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________________ कुशनाभ प्राचीन चरित्रकोश कुशलव कुशनांभ-(सो. अमा.) कुश अथवा कुशिक राजा | इसके बाद वाल्मीकि ने इनके जातकर्मादि संस्कार के चार पुत्रों में चौथा । इसने महोदय नामक नगरी की किये । वेद एवं वेदों के दृढीकरण के लिये उन्हें रामायण स्थापना की थी। इसकी सौ कन्यायें वायु के कोप से | सिखाया । धनुर्विद्या के समान क्षात्रविद्या में इन्हें निष्णात वक हो गई। उन्हें कांपिलीपुरी के चुलिसूनु ब्रह्मदत्त | किया। बाद में अश्वमेध करने के लिये राम ने अश्वमेधीय राजा को दिया गया । तब उनका शरीर सीधा हुआ। अश्व छोड़ा। इन्हों ने उसे पकड़ लिया। उस अश्व के परंतु काम्पिल्य देश को कान्यकुब्ज नाम जो मिला, वह | मस्तक पर लिखे हुए लेख ने इनका क्षत्रियत्व जागृत वैसा ही रहा (वा. रा. बा. ३२.३३; मा. ९.१५)। किया । उस लेख में लिखा थाः२. वैवस्वत मन्वन्तर का एक मनुपुत्र । "एकवीराद्य कौसल्या तस्याः पुत्रो रघूद्रहः। तेन कुशरीर-वेदशिरस् नामक शिवावतार का शिष्य। | रामेण मुक्तोऽसौ वाजी गृह्णात्विमं बली"। यह देख कर कुशल--यह तथा इसकी पत्नी दुराचारी थे। परंतु | लव ने कहा, "क्या हमारी माँ वंध्या है, क्या वह पुत्रद्वारा गया में पिंडदान किये जाने के कारण, इनका | एकवीरा नहीं है ?” मुनिकुमारों द्वारा निवारण किये उद्धार हुआ (पन. उ. २१३)। जाने पर भी लव ने उनकी एक न सुनी । बल्कि कहा 'सीता २. प्रियव्रत का प्रधान (गणेश, २.३२-१४)। का पुत्र हो कर भी, यदि मैने तुम्हारे जैसा ही व्यवहार कुशलव--दाशरथि राम से सीता को उत्पन्न जुड़वाँ किया, तो मै एक कृमी ही सिद्ध हो जाऊंगा। अश्व पुत्र । लोकापवाद के भय से, राम ने सीता का त्याग करने रक्षा के लिये शत्रुत नियुक्त था। उसने जब लव का निश्चय किया। लक्ष्मण के द्वारा, उसे तमसा के किनारे। को मूञ्छित किया, तब कुश ने आ कर शत्रुघ्न, वाल्मीकि आश्रम के समीप छोड़ दिया। यह वार्ता शिष्यों को मूछित किया। बाद में लक्ष्मण अपनी सेनासहित के द्वारा वाल्मीकि को ज्ञात हुई। तब आश्रम में मुनि आया। लब ने जागृत हो कर, सूर्य से नया धनुष्य पत्नियों के पास सीता की रहने की व्यवस्था उसने कर | प्राप्त किया । लक्ष्मण, भरत तथा हनुमान का भी लव ने दी (वा. रा. उ. ४८-४९)। पराभव किया। तब राम को मजबूरी से रणांगण पर ... बाद में श्रावण माह में, आधी रात के समय सीता आना पड़ा । बिभीषण तथा सुग्रीव को ले कर राम रणांगण प्रसूत हुई. तथा उसे दो पुत्र हुए। जैसे ही वाल्मीकि को पर आया। दोनों कुमारों को देखते ही उसने "तुम ने धनु-यह मालूम हुआ, वैसे ही बालकों की सुरक्षा के लिये वह वेद किससे सीखा ?, तुम्हारे माँ बाप कौन है ?, आदि प्रश्न दौडा । निचले हिस्से में तोड़ी हुई दर्भमुष्टि, अभिमंत्रित पूछे । अंत में राम ने कहा कि, जब तक तुम अपना कुल कर के उसने वृद्ध स्त्रियों को दी, तथा प्रथम जन्मे हुवें नहीं बताते, तब तक मैं युद्ध नहीं करूंगा। तब इन्होंने • पुत्र के शरीर पर से घुमाने के लिये कहा। बाद में जन्मे | कहा, 'हम सीता के पुत्र हैं'। यह सुनते ही राम • पुत्र के शरीर से, दर्भ का उपरीला हिस्सा घुमाने के लिये के हाथ से धनुष गिर पड़ा । सुग्रीव आदि ने बहुत प्रयत्न कहा। इन दोनो पुत्रों का नाम क्रमशः कुश तथा लव किये। फिर भी सब का वध कर, तथा राम को भी मूच्छित रखने के लिये कहा (वा. रा.उ. ६६)। दर्भ तथा दूर्वांकुरों | कर, दोनों बालक घर गये। ये हनुमान को सीता के मनोसे इनके शरीर पर पानी सींचा गया, इस लिये इनके रंजन के लिये साथ लाये। परंतु सीता ने उसे वापस भेजने नाम कुश तथा लव रखे गये ( जै. अ. २८)। जिस दिन के लिये कहा। अब तक वाल्मीकि आश्रम में नहीं था। ल्व तथा कुश का जन्म हुआ, उस दिन लवणासुर का वापस आते ही, उसने पुत्र तथा पत्नी का स्वीकार करने पारिपत्य करने के लिये जाता हुआ शत्रुघ्न वाल्मीकि के लिये राम से कहा । पश्चात् बालक अश्वों के संरक्षक बने के आश्रम में ही था । यह वार्ता ज्ञात होते ही ला तथा यज्ञ पूर्ण हुआ (जै. अ. २८-३६)। उसे अत्यंत आनंद हुआ। पद्मपुराण में लिखा गया है, वाल्मीकि रामायण में इस प्रसंग का उल्लेख नहीं है। लवणासुर का पारिपत्य कर के शत्रुघ्न जब वह वापस जा इस ग्रंथ में लिखा है कि, कुशलव तथा राम की भेंट रहा था, तब वह आश्रम में आया था, परंतु सीता रामायणगान के कारण हुई। जिस समय राम ने अश्वआश्रम में प्रसूत हो गई है, यह वार्ता वाल्मीकि ने उसे | मेध किया, तब अनेक कलाकार एकत्रित हुए थे । वाल्मीकि नहीं बताई ( पन. पा. ५९)। यह कथन उपरोक्त कथन | को भी बड़े सम्मान से निमंत्रण मिला था। उसके साथ के ठीक विपरीत है। ये दोनों भी अयोध्या गये। वहाँ वाल्मीकिद्वारा सिखाया प्रा. च. २०] १५३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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