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कोचरश
प्राचीन चरित्रकोश
कौडिन्य
कोचरश--एक राजा । इसकी भार्या सुप्रज्ञा । वह कोलाहल--(सो. अन.) मत्स्य मत में सभानरपुत्र । एकादशी के दिन विष्णु के सामने जागरण कर रही | कालनर, कालानर, कालानल तथा यह एक ही है। थी। उस समय वहाँ शौरी नामक ब्राह्मण आया। कोष--एक आचार्यकुल (श. ब्रा. १०.५.५.८%; राजारानी को आनंद से देवता के सामने नाचते | सुश्रवस् देखिये)। देख, ब्राह्मण बहुत खुश हुआ। रानी ने उसे अपना कोहल--वायु तथा ब्रह्मांड मत में व्यास की सामपूर्वजन्मवृत्त कथन किया। उसने कहा, 'पूर्वजन्म में शिष्य परंपरा में लांगलि का शिष्य । पाठभेद कोलद मैं एक वेश्या थी । यह राजा एक शूद्र था। (व्यास देखिये)। जनमेजय के सर्पसत्र का एक सदस्य एकादशी के दिन बीमारी के कारण, सहजरूप से (म. आ. ४८.९)। जागरण तथा उपवास हो गया । देवताओं के नाम भी २. भगीरथ देखिये। मुँह से निकल पडे। इस कारण अब राजकुल में जन्म हुआ। कौकुर--कुकुरवंशोत्पन्न कारस्कर राजा । यह वृत्तांत सुन कर ब्राह्मण ने भी एकादशीव्रत प्रारंभ
कौकुरुंडि-उत्तम मन्वन्तर के सप्तर्पियों में से एक। किया। कालांतर में तीनों को वैकुंठ प्राप्त हुआ (पद्म. उ. कौकस्त-इसके द्वारा यज्ञ में विपुल दक्षिणा दी ८१)।
| जाने का निर्देश है (श. ब्रा. ४.६.१.१३)। कोटरक--एक सर्प (म. आ. ३१.८)।
२. तामस मन्वन्तर के योगवर्धनों में से एक (मनु
देखिये)। कोटरा--बाणासुर की माता । यह पुत्र के प्राणों की
कौचकि--अंगिराकुल का गोत्रकार। रक्षार्थ, कृष्ण के सामने मुक्तकुंतला एवं वस्त्ररहित खडी
कौचहस्तिक--भृगुकुल का गोत्रकार। . . हुई थी (भा. १०.६३.२०; बाण देखिये)।
कोंच--हिरण्याक्ष एवं देवताओं के बीच हुए युद्ध में कोटिक वा कोटिकाश्य-(सो. अनु.) सूरथपुत्र। वायु ने इसका वध किया (पद्म. स. ७५)। इसने जयद्रथ के लिये द्रौपदी की पूँछताछ की थी । पश्चात् कौटिल-भृगुकुलोत्पन्न गोत्रकार। ज्यद्रथ द्रौपदी को हरण कर ले जा रहा था। तब पांडवों कौटिल्य--चाणक्य देखिये। से हए युद्ध में भीम ने इसका वध किया (म. व. २४८, कोणकुत्स;-एक ऋषि (म. आ. ८.२१)। . २४९; २५५.२४)।
कौणप--एक सर्प (म. आ. ५२.५)। कोटिश--एक सर्प (म. आ. ५२.५)।
कौणपाशन--कद्रू पुत्र सर्प । कोपचय--अंगिराकुल का गोत्रकार ।
कौठरव्य-एक आचार्य (सां. आ. ७.१४, ८.२)। कोपवेग--युधिष्ठिर की सभा का एक ऋषि (म. स. इसने अक्षरोपासना वा अक्षरों के संबंध की जानकारी ४.१४)।
प्रचार में लायी (ऐ. आ. ३.२)। कोमरुक--जनमेजय के सर्पसत्र का एक सर्प (म. कौडिनी--पाराशरीकौंडिनी पुत्र देखिये । आ. ५२.१५)।
कौडिन्य--हिरण्यकेशि शाखा के पितृतपण में इसका कोरकृष्ण--वसिष्ठकुल का ऋषिगण । पाठभेद-कौर- उल्लेख है। यह वृत्तिकार था। परंतु इसने किसपर वृत्ति कृष्ण।
रची यह नहीं कह सकते (स. श्री. २०.८.२०)। कोरग्य--कश्यप तथा कद्रू का पुत्र ।
२. एक आचार्य । 'ह' कार को क वर्ग होता है, कोल--कुशिकगोत्र का मंत्रकार ।
- इस कथन के लिये, सम्मानार्थ लिये गये कई आचार्यो के कोलद--वायु तथा ब्रह्मांडमत में व्यास की सामशिष्य परंपरा के लांगलि का शिष्य । पाठभेद-कोहल। ।
| नामों में इसका भी नाम समाविष्ट है (ते. प्रा. ५.३८)।
३. शांडिल्य का शिष्य । इसका शिष्य कौशिक कोलासुर--एक दैत्य । कहोड़ का पिता पिप्पलाद
| (बृ. उ. २.६.१.४; ६.१, विदर्भिन् देखिये)। दुग्धेश्वर के पास तपस्या कर रहा था। एक बार वह ध्यानस्थ था। उस समय कोलासुर उसे यातना देने पहुँचा। तब ४. एक ब्रह्मर्षि । यह कुंडिनकुलोत्पन्न था ( म. स. ४. कहोड ने एक कृत्या निर्माण कर उसका वध किया (पद्म. १४)। यह युधिष्ठिर के अश्वमेध का एक सदस्य था (जै. उ, १५७)।
अश्व, ६३)। यह स्थावर (थेउर) में रहता था। इसकी १६८