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कौशिक
प्राचीन चरित्रकोश
कौसल्या
१०. एक राजा । यह रात्रि में मुर्गा बन जाता था। कौशीती- ऋग्वेदी ब्रह्मचारी। विशाला इसकी स्त्री थी । सर्वत्र अनुकूलता होने पर भी, । कौश्रेय-सोमदक्ष का पैतृक नाम (का. सं. २०.८%, "अपना पति रात को कुक्कुट हो जाता है, यह देख उसे | २१.९)। बहुत दुःख होता था। वह गालव ऋषि के पास | कौषारव वा कोषारवि-मैत्रेय का पैतृक नाम गयी। ऋषि ने राजा का पूर्ववृत्तांत उसे निवेदन किया। (ऐ. बा. ८.२८)। पिछले जन्म में, यह शक्ति प्राप्त करने के लिये बहुत कौषीतकि-एक ऋषि । इसके नाम पर कौषीतकि कुक्कुट खाने लगा। इस बात का कुक्कुट राजा ताम्रचूड | ब्राहाण, आरण्यक, उपनिषद, सांख्यायन, श्रौत तथा गृह्यसूत्र को पता लगा। उसने इसे शाप दिया कि, रात्रि में तू आदि ग्रंथ हैं । उसमें इसके नाम से संबंधित कुछ मत आये कुक्कुट होगा। ज्वालेश्वर लिंगके पूर्व में स्थित लिंग की हैं। कौषीतकि या कौषीतकेय यह कहोड़ का पैतृक नाम है पूजा करने से राजा मुक्त होगा । गालव ऋषि ने यह कथा | (श, ब्रा. २.४.३.१; छां. उ. ३.५.१)। लुशाकपि ने इसे विशाला को बताई । तदनुसार इसने काम किया तथा तथा इसके शिष्यों को शाप दिया था (पं. ब्रा. १७.४.७. शापमुक्त हुआ। उस दिन से उस लिंग को कुक्कुटेश्वर | ३)। इन शिष्यों में दो अध्यापक थे । पहला कहोड एवं कहने लगे (स्कंद. ५.२.२१)।
दूसरा सर्वजित् (सां. बा. १४.२४.७१)। ११. (सो. यदु.) मस्स्य, विष्णु एवं वायु मत में इसे ही सांख्यायन कहते हैं। इंद्रप्रतर्दनसंवाद में प्राणविदर्भपुत्र ।
| तत्व को संसार का मूलाधार कहा है (कोषी. उ. २.१)। १२. (सो. वृष्णुि) विष्णु तथा मत्स्य मत में वैशाली इसका शिष्य सर्वजित् (कौषी. २.७)। इसने पुत्र को से उत्पन्न वसुदेवपुत्र । वायु मत में वैशाखी से उत्पन्न | उपदेश दिया (छां. उ. १.५.२; कुषीतक सामश्रवस वसुदेवपुत्र। ..
देखिये)। यह प्राण को ब्रह्म मानता था । १३. गाधिन् देखिये। .
कौषीतकेय-कहोड का पैतृक नाम । १४. प्रतिष्ठान नगर का एक ब्राह्मण। यह कुष्ठरोगी
२. इसने सोमतीर्थ पर तपस्या की। शंकर के प्रसन्न था, परंतु इसकी स्त्री पति की अत्यंत सेवा करती थी।
होने पर, वहां सोमेश्वर नामक शिवलिंग की इसने स्थापना यह व्यसनी ब्राह्मण अपनी स्त्री के कंधे पर बैठ कर वेश्या
की (पद्म. उ. १६१)। के घर जा रहा था। राह में सूली पर चढ़े हुए मांडव्य कोषय-एक ब्रह्मर्षि (वा. रा. उ. १.४)। ऋषि को इसका धक्का लगा। तब ऋषि ने धक्का लगानेवाले कौष्टिकि-अंगिराकुल का एक गोत्रकार ऋषि । की सूर्योदय के पूर्व मृत्यु होगी, यों शाप दिया । परंतु इसके कौष्य-सुश्रवस का पैतृक नाम । पत्नी के पातिव्रत्य के कारण, सूर्योदय ही नहीं हुआ। तब २.शंख का पैतृक नाम । ..देवताओं ने इसकी स्त्री को संतुष्ट किया तथा अनुसूया के कौसला-कृष्णपत्नी सत्या का दूसरा नाम । द्वारा इसके पति को जीवित किया (मार्क. १६.१४-८८; कौसल्य-पर आटणार तथा हिरण्यनाभ देखिये। गरुड. ११४२)।
कौसल्य आश्वलायन-एक तत्त्वज्ञ । प्राणी की कौशिकायति–एक आचार्य । घृतकौशिक का | उत्पत्ति किससे हुई, यह इसकी पृच्छा थी (प्रश्नोपनिषद. शिष्य । वैजपायन तथा सायकायन इसके शिष्य थे (बृ. उ. २.६.२, ४.६.२)।
कौसल्या-कोसल देश के भानुमान् राजा की कन्या कौशिकी-जमदग्नि की माता सत्यवती । नदी में इसका तथा राजा दशरथ की पटरानी। इसे हजार गाँव स्त्रीरूपांतर हुआ, तब उसे यह नाम प्राप्त हुआ (वा. रा. | धन के स्वरूप में नहर से मिले थे (वा. रा. अयो. बा.३४;म. आ. २०७.७; व.८२,११३; भी १०.१७)। ३१. २२-२३)। इसका पुत्र रामचंद्र । यह दशरथ की
कौशिकीपुत्र-आलंबीपुत्र तथा वैयाघ्रपदीपुत्र का पहली स्त्री थी। राम को युवराज्याभिषेक करने की बात शिष्य । इसका शिष्य कात्यायनीपुत्र (वृ. उ. ६.५.१)। निश्चित हुई । यह समाचार कौसल्या को राम के द्वारा ही कौशिल्य-सामवेदी श्रुतर्षि ।
मिला । कैकेयी को बताने के लिये राजा स्वयं गया था। . कौशीतक-इस ऋषि ने बकुलासंगम पर परमेश्वर | भरत के कहने से पता चलता है कि, कौसल्या कैकयी के की सेवा की (पद्म. उ. १६८)।
| साथ बहन सा व्यवहार करती थी (वा. रा. अयो. ७३. १७१