०९ ) ।
४. एक ऋषि एकवार यह घोर तपश्चय कर रहा था । इन्द्र ने रंभा को इसके पास भेजा । रंभा ने इसको मोहित किया। उससे इसे एक कन्या हुई। बाद में उस कन्या का चित्रांगद राजा ने हरण किया तब जाबालि ने उसे कुठरोगी बनने का शाप दिया (स्कन्द ६.१४११४४ ) ।
५. भृगुकुलोत्पन्न एक ऋषि भृगु देखिये) । इसकी लिखी एक स्मृति प्रसिद्ध है। हेमाद्रि तथा हलायुध ने उस में से आधार लिये हैं।
जामघ - - ( सो.) भविष्य के मत में पारावतसुत का पुत्र ।
जामदशिय-एक पैतृक नाम जमदमि के दो के लिये यह नाम प्रयुक्त है ( तै. सं. ७.१.९.१ ) । और्व खोगों को शमदमय कहा गया है (पं. बा. २१.१०.६ ) । जामदग्न्य - परशुराम का पैतृक नाम । २. सावर्णि मन्वन्तर का एक ऋषि । जामि -- यामि देखिये । जामित्र - तुषित देवों में से एक ।
जांबबत् प्रजापति तथा रक्षा का पुत्र इसकी पत्नी व्याघ्री । इसकी कन्या जांबवती ( ब्रह्मांड. ३.७.३०१ ) । ब्रह्मदेव की जम्हाई से यह पैदा हुआ ( वा. रा. बा. १७) । यह ऋक्षों का राजा था ( वा. रा. यु. ३७ ) ।
२. एक वानर सीताशोध के लिये इसने राम की काफी सहायता की (बा. रा. यु. ७४) रावणवध के बाद, राम का जय होने की वार्ता, नगाडे पीट कर इसने सब को बताई। राम के राज्याभिषेक के लिये समुद्र का पानी इसीने लाया था ( वा. रा. यु. १२८ ) । राम के अश्वमेध यज्ञ के समय, अश्वरक्षण के लिये, शत्रुघ्न के साथ यह भी गया था ( पद्म. पा. ११.१५ ) ।
३. वानर जाति का एक मानव । स्यमंतकमणि के लिये, कृष्ण से इसका अठ्ठाईस दिनों तक युद्ध हुआ । अन्त में कृष्ण रामावतार है, यह जान कर इसने उसकी स्तुति की। पश्चात् स्यमंतक मणि के साथ अपनी कन्या
एक दिन यह अरण्य में गया था । वहाँ तालाब के किनारे, एक सुंदर तथा तरुण तापसी तपश्चर्या करती हुई इसे दिख पड़ी। उसे जानने के लिये, यह वहाँ सौ वर्ष तक रुका। उसकी समाधि समाप्त होने पर आवालि ने
यती इसने कृष्ण को दी ( भा. १०.५६.२२; पद्म. उ. २७६ ) ।
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प्रा. च. २०
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