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केशिन दार्य
प्राचीन चरित्रकोश
केसरिन्
केशिन दाय॑ वा दाल्भ्य एक राजा तथा सामद्रष्टा | दोनों अपत्यों को भेज कर, क्या होता है यह सविस्तर रूप (पं. ब्रा. १३.१०.८)। उच्चैःश्रवस् कौपयेय की बहन | से पुछवाया। का पुत्र (जै. उ. ब्रा. ३.२९.१)। पांचाल इसके प्रजा- ६. एक अप्रतिम लावण्यवती राजकन्या । इसने अपना जन थे, इसलिये केशिन् इसकी एक शाखा रही होगी | स्वयंवर रचा था। इसमें अंगिरा ऋषि का पुत्र सुधन्वा (क. सं. ३०.२; बौ. श्री. २०.२५)। धार्मिक विधि के एवं प्रह्लादपुत्र विरोचन आया था। इनमें जो श्रेष्ठ होगा बारे में, इसका खंडिक से एकमत नहीं होता था (मै. उसे वरण करूँगी ऐसा केशिनी ने कहा । तब इनका आपस स. १.४.१२; श. ब्रा. ११.८.४.१)। दीक्षा का महत्व | में विवाद हुआ। प्राणों की बाजी लगा कर वे प्रह्लाद के इसे सुवर्ण पक्षी ने सिखाया (सां. ब्रा. ७.४; केशिन् | पास गये। प्रह्लाद ने बताया कि, सुधन्वा का पक्ष सही है। सात्यकामि देखिये)। उच्चैःश्रवस् कौपयेय मरने पर | प्रह्लाद के कहने पर उदार अंतःकरणवाले सुधन्वा ने केशिन् दाय॑ दुःख के कारण, वन में भटकने लगा। विरोचन को छोड़ दिया। केशिनी ने विरोचन का वरण उस समय उच्चैःश्रवस् इसे धूम्ररूप में मिला । इसके पूछने किया (म. स. ६१; उ. ३५*)। यह कथा 'भूमि के पर, मृत्यु के बाद धूम्रशरीर उसे कैसे प्राप्त हुआ यह | लिये असत्य नहीं बोलना चाहिये,' यह समझाने के लिये बताया। यह उससे प्रेम से गले मिलने लगा किन्तु वह उद्योगार्व में विदुर ने धृतराष्ट्र को बताई। द्रौपदीवस्त्रहाथ में नहीं आया (जै. उ. ब्रा. ३. २९-३०)। हरण के समय, यही कथा यह स्पष्ट करने के लिये बताई केशिन सत्यकामि-एक आचार्य । इसने केशिन्
गई कि, असद्धर्म से व्यवहार न करते हुए अंगर कोई दाभ्यं को सप्तपदी शाक्वरी मंत्र की विशेष जानकारी दी
प्रश्न पूछे, तो योग्य तथा सत्य निर्णय देना चाहिये ।
सत्यकथन के लिये कभी डर अथवा लजा, संकोच.नहीं, (तै. सं. २.६.२.३; मै. सं.१.६.५)।
मानना चाहिये। केशिनर--(सू. इ.) भविष्य मत में सुनक्षत्रपुत्र। | यह कथा दो स्वरूपों में प्राप्य है। उद्योगपर्व में कहा
केशिनी--कश्यप एवं प्राधा की कन्याओं में से एक | गया है कि, सख्य होने पर ही यह वादविवाद हुआ; अप्सरा।
परंतु सभापर्व में कहा गया है कि, आपस में झगडा होते २. सगर की दो स्त्रियों में से ज्येष्ठ (म. व. १०४. समय यह वादविवाद हुआ, तथा प्रल्हाद ने कश्यप से' ८)। इसके शैब्या, भानुमती एवं सुमति नामांतर भिन्न
पूछ कर निर्णय दिया। ... भिन्न स्थानों पर मिलते हैं। इसकी सौत का नाम सुमति
७. कश्यप तथा खशा की कन्या । था (भा. ९.८.१५)। सगर ने इन दोनों स्त्रियोंसहित ८. बृहध्वज देखिये । पुत्रप्राप्ति के लिये तपस्या कर, शंकर से पुत्रप्राप्ति का | केसरप्राबंधा-वैतहव्यों ने इसकी एक बकरी मार वरदान प्राप्त किया। इससे सगर को असमंजस् नामक कर पकायी। पश्चात् उस पातक में से वे मुक्त हुए। इस पुत्र उत्पन्न हुआ (सगर देखिये)। यह विदर्भकन्या थी| संबंध में इसका निर्देश है (अ. वे. ५.१८.११)। भृगु (वायु. ८८.१५५)।
का वध करने के कारण, उत्कर्ष के शिखर पर पहुँचे हुए ३. (सो. पूरु.) सुहोत्र के पुत्र अजमीढ़ की तीन | वैतहव्य संजय नष्ट हुए. ('अ. वे. ५.१९.१)। स्त्रियों में से एक। इसे जह्न, जन, रुषिन् आदि तीन केसरिन्-अंजनी का पति तथा एक वानर । (वा. रा. पुत्र हुए (म. आ. ८९.२८)।
| उ. ६६)। यह गोकर्ण नामक पर्वत पर रहता था । अंजनी ४. विश्रवस् ऋषि की पत्नी। इससे रावण, कुंभकर्ण, तथा मार्जारास्या नामक इसकी दो त्रियाँ थीं । एक बार बिभीषण आदि तीन पुत्र हुए (भा. ४.१.३७; ७.१.
शंबसादन नामक असुर ने, अनावर बन कर ऋषियों को कष्ट ४३)।
दिये। तब इसने ऋषियों की आज्ञा से उससे युद्ध किया ५. दमयंती के मायके की चेटी। दमयंती का नल ने | तथा उसका वध किया। ऋषियों ने संतुष्ट हो कर इसे त्याग किया। इसे दमयंती ने चार बार बाहुक के पास | आशीवाद दिया, 'तुझे अच्छे स्वभाववाला, भगवद्भक्त भेजा। पहली बार उसकी जानकारी, दूसरी बार उसकी | तथा बलवान् पुत्र होगा।' तदनुसार हनुमान् उत्पन्न विस्तृत जानकारी, तीसरी बार नलद्वारा पकाये माँस का हुआ (वा. रा. सु. ३५)। कुछ हिस्सा मँगाना तथा चौथी बार इसी के साथ अपने २. गद्गद वानर का पुत्र । जांबवत् का कनिष्ठ भ्राता।
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