SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौतम बुद्ध जिनमें निम्नलिखित प्रमुख थे:- १. स्थविरवादिन्, जो बौद्ध संघ में सनातनतम सांप्रदाय माना जाता है; २. महासांधिक, जो उत्तरकालीन महायान सांप्रदाय का आद्य प्रवर्तक सांप्रदाय माना जाता है । बौद्ध संघ में सुधार करने के उद्देश्य से यह सांप्रदाय सर्वप्रथम मगध देश में स्थापन हुआ, एवं उसने आगे चल कर काफी उन्नति की । प्राचीन चरित्रकोश (१) स्थविरवादन - इस सांप्रदाय के निम्नलिखित उपविभाग थेः-- १. सर्वास्तिवादिन् ( उत्तरी पश्चिम भारत प्रमुख पुरस्कर्ता - कनिष्क ); २. हैमवत, ( हिमालय पर्वत ); ३. वाल्सिपुत्रीय, (आवंतिक, अवंतीदेश प्रमुख पुरस्कर्त्री -- हर्षवर्धन भगिनी राज्यश्री ); ४. धर्मगुप्तिक, (मध्य एशिया एवं चीन ); ५. महिशासक ( सिलोन ); (२) महासांघिक सांप्रदाय - इस सांप्रदाय के निम्नलिखित उपविभाग थे;-- १. गोकुलिक ( कुककुलिक ); २. एकव्यावहारिक; ३. चैत्यक; ४. बहुश्रुतीय; ५. प्रज्ञप्ति वादिन् ; ६. पूर्वशैलिक; ७. अपरशैलिकः ८. राजगिरिक ९. सिद्धार्थक । बौद्धधर्म के प्रसारक — इस धर्म के प्रसारकों में अनेक • विभिन्न राजा, भिक्षु एवं पाली तथा संस्कृत ग्रंथकार प्रमुख थे जिनकी संक्षिप्त नामावलि नीचे दी गयी है: ( ९ ) राजा -- बिंबिसार, अजातशत्रु, अशोक, मिनँडर (. मिलिंद ), कनिष्क, हर्षवर्धन | देवदत्त काल तक तुषित स्वर्ग में प्रविष्ट हुआ था; ७. राजगृह, (मगधदेश की राजधानी ), जहाँ देवदत्त के द्वारा छोडे गये नालगिरि नामक वन्य हाथी को इसने अपने चमत्कारसामर्थ्य से शांत किया; ८. वैशालि, जहाँ कई वानरों ने बुद्ध को कुछ शहद ला कर अर्पण किया था। (४) संस्कृत ग्रंथकार - अश्वघोष, नागार्जुन, बुद्धपालित, भावविवेक, असंग, वसुबंधु, दिङ्नाग, धर्मकीर्ति । पौराणिक साहित्य में इस साहित्य में इसे विष्णु का नौवाँ अवतार कहाँ गया है, एवं असुरों का विनाश तथा धर्म की रक्षा करने के लिए इसके अवतीर्ण होने का निर्देश वहाँ प्राप्त है ( मत्स्य. ४७.२४७ ) । पुराणों में अन्यत्र इसे दैत्य लोगों में अधर्म की प्रवृत्ति निर्माण करनेवाला मायामोह नामक अधम पुरुष है ( शिव रुद्र. युद्ध ४९ पद्म. सु. १२.३६६-३७६ ) । किंतु पौराणिक साहित्य में प्राप्त बुद्ध का यह सांप्रदायिक विद्वेष से प्रेरित हुआ प्रतीत होता है। पैदा होते ही माता ने इसका परित्याग किया था । तत्पश्चात् बिंबिसार राजा के पुत्र अभय ने इसे पालपोंस कर बड़ा किया। इसने तक्षशीला में सात वर्षों तक वैद्यकशास्त्र का अध्ययन किया, एवं आयुर्वेद शास्त्रांतर्गत ' कौमारभृत्य' शाखा में विशेष निपुणता प्राप्त की । मगध देश लौटने पर यह सुविख्यात वैद्य बना । यह बुद्ध . ( २ ) भिक्षु - सारीपुत्त, आनंद, मौद्गलायन, आनंद, का अनन्य उपासक था, एवं इसने राजगृह के आम्रवन उपालि । में एक विहार बाँध कर वह बुद्ध को प्रदान किया था ( ३ ) पाली ग्रंथकार - नागसेन, बुद्धद, बुद्धघोष ( सुमंगल. १.१३३ ) । बुद्ध ने इसके लिए 'जीवक सुत्त धम्मपाद ! का उपदेश दिया था। इसी के कहने पर बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को टहलने का व्यायाम करने के लिए कहा । " देवदत्त - गौतम बुद्ध का एक शिष्य, जो उसके मामा सुप्रबुद्ध का पुत्र था। इसकी माता का नाम अमिता था । बौद्धधर्म के प्रमुख तीर्थस्थान - बौद्ध साहित्य में बुद्ध के जीवन से संबंधित निम्नलिखित आठ प्रमुख तीर्थस्थानों ( अष्टमहास्थानानि ) का निर्देश प्राप्त है :- १. लुम्बि नीवन, जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था; २. बोधिगया, जहाँ बुद्ध को परमज्ञान की प्राप्ति हुई थी; ३. सारनाथ ( इषि पट्टण ), जहाँ बुद्ध के द्वारा धर्मचक्रप्रवर्तन का पहला प्रवचन हुआ था; ४. कुशिनगर, जहाँ बुद्ध का महापरि - निर्वाण हुआ था; ५. श्रावस्ती ( कोसलदेश की राजधानी), बुद्ध के परिनिर्वाण के आठ वर्ष पहले, इसके मन जहाँ तीर्थिक सांप्रदाय के लोगों को पराजित करने के लिए में इच्छा उत्पन्न हुई कि, गौतमबुद्ध को हटा कर यह बुद्ध ने अनेकानेक चमत्कार दिखाये थे; ६. संकाश्य, बौद्ध संघ का प्रमुख बने। इस हेतु मगध देश के सम्राट जहाँ अपनी माता मायादेवी को मिलने के लिए बुद्ध कुछ | अजातशत्रु की सहायता इसने प्राप्त किया, एवं उसकी बुद्ध की परमज्ञान प्राप्ति के पश्चात् उसके जन्मग्राम कपिलवस्तु में से जो कई शाक्य लोग बौद्ध बने, उनमें यह प्रमुख था । बौद्ध होने के पश्चात् कुछ काल तक चौद्धसंघ में इसका बड़ा सम्मान था । अपने बारह श्रेष्ठ शिष्यों में गौतमबुद्ध ने इसका निर्देश किया था ( संयुत्त निकाय. १८३ ) । प्रा. च. १४२ । ११२९ जीवक - एक सुविख्यात वैद्यकशास्त्रज्ञ, जो राजगृह के शालावती नामक गणिका का पुत्र था। यह मगध देश के बिंबिसार एवं अजातशत्रु राजाओं का वैद्य था ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy