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________________ सिंहिका प्राचीन चरित्रकोश सिंदूर सिंहिका--प्राचेतस दक्ष प्रजापति की एक कन्या, जो सिद्धि--दक्ष प्रजापति की कन्या, जो धर्मऋषि की कश्यप की पत्नी थी । ' सँहि केय' नामक चार सुविख्यात | पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम सुख था (वायु. १०. असुर इसके ही पुत्र माने जाते हैं। २५)। २. एक राक्षसी । हनुमत् के समुद्रोलंधन के सपय | २. भग नामक आदित्य की पत्नी ( भा. ६.१८.२)। इसने उसका मार्ग रोक कर उसे त्रस्त करता चाहा। उस | ३. एक अग्नि, जो वीर नामक अग्नि का पुत्र था। इसकी समय हनुमत् ने इसका वध किया, एवं इसकी लाश | माता का नाम सरयू था । इसने अपनी प्रभा से सूर्य को समुद्र में फेंक दी। आच्छादित कर दिया था (म. व. २०९.११)। ३. एक राक्षसी, जो कश्यप एवं दिति की कन्या, एवं ४. एक देवी, जो कुंती के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हिरण्यकशिपु की बहन थी। इसका विवाह विप्रचित्ति हुई थी (म. आ.६१,९८)। दानव से हुआ था, जिससे इसे एक सौ एक पुत्र उत्पन्न | सिनीवाक--युधिष्ठिर की मयसभा में उपस्थित एक हुए। इसके पुत्रों में राहु नामक असुर प्रमुख था (भा. ऋषि (म. स. ४.१२)। पाठभेद (भांडारकर संहिता)। ५.२४.१; वायु. ६७.७; विप्रचित्ति २. देखिये)। -'शिनीवाक'। सिकता निवावरी--एक वैदिक मंत्रद्रष्टी (ऋ. ९. | सिनीवाली-एक देवी, जिसका निर्देश ऋग्वेद के दो ८६.११-२०, ३१-४०)। सूक्तों में प्राप्त है (ऋ. २.३२, १०.१८४)। यह देवों सित--विश्वामित्र ऋषि का एक पुत्र । की बहन मानी गयी है। यह विस्तृत नितंबा, सुंदरभुजाओं २. तामस मन्वंतर का एक योगवर्धन | एवं सुंदर उँगलियोंवाली, बहुप्रसवा एवं विशाल परिवार सिद्ध-एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं प्राधा के पुत्रों की स्वामिनी है। संतानप्रदान करने के लिए इसका स्तवन में से एक था। | किया गया है। सरस्वती, राका, गुंगु आदि देवियों के २. एक देवगण, जो हिमालय पर्वत मैं कण्वाश्रम के साथ इसका आवाहन किया गया है। अथर्ववेद में इसे समीप निवास करता था (म. आ. ५७९%)। विष्णु की पत्नी कहा गया है (अ. वे. ८.४६ )। ३. एक मुनि, जिसने काश्यप ऋषि से निम्नलिखित बाद के वैदिक ग्रंथों में, राका एवं सिनीवाली का चंद्रमा विषयों पर तात्त्विक चर्चा की थी:-- १. अनुगीता; की कलाओं के साथ संबंध दिया गया है, जहाँ सिनीवाली .२. जननमरण; ३. जीवात्मा का गर्भप्रवेश; ४. मोक्षसाधन को नवचंद्रमा (प्रतिपदा) के दिन की, एवं राका को पूर्णिमा (म. आश्व. १६-२२)। शिलोच्छवृत्ति ब्राह्मण नामक | के दिन की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। किन्तु इस से भी इसने गंगामाहात्म्य के संबंध में चर्चा की थी (म. कल्पना का ऋग्वेद में कहीं भी निर्देश प्राप्त नहीं है । अनु. ६५.१९)। सिद्धपात्र--स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.६१ पौराणिक साहित्य में इस साहित्य में इसे अंगिरस् पाठ.)। ऋषि एवं श्रद्धा की तृतीय कन्या कहा गया है। इसका सिद्धसमाधि-कोल्लापूर का एक ब्राह्मण, जिसकी विवाह धातृ नामक आदित्य से हुआ था, जिससे इसे दर्श कथा पद्म में गीता के बारहवें अध्याय का माहात्म्य कथन (सायंकाल) नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। करने के लिए दी गयी है ( पन. उ. १८६ )। यह अत्यंत कृश थी, जिस कारण यह कभी दृश्यमान, सिद्धार्थ--दशरथ राजा का एक आमात्य (वा. रा. एवं कभी अदृश्य रहती थी। इसी कारण इसे 'दृश्यादृश्य' नामान्तर प्राप्त हुआ था (भा. ६.१८.३)। अयो. ३६)। २. एक यक्ष, जो मणिभद्र एवं पुण्यजनी के पुत्रों में २. कर्दमपत्नी देवहूति का नामान्तर । से एक था। ३. बृहस्पति एव शुभा की कन्या, जिसका विवाह कदम ३. एक राजा, जो शुद्धोदन राजा का पुत्र था (मत्स्य. | प्रजापति से हुआ था। अपने पति का त्याग कर, यह १७२.१२)। इसे पुष्कल नामांतर भी प्राप्त था। सोम से प्रेम करती थी ( वायु. ९०.२५)। ४. एक राजा, जो 'क्रोधवश' संज्ञक दैत्य के अंश सिंदूर-एक असुर । श्रीगणेश ने इसका वध कर, से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१.५५)। इसके रक्त का लेप स्वयं के शरीर पर लगा दिया था ५. खंद का एक सैनिक (म. श. ४४.५९)। | (गणेश, २.१३७ )। प्रा. च. १३१] १०४१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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