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जमदग्नि
प्राचीन चरित्रकोश
जमदग्नि
असित, अत्रि, कण्व तथा वीतहव्य के साथ इसका निर्देश भी वध किया । बाद में परशुराम ने अपनी माता का है ( अ. वे. २.१२.२०१६.१२०.१ ) । शिरच्छेद किया। तब जमदग्नि ने प्रसन्न हो कर परशुराम को वर माँगने के लिये कहा । परशुराम ने वरद्वारा अपनी माता तथा भाइयों को जीवित किया ( भा. ९.१५.१६; विष्णुधर्म १.३५-३६ )
अन्य कई स्थानों में इसका उल्लेख है ( अ. वे. ४. २९.२३ ५.२८.७१ ६.१३७.१० १८.२.१५-१६) । यह बड़ा तपस्वी था (तै. सं. २.२.५.२ ) । जमदग्नि भार्गव के वेद में काफी सूक्त है (२.६२.१६ - १८१ ८. १०१ ९.६२, ६५ ६७.१६-१८१ १०.११०३ १३७. ६; १६७ ) । । जम िशब्द का अर्थ नेत्र लिया है (वा. । सं. १३.५६, महीधर भाग्य ) |
यह अक्षर ब्रह्म का उपदेश करता था । वेदप्रचार के लिये तथा अक्षर ब्रहा के उपदेश के लिये, इंद्र ने इसकी योजना की थी (तै. आ. १.९.) ।
यह इतना कोबी था, तथापि कालवशात् अत्यंत शांत हो गया। यह सचमुच शांत बना है अथवा नहीं, यह देखने के लिये, एकवार को सर्परूप धारण कर, पितृक्रोध तिथि के दिन इसके घर आया। जमदग्नि ने उस दिन श्राद्ध के लिये खीर बनाई थी। उस खीर में सर्परूपी फोध ने अपना गरल डाल दिया । परंतु यह क्रोधित नहीं हुआ । तब क्रोध ने इसकी स्तुति की (जै. अ. ६८ ) । स्त्री- पुत्रादिकों के वध का स्मरण कर, इसे अत्यंत पश्चात्ताप हुआ । क्रोध के ही कारण यह अनर्थ हुआ, यह सोच कर इसने क्रोध का त्याग कर दिया (रेणु. २७) ।
1. भृगुकुल के ऋचीक नामक ऋषि को, गाधिराजकन्या सत्यवती से जमदधि उत्पन्न हुआ (म. आ. ६०.४६
११६.८ . ६.१.२७.३५, महा. १० स्कंद ६.६६) भृगुकुल के लोगों को भृगुपुत्र कहते थे ( पद्म. उ. २६८. १) । इसका पैतृक नाम आर्चिक था। रेणुका इसकी पत्नी थी। उससे इसे रुमवंत् सुपेण, वसुमत विश्वावसु तथा परशुराम नामक पाँच पुत्र हुए ( रेणुका देखिये) ।
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. जमदग्नि अत्यंत क्रोधी था एकवार लीलया यह वाण छोड़ रहा था। उन्हें लाने के लिये, इसने रेणुका से कह दियां । कड़ी धूप होने के कारण, रेणुका थक गई । विश्रांति के लिये, एक वृक्ष के नीचे थोड़ी देर के लिये, वह बैठ गई। उसे बाण वापस लाने में देर हो गई। तब क्रोधित हो कर इसने देरी का कारण पूछा। रेणुकाशरा देरी का कारण बताया जाते ही, यह सूर्य पर क्रोधित हुआ । बाण से सूर्य को छेदने के लिये तैय्यार हो गया । तब सूर्य इसकी शरण में आया। उसने इसे छाता, तथा पादत्राण दिये तथा कहा, 'मैं तुम्हारे उदर से जन्म लूँगा'। बाद में वह परशुराम के रूप में, जमदग्नि के घर में उत्पन्न हुआ। (म. अनु. ९५ ) ।
गंगातीर पर एक हजार वर्ष तपस्या कर के, जमदग्नि ने इन्द्र से कामधेनु माँग ली । उसी समय इन्द्र ने इसे वरदान दिया, 'तुम्हें एक ईश्वरांशभूत पुत्र होगा। कश्यप ने इसे षडक्षर मंत्र दिया था (पद्म. उ. २६८ ) ।
एकवार हैइय देशाधिपति कार्तवीर्य, ससैन्य जमदग्नि के आश्रम में, आया। कामधेनु की सहायता से जमदि ने उसका उत्कृष्ट आदिरातिथ्य किया । बाद में कार्तवीर्य के मन में जमदग्नि के ऐश्वर्य के बारे में असूया उत्पन्न हुई । वह कामधेनु को बलात्कार से ले जाने लगा। उस समय कामधेनु ने अपने शरीर से काफी यवन निर्माण किये। उनके द्वारा कार्तवीर्य का पराभव हुआ तब कार्तवीर्य ने जमदग्नि के आश्रम का विध्वंस कर, कामधेनु का हरण कर लिया। यह वृत्त परशुराम को ज्ञात होते ही, उसने कार्तवीर्य का वध कर के, गाय को छुड़ा लिया । परंतु कार्तवीर्य के वध का कृत्य जमदग्नि को बूरा लगा । कार्तवीर्यपुत्रों ने पिता के वध का बदला लेने के लिये, परशुराम की अनुपस्थिति में, जमदग्नि को इक्कीस बाणों से विद्ध किया तथा उसकी हत्या कर डाली। यह वृत्त परशुराम को शात होते ही, उसने क्षत्रियों का इक्कीस बार निःपात कर, जमदग्नि के वध का बदला ले लिया ( म. शां. ४९.५६९ ब्रह्मवै. २४ ब्रह्मांड २.४५५ कार्तवीर्य देखिये) ।
३.
एकवार रेणुका सरोवर पर स्नान करने गई थी । वहाँ उसने चित्ररथ अथवा चित्रांगद को, अपनी भार्याओं के साथ क्रीड़ा करते हुए देखा। उसका ऐश्वर्य देख कर उसके मन में राजा के प्रति अभिलाषा उत्पन्न हुई । उसकी क्रीड़ा देखते हुए, वह थोड़ी देर तक वहीं खड़ी रही। इससे उसे घर जाने में विलंब हुआ। उसीसे जमदग्नि अत्यंत क्रोधित हुआ । पुत्रों से अपने माता का शिरच्छेद करने के लिये इसने कहा । परंतु परसुराम को छोड़ अन्य किसी ने भी इसका कहना नहीं माना। इससे जमदग्नि ने उनका
कई स्थानों पर उल्लेख है कि, जमदग्नि का वध कार्तवीर्य ने ही किया ( म. द्रो. परि. १ क्र. ८. पंक्ति. ८३० के आगे; वा. रा. वा. ७५) इसे ऐसे मार कर इसका बच किया गया (पद्म. उ. २६८.२७) । वैवस्वत मन्वन्तर के
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