SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपरिचर वसु प्राचीन चरित्रकोश उपरिचर वसु चेदि देश में वास्तव्य कर । वैजयंती के प्रभाव से युद्धभूमि | पुत्रों को अलग अलग राज्य दिये ( म. आ. ५७, २८में शास्त्रों के व्रण होने का डर नहीं था। २९)। इसके पुत्रों में मत्स्य तथा काली नाम हैं । बृहद्रथ इंद्र ने तत्पश्चात् साधुओं के प्रतिपालनार्थ बाँस की | ने मगध में बार्हद्रथ कुल की स्थापना की। कुशांब को छडी दी। संवत्सर की समाप्ति के दिन राजा ने उसका (मणिवाहन) कौशांबी, प्रत्यग्रह को चेदि, यदु को थोडा हिस्सा जमीन में गाड़ दिया, तभी से यह रीति करूष तथा पांचवे मावेल्ल को मत्स्य देश मिला (म. द्रो. राजाओं में अमी भी रूढ है। वर्षप्रतिपदा के दिन इसे | ९१)। यह पूर्व जन्म में अमावसु पितर था। छड़ी को वस्त्रभूषणों से सुशोभित कर, तथा गंधपुष्पों से | एक समय इंद्र तथा महर्षियों का यज्ञ में, पशुहिंसा अलंकृत कर उच्चस्थान पर आरोहित करते है राजा वसु | विहित या अविहित है इस पर विवाद हुआ। इतने में के प्रीत्यर्थ हंस रूप धारण किये ईश्वर की इस यष्टि द्वारा | द्वारा | वहां उपरिचर वसु का आगमन हुआ। सत्यवक्ता होने के राजा लोग बडे आदर से विधिपूर्वक पूजा करते है । इस कारण इस से विवाद का निर्णय पूछा गया । इसने इंद्र उत्सव की प्रभा राजा ने फैलाई, यह देख इंद्र ने ऐसा का पक्ष ले कर पशुवध के अनुकूल मत दिया । तब वर दिया कि जो राजा चेदिराजा की तरह मेरा उत्सव ऋषियों ने शाप दिया कि, तुम्हारा अधोलोक में पतन करेगा, उसके राज्य में अखंड लक्ष्मी का वास होगा तथा | होगा । शाप मिलते ही यह रसातल में पतित हुआ जन संतुष्ट रहेंगे। (मत्स्य. १४२)। महाभारत में यह वाद, अजवध नगर के पास से बहनेवाली शुक्तिमती नदी को करना चाहिये या बीज उपयोग में लाना चाहिये, ऐसा कोलाहल नामक पर्वत रोक रहा है, यह देख राजा ने था। उस समय उपरिचर वसु अंतरिक्ष में मार्गक्रमण पर्वतपर एक पदप्रहार किया तथा उसमें एक विवर निर्माण कर रहा था। तब ऋषियों ने निर्णयार्थ इसे बुलाया। कर, नदी के लिये मार्ग बना. दिया। पर्वत की उतनी दोनों पक्षों की बात समझ लेने पर, वसु ने देवताओं का संगति के कारण नदी को एक जुडवा ('एक पुत्र एवं एक पक्ष लिया तब ऋषियों ने शाप दिया कि, चूकि दवतापुत्री) हुआ। नदी ने कृतज्ञ हो, पुत्र तथा-पुत्री राजा को ओं का पक्ष ले कर तुमने अनृत भाषण किया है, इसलिये अर्पण की। राजा ने पुत्र को अपना सेनापति बनाया तुम्हें पृथ्वी के गर्भ में प्रवेश करना पड़ेगा । तदनुसार यह तथा उस पुत्री के साथ पाणिग्रहण किया। यही गिरिका राजा अधोमुख हो पृथ्वी के विवर में घुसा । परंतु नर थीं। वह शीघ्र ही नवयुवती हुई परंतु ऋतुदान के दिन नारायण की कृपा से नारायण का मंत्र जप कर, तथा 'राजा को पितरों ने मृगया हेतु वन में जाने की आज्ञा दी। पंचमहायज्ञ कर इसने नारायण को संतुष्ट किया। अंत आज्ञानुसार राजा मृगया हेतु गया। परंतु अत्यंत कामो में विष्णु की आज्ञानुसार गरुड ने आ कर इसे शापमुक्त त्सुकता के कारण उसका रेत खलित हुआ, जिसे उसने किया तथा पहले की तरह इसे अंतरिक्ष में मार्गक्रमण एक दोने में रखा तथा एक श्येन पक्षी को अपनी भार्या करने के लिये समर्थ बनाया। यह बृहस्पति का पट्टके पास ले जाने को कहा। वह पक्षी ले कर जा रहा था। शिष्य हुआ। उसके पास से इसने चित्राशिखंडी संज्ञक कि, राह में एक दूसरे बुभुक्षु दयेन पक्षी ने उस पर हमला सप्तर्षियों द्वारा रचित शास्त्र का अध्ययन किया । इसने कर दिया। इस संघर्ष में वह दोन यमुना नदी में गिर अश्वमेध यज्ञ किया, जिसमें बृहसति ने होतृत्व स्वीकार पड़ा तथा अद्रिका नामक मत्स्यी को मिला । यह मत्स्यी किया था। इसमें पशु वध नहीं हुआ। इसे यज्ञ में इसे एक शापभ्रष्ट अप्सरा थी। दस महीने के बाद एक धीवर नारायण ने प्रत्यक्ष दर्शन दिया । इस निष्ठावान राजा को के द्वारा पकडी गयी। उसे काटते ही पेट से एक लडका महीतल छोड़ने पर तत्काल परमपद प्राप्त हुआ (म. शां. एवं एक लडकी निकली। तब धीवर उन्हें राजा के पास | ३२२-३२४) । अद्रिका नामक अप्सरा के साथ एक ले गया तथा सारी कथा कह सुनाई । राजा ने लड़के का बार यह विमान पर से जा रहा था। सोमपट्ट में रहने नाम मत्स्य रख, उसे अपने आप रखा तथा लड़की एक | वाले पितरों की मानसकन्या अच्छोदा ने, इसे देख कर धीवर को दे कर उसका लालनपालन करने की आज्ञा दी। इसे अपन। पिता माना, तथा इसने भी उसे कन्या रूप यही सल्यवती (मत्स्यगंधा) है। में स्वीकार किया। यह देख कर उसके पिता ने इसे शाप उपरिचर वसु के पांच पुत्र थे। बृहद्रथ, प्रत्यग्रह, दिया कि तुम इस अप्सरा सहित पृथ्वी पर जाओगे तथा कुशांब, मणिवाहन (मावेल्ल) तथा यदु। इसने अपने तुमसे यह कन्या होगी। यह सुनते ही वसु ने उसके ८७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy