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वंश
प्राचीन चरित्रकोश
विवाह
सात्वत ११५१; शर्याति ११४२; शिशुनाग ११५४; | चाक्षुषी (अंगारपर्ण ९.); जलस्तंभन विद्या (दुर्योधन) शुंग २१५५; हैहय ११५१ ।।
२८४; देवहूति (दुर्वासस् ) २८६; धनुर्वेद (युधिष्ठिर ) --(२) ऋषिवंश-अत्रिवंश १७:११६६; अंगिरस् वंश .६९७; धनुष्य (धर्मव्याध, नहुष, युधिष्ठिर, सत्यध्रुति ११,११६५, काश्यपवंश १२९,११६६; पराशरवंश ३९८; | सौचित्य) ३२१,३५५,५७, १००९; भार्गववंश ५८८; वसिष्ठवंश ८०४,११६७; विश्वामित्रवंश । --पंचाक्षरी (दुरासद) २९८; पमिनी ( स्वरोचिषु ) ८७४।
१०९४; पर्वतस्तंभन (अगत्य) ४; पुष्पविद्या ( उपरिचर --(३) मानवेतर वंश-प्रमुख मानवेतर वंश ११५५; वसु; नल) ८६, ३५२; प्रतिस्मृतिविद्या (व्यास ) ९१८; --कश्यप वंश १२९-१३०; नागवंश ३५७; पितृवंश | प्रवग्यविद्या (दधीचि) २६३, प्राणविद्या (आरुणेय, ४२२, पलत्स्यवंश ४३६: पलहवंश ·४३८ भैरववंश | उपकौसल कामलायन, ब्रह्मद्दत्त चकितानेय) ६२,८५, ५९१; यक्षवंश ६६९; (मणिभद्र शाखा ५९७; मणिवर | ५२६; ब्रह्मविद्या ( उद्दालक आरुणि; कबंधी कात्यायन; 'गुह्यक' शाखा ५९७); वानरवंश. ८२३; हिरण्य- त्वष्टाधर; नारद; प्रतर्दन; बलराम; ब्रह्मन् ; यदु; यम) कशिपुवंश ११११, . .
८४; ११५:२५७,३६०:४६६,४९३,५२६;१०३२,८९९; वानर-- आदिमानव ७३५ राज्य एवं समाज
ब्राह्मणपरिमर १०५३; मंत्रतंत्र (अश्विनीसुत, धन्वन्तरि) व्यवस्था ८२२; वानरवंश ८२२; जैन ग्रंथों में ८२३।
मधुविद्या (दध्यञ्च) २६३, महामाया (शंबर) ९४६; वातिक-वृत्तनिवेदन एवं वृत्तप्रसारण करनेवाला --यथेष्टगामित्व (हनुमत् ) ११०० वारिविद्या (गर्ग) एक लोकसमूह ८२०, संजय गावलगणि १००४ । १८५, विषहारीविद्या (काश्यप) १०१, वैद्यकविद्या ___ वाल्मीकि रामायण--रामायण की जन्मकथा ८३३;
(पुनर्वसु आत्रेय; धन्वन्तरि ) ३१५, ४३०; वैश्यविद्या पौराणिक वाङ्मय की प्रस्थानत्रयी'८३४: व्यक्तिगणों का (यात) ६७१, आदर्श ८३४; महाभारत से तुलना ८३४; रामायण की ---शांडिल्यविद्या (शांडिल्य) ९५९; शिल्पविद्या श्रेष्ठता ८२४, रामायण की ऐतिहासिकता ८३५; आदि- | (त्वष्ट) २५६; संजीवनी (कच; भृगु; शुक्र) ९७७; काव्य ८३६; गेय महाकाव्य ८३६; आर्ष महाकाव्य ८३६; | -सर्ववश्यता १०४६ ससर्परीविद्या ( जमदग्नि; विश्वाघाल्मीकि रामायण में प्राप्त भूगोलवर्णन ८३६, रामायण का | मित्र; शक्ति) २२२, ९३४; सामविद्या (चैकिता'रचनाकाल ८३६; महाभारत में प्राप्त रामायण के उद्धरण | नेय) २१५ सोमविद्या ( नारद १; भीमवैदर्भ ) ३६१;
८३७; वाल्मीकि रामायण के उपलब्ध संस्करण ८३७ । । ५६०; स्थलमापनविद्या (स्थपति) १०९२ स्थापत्य.' . वास्तुशास्त्रज्ञ एवं शिल्पशास्त्रज्ञ--विश्वकर्मन् ८६६- | विद्या (जनमेजय )२२१ । '८६७; के द्वारा निर्मित नगर ८६७; के द्वारा निर्मित अस्त्र | विवाह-आर्य एवं अनार्य (उपदानवी २) ८५; ८६७ त्वष्ट २५६; मय ६१८-६२०।
क्षत्रिय एवं अप्सरा (आमीध्र) ५५; क्षत्रिय एवं ऋक्ष विद्याविशेष- अक्षहृदयविद्या (ऋतुपर्ण, नल, (जांबवत् ३.) २३३, क्षत्रिय एवं गंधर्व (पुरूरवस् ) बृहदश्व, युधिष्ठिर ) ९७, ३५२, ५१५; अग्निशिरास्त्र | ४३४; क्षत्रिय एवं देवता (तपती) २४१; क्षत्रिय एवं नाग (अंगारपर्ण) ९; अध्यात्मविद्या (उद्दालक, उदंक | (आर्यक; उलूपी) ६३, ९१, क्षत्रिय एवं पितर (दिलीप शौल्बायन, धर्मारण्य) ८३, ८४; ३२२; अंतर्धानविद्या | खट्वांग) १२७१, क्षत्रिय एवं ब्राह्मण (कच; गो २; (विभीषण ) १७४; अन्नविद्या (नल);
| देवयानी;) ११०; १९३; २९४; क्षत्रिय एवं पर्वत --अश्वविद्या (ऋतुपर्ण; नकुल; नल) ९७, ३३९; अस्त्रविद्या (गिरिका) १९०, क्षत्रिय एवं राक्षस ( भीमसेन पाण्डव) (कृप, घटोत्कच, द्रोण, नकुल, शतानीक) १५७;१९९,३३८; ५६३; क्षत्रिय एवं शूद्र (चंद्रगुप्त) २०३; गंधर्व एवं ३३८,९४१; आत्मविद्या (कुशध्वज जनक, खांडिक्य कौनक) राक्षस ( सुकेश) १०४८; २१९:१७८;९४१; आयुर्वेद (इंदीवराक्ष) ६८; उत्खनन- --दानव एवं अप्सरा (मय) ६२०; देव एवं ग्वाला विद्या (खनक) १७७;
(सावित्री) १८८; देव एवं नाग (गुणकेशी) १९१; ---कर्ममार्ग (खांडिक्य) १७८; कामरुपीधरत्व | देव एवं पर्वत (गिरिका) १९०; देव एवं ब्राह्मण (घटोत्कच, हनुमान ) १९९,११००; गानविद्या (उत्तरा) (उशनस् ) ९१, देव एवं राक्षस (त्वष्ट) २५६; नदी एवं ८२, गारुड (आकृति )५५, गोरति (दीर्घतमस् ) २७४ | अग्नि (गोपति ४.) १९४;
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