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________________ सुरभि प्राचीन चरित्रकोश सुरोचन ३. एक गाय, जो ब्रह्मा के हुंकार के उत्पन्न हुई थी। सुराव-एक अश्व, जो इल्वलराजा के द्वारा अगस्त्य इसके बड़ी होने पर इसके वक्ष से पृथ्वी पर दूध टपकने | ऋषि को प्रदान किया गया था (म. व. ९७.१५ पाठ.)। लगा, जिससे ही आगे चल कर क्षीरसागर की उत्पत्ति सुराष्ट्र-एक क्षत्रियवंश, जिसमें रुषर्धिक नामक हुई । इसका निवासस्थान रसातल नामक सातवें भूतल | कुलपांसन राजा उत्पन्न हुआ था (म. उ. ७२.११)। में था। २. दक्षिण पश्चिम भारत का एक लोकसमूह, जहाँ के परिवार--इसकी कुल चार कन्याएँ थी, जो चार कौशिकाचार्य आकृति नामक राजा को सहदेव ने अपने दिशाओं की प्रतिपालक मानी जाति हैं :--१. सुरूपा, दक्षिण दिग्विजय में जिता था (म. स. २८.३९)। (पूर्व दिशा); २. हंसिका ( दक्षिण दिशा); ३. सभद्रा | इस देश में स्थित चमसोद्भेद, प्रभासक्षेत्र, पिंडारक, (पश्चिम दिशा); ४. सर्वकामदुधा (उत्तर दिशा) उज्जयन्त (रैवतक ) आदि विभिन्न तीर्थक्षेत्रों का निर्देश (म. उ. १००)। महाभारत में प्राप्त है (म. व. ८८)। सुरभिमत्--एक अग्नि, जिसे अष्टकपाल नामक ३. दशरथ राजा के अष्टप्रधानों में से एक (वा. रा. हविर्भाग प्रदान किया जाता है। बा. ७)। सुरस-गरुड एवं शुक्री के पुत्रों में से एक। सुरुच-पक्षिराज गरुड का एक पुत्र । .२. एक कश्यपवंशीय नाग (म. उ. १०१.१६ )। सुरुचि--उत्तानपाद राजा की पत्नियों में से एक । सुरसा-एक नाग माता, जो कश्यप एवं क्रोधवशा | २. एक अप्सरा, जो माघ माह में पूषन् नामक सूर्य के का कन्याओं में से एक थी। इसके पत्र का नाम कं| साथ भ्रमण करती है। था । इसने हनुमत् की सत्वपरीक्षा ली थी, जिसमें वह ३. बलि वैरोचन नामक असुर की माता (स्कंद. १.१. सफल होने पर इसने उसे अंगिकृत कार्य यशस्वी होने | १८)। का आशीर्वाद प्रदान किया था (वा. रा. सु. १; स्कंद. ४. कश्यप एवं अरिष्टा का एक पुत्र । ३.१.४६ )। | सुरूप--(सो. क्रोष्टु.) एक पक्षी, जो शुक एवं गरुड सुरा--एक देवी, जो मद्य की अधिष्ठात्रि देवी पानी का पुत्र था (ब्रह्मांड. ३.७.४५०)। जाती है। यह वरुण एवं देवी की कन्या थी. एवं समुद्र- | । २. (सो. क्रोष्टु.) एक राजा, जो असमंजस राजा का पुत्र मंथन के समय वरुणालय (समुद्र) से उत्पन्न हुई थी | था (वायु. ९६.१४१)। (म. आ. १६.३४; विष्णु देखिये)। ३. रौच्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । सुराजि-रामसभा में उपस्थित एक विदूषक। ४. तामस मन्वन्तर का एक देवगण । , सुराधस् वाषोगिर-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. सुरूपा--वैवस्वत मन्वन्तर के मरीचि ऋषि की कन्या. १.१००)। ऋग्वेद में अन्यत्र वृषागिरपुत्र के नाम से | जो वारुणि आंगिरस ऋषि की पत्नी थी। इसका निर्देश अंबरीष, रुद्राश्व आदि ऋषियों के साथ २. दशरथपत्नी कैकेयी का नामान्तर (पद्म. पा.२१६)। (ऋ. १.१००.१७)। ३. मंकिकौशीतकि ऋषि की पत्नियों में से एक। . सुराप-विधृत नामक राजा का प्रधान ( पन. पा. ४. सुरभि की एक धेनुस्वरूपी कन्या, जो पूर्व दिशा को १११)। धारण करती है (म. उ. १००.८)। सुरामित्र--एक मरुत् , जो मरुतों के दूसरे गण में | सुरेणु--संज्ञा का नामान्तर (ह. वं. १.९)। स्कंद में से एक था। इसे संज्ञा की माता कहा गया है। सुरायण--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । | सुरेश्वर--शिव का एक अवतार, जो उपमन्यु वासिष्ठ सुरारि--एक राजा, जो भारतीय युद्ध में पांडवपक्ष | ऋषि के लिए अवतीर्ण हुआ था (शिव. शत. ३२; में शामिल था (म. उ. ४.२०)। पाठभेद (भांडारकर | उपमन्यु वासिष्ठ १. देखिये)। संहिता)-'अदारि'। सुरैषिण--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। सुराल-एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के सुरोचन-(स्वा. प्रिय.) शाल्मलीद्वीप का एक अनुसार व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से शृंगीपुत्र नामक राजा, जो भागवत के अनुसार इमबाहु राजा का पुत्र था आचार्य का शिष्य था। (भा. ५.२०.९)। प्रा. च. १३५] १०७३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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