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________________ सात्यकि प्राचीन चरित्रकोश साध्य सरस्वती नदी के तट पर स्थित प्रदेश का राजा बनाया | ७. महाभोज । इन पुत्रों में से भजमान इसके पश्चात् (म. मो. ८.६९; सरस्वती देखिये)। राजगद्दी पर बैठा । __ अन्य पुराणों में इसके पुत्र का नाम निम्नप्रकार बताया सास्वत धर्म--इस धर्मपरंपरा का यह प्रमुख संवर्धक गया है :---जय (भा. ९.२४.१४); असंग (मत्स्य. माना जाता है। महाभारत में सात्वत-धर्म एवं उसकी ४६.२३); भूति (वायु. ९६.१००)। परंपरा सविस्तृत रूप में प्राप्त है, जहाँ ब्रह्मा से ले कर सात्यमुग्र-सामवेद का एक शाखा प्रवर्तक आचार्य, इक्ष्वाकु तक के इस पंथ के प्रमुख संवधकों की जानकारी जिसका निर्देश सामवेद के उपकर्मांग तर्पण में प्राप्त है। दी गयी है। हरिगीता नामक ग्रंथ में सात्वत धर्मतत्त्वों पाठभेद-शाट्यमुग्र, 'साह्यमुग्र'। की जानकारी दी गयी है (म. शां. ३३६.३१-४९)। सात्यमुग्री--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। ३. भगवान कृष्ण का एक नामांतर (म. शां. ३४२.७७)। - सात्ययज्ञ--एक आचार्य, जिसका निर्देश याशवल्क्य। इस के ही नाम से कृष्ण का एक उपासना सांप्रदाय सात्वतएवं वार्ण नामक आचार्यों के बीच हुए संवाद में प्राप्त है धर्म नाम से सुविख्यात हुआ था ( सात्वत २. देखिये)। (श. ब्रा. ३.१.१.४)। सामसुग्रीवि-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । सात्ययनि-सोमशुष्म नामक आचार्य का पैतृक नाम साधक-एक राक्षस, जो हिरण्याक्ष से हए देवासर (श. ब्रा. ११.६.२.१-३)। संग्राम में वायु के द्वारा मारा गया (पद्म. सृ. ७५)। २. एक आचार्यसमूह, जिसका निर्देश शैलन एवं साधन भौवन--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. .१०. कारीरादि नामक आचार्य परंपराओं के साथ प्राप्त है | १५७ )। (जै. उ. ब्रा. २.४.५)। साधित--विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार एवं सात्यरथि-(सू. निमि) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार सत्यरथ राजा का पुत्र था। साधु-एक वैश्य, जिसकी कथा 'सत्यनारायण-व्रत एवं उसके प्रसाद का माहात्म्य कथन करने के लिए सात्यहव्य वासिष्ठ--एक आचार्य, जो अत्यराति भविष्य एवं स्कंद पुराण में दी गयी है (भवि. प्रति. २. जानन्तपि एवं देवभाग श्रौतर्षि नामक आचार्यों का सम २९, स्कंद. रे. ३.)। वर्तमान स्कंदपुराण के रेवाखंड में कालीन था (ऐ. बा. ८.२३.९; ते. सं. ६.६.२.२)। इसकी कथा अप्राप्य है। उपर्युक्त आचार्यों में से देवभाग से इसका मंत्रपठन के संबंध में संवाद हुआ था। सत्यहव्य का वंशज होने से इसे | | साधु द्विज-शिव का एक अवतार, जो हिमालय | एवं मैनाक पर्वतों की तपस्या में बाधा डालने के लिए 'सात्यहव्य' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। उत्पन्न हुआ था। सात्राजित-शतानीक नामक आचार्य का पैतृक नाम इस अवतार के संबंध में एक चमत्कृतिपूर्ण कथा (ऐ. ब्रा. ८.२१.५; श. ब्रा. १३.५.४.१९)। शिवपुराण में प्राप्त है। एक बार हिमालय एवं मैनाक सात्वत--विष्णु का एक पार्षद । पर्वतों ने अत्यंत कठोर शिवोपासना प्रारंभ की। उस २. (सो. क्रोष्ट.) यादवकुलोन्पन्न एक राजा, जो | तपस्या को देख कर देव एवं ऋषियों के मन में डर भागवत के अनुसार आयु राजा का, वायु के अनुसार | उत्पन्न हुआ कि, अगर हिमालय को मोक्षप्राप्ति होगी, सत्व राजा का, मत्स्य के अनुसार जन्तु राजा का, एवं| तो इस संसार की अत्यंत हानि होगी। इस कारण, विष्णु के अनुसार अंश राजा का पुत्र था। यह स्वयं उनकी तपस्या में बाधा डालने की प्रार्थना उन्होंने एक 'वंशकर' राजा था, जो सात्वत राजवंश का मूल | शिव से की। पुरुष माना जाता है । सुविख्यात यादव योद्धा 'सात्यकि' | इस प्रार्थना के अनुसार, साधु नामक ब्राह्मण का वेष इसके ही वंश में उत्पन्न हुआ था। पुराणों में इसके नाम के | धारण कर शिव हिमालय के पास गया, एवं वहाँ शिव की लिए 'सात्वत' (भा. ९.२४.६) एवं 'सत्वत' (विष्णु. | यथेष्ट निंदा कर, इसने हिमालय को शिवभक्ति से निवृत्त ४.१३.१, ह. वं. १.३७.१) ये दोनों पाठ प्राप्त है। किया (शिव. शत. ३५)। इसके निम्नलिखित सात पुत्र थे:-- १. भजमान; २. साध्य-एक देवतासमूह, जो धर्म एवं साध्या के भाजि; ३. दिव्य; ४. वृष्णि; ५. देवावृध; ६. अंधक; पुत्र माने जाते हैं । छांदोग्योपनिषद् में जिन पाँच प्रमुख १०३४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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