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जयत्सेन
प्राचीन चरित्रकोश
जयद्रथ
३. (सो. प्रति.) विष्णु मत में अहीनपुत्र, तथा वायु | देश के द्वादश राजपुत्र तथा सेना भी थी। जाते जाते, के मतानुसार अदीनपुत्र । भागवत में इसे जयसेन कहा | इसने उसी काम्यकवन में पड़ाव डाला, जहाँ पांडव रहते गया है।
थे। पास ही पांडवों का आश्रम था। वे मृगया के लिये ४. भारतीययुद्ध में पांडव पक्षीय राजा (म.उ.४.१६)। | बाहर गये थे। आश्रम में धौम्य ऋषि, दासी, एवं द्रौपदी
५. दुर्योधन के पक्ष का मगध का राजा। कालेय के आठ | ये तीन ही व्यक्ति थे। द्रौपदी को देखते ही, उसे अपने पुत्रों में से प्रथम-पुत्र का, यह अंशावतार था। भारतीय- | वश में लाने की इच्छा जयद्रथ को हुई । इसने पूछताछ युद्ध में श्वेत ने इसे त्रस्त कर, दो बार इसका धनुष तोडा करने के लिये, कोटिक को उसके पास भेजा। वहाँ जा था । अंत में अभिमन्यु ने इसका वध किया (म. भी. | कर कोटिक ने द्रौपदी से पूछा, 'तुम कौन हो ? यहाँ क्यों परि. १. क्र. ४. पंक्ति. ९)।
आई हो?' द्रौपदी के द्वारा सब वृत्तांत कथन कर दिये ६. भारतीययुद्ध में दुर्योधनपक्षीय राजा (म. श. ६. | जाने के बाद, कोटिक वापस आया। उसने जयद्रथ को
सब बताया। यह सुनते ही, सेना से निकल कर जयद्रथ ७. विराटनगर में नकुल का गुप्तनाम (म. वि. ५.३०; | द्रौपदी के पास गया। जयद्रथ को पहचान कर द्रौपदी ने २२.१२.)।
उसका उचित आदरसत्कार किया। द्रौपदी की प्राप्ति जयद--(सो. पूरु.) वायुमत में मनस्युपुत्र (चारुपद के लिये जयद्रथ ने काफी प्रयत्न किये । अन्त में द्रौपदी देखिये)।
को इसके निर्लज्ज कृत्य के प्रति अत्यंत क्रोध आया। जयद्वल-अज्ञातवासकाल में सहदेव का गुप्तनाम द्रौपदी ने इसे तुरन्त निकल जाने को कहा। परंतु उसे (म. वि. ५.३०; २२,१२)।
बरज़ोरी से अपने रथ में डाल कर इसने भगाया। यह देख - जयद्रथ--(सो. अनु.) भागवत, विष्णु एवं वायु
| कर धौम्य ऋषि ने इसका पीछा किया. (म. व. २४६के मत में बृहन्मनस्पुत्र। मत्स्य में बृहन्मनस् की जगह
२५२)। इतने में पांडव आश्रम में लौट आये। आते ही हा गया है। बहन्मनस को दो | द्रौपदी की दासी ने संपूर्ण वृत्त उन्हें बताया। काफी दूर पलियाँ थीं। एक यशोदेवी तथा दूसरी सत्या। यह दोनों | भागे गये जयद्रथ के समीप वे पहुँच गये। काफी देर तक चैद्य की कन्याएँ थी। इनमेंसे जयद्रथ यशोदेवी का पुत्र | युद्ध हुआ। कोटिकादि कई जयद्रथपक्षीय वीर मारे गये। था (वायु. ९९.१११)। इसे संभूति नामक पत्नी तथा
इसने देखा, अपना पक्ष पराजित हो रहा है। पांडवों की विजय नामक पुत्र था (भा. ९.२३.११)
दृष्टि बचा कर, इसने रणांगण से पलायन किया । जयद्रथ . २. (सो. अज.) भागवत के मत में बृहत्काय का, भाग गया, यह ज्ञात होते ही, अर्जुन तथा भीम ने इसका -विष्णु तथा वायु के मत में बृहत्कर्मन् का, तथा पद्म एवं
पीछा किया। संपूर्ण सेना का नाश होने के बाद, धौम्य मत्स्य के मत मैं बृहदिषु का पुत्र ।
ऋषि तथा अन्य पांडव आश्रम लौट आये। काफी देर ३. सिंधुदेशाधिपति वृद्धक्षत्र का पुत्र (म. द्रो. १२१. | पीछा करने के बाद, अर्जुन तथा भीम ने जयद्रथ को १७)। धृतराष्ट्रकन्या दुःशला का यह पति था (म. आ.
पकड़ा। भीम ने इसकी अच्छी मरम्मत की । परंतु वध न १०८. १८; द्रो. १४८)।
करते हुए, इसके केशों का पाँच हिस्सों में मुंडन कर, भीम यह सिंधु, सौवीर तथा शिबि देशों का राजा था। यह
इसे आश्रम में लाया । युधिष्ठिर ने जयद्रथ से, द्रौपदी पांडवों का द्वेष करता था। इसे बलाहक, आनीक, विदारण
क्षमायाचना करने के लिये कहा। युधिष्टिर ने भीम से आदि छः भाई थे (म. व. २५०.१२)।
कहा, 'तुम जयद्रथ का वध मत करो। उससे दुःशला पांडव वनवास में थे। जयद्रथ स्वयंवर के लिये अपने दुखित होगी। धृतराष्ट्र एवं गांधारी भी शोकमग्न होंगे'। देश से शाल्व देश जा रहा था। इसके साथ छः भ्राता,
जयद्रथ का वध न कर के उसे छोड़ दिया गया। शिबिकुलोत्पन्न सुरथ राजा का पुत्र कोटिक अथवा कोटि- | इस प्रकार पांडवों के द्वारा इसकी दुर्दशा हुई । इसने कास्य, त्रिगर्तराजपुत्र क्षेमंकर, इक्ष्वाकुकुलोत्पन्न सुभ- | मन में अत्यंत अपमानित स्थिति का अनुभव किया। वपुत्र सुपुष्पित, एवं कलिंदपुत्र थे। इसके सिवा अंगारक, | समस्त सेना को राजधानी वापस भेज कर, यह अकेला ही कुंजर, गुप्तक, शचुंजय, संजय, सुप्रवृद्ध, प्रभंकर, गंगाद्वार चला गया । यहाँ तीव्र तपश्चर्या से इसने शंकर को भ्रमर, रवि, शूर, प्रताप तथा कुहन नामक सौवीर प्रसन्न किया। 'मैं सब पांडवों को जीत सकूँ,' ऐसा वर इस प्रा. च. २९]
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