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________________ सहदेव प्राचीन चरित्रकोश सहदेव जरासंध के वध के पश्चात् कृष्ण ने इसे मगध देश के युद्ध कर उसे परास्त किया था (म. आ. १८६६७; पंक्ति राजगद्दी पर बिठाया, एवं इससे मित्रता स्थापित की। | २.)। भारतीय युद्ध में यह एक अक्षौहिणी सेना के साथ । दक्षिण दिग्विजय--युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, पाण्डव पक्ष में शामिल हुआ था। युधिष्ठिरसेना के सात | यह दक्षिण दिशा की ओर दिग्विजय के लिए गया था प्रमुख सेनापतियों में यह एक प्रमुख था। इसके पराक्रम (भा. १०.७२.१३)। सर्वप्रथम इसने शूरसेन देश जीत का गौरवपूर्ण वर्णन संजय के द्वारा किया गया है। अंत कर मत्स्य राजा पर आक्रमण किया। उसे जीतने के बाद में यह द्रोण के द्वारा मारा गया (भा. ९.२२.९,१०.७२. इसने करूप देश के दन्तवन राजा को पराजित किया। ४८; म. द्रो. १०१.४.३)। पश्चात् इसने निम्नलिखित देशों पर विजय प्राप्त किया:परिवार-इसके सोमापि, मार्जारिप एवं मेघसंधि | पश्चिम मत्स्य, निषादभूमि, श्रेष्ठगिरि, गोरांग एवं नरराष्ट्र । नामक तीन पुत्र थे। इसकी मृत्यु के पश्चात् सोमापि इसी दिग्विजय इसने सुमित्र एवं श्रेणिवन् राजा पर (सोमाधि) मगध देश का राजा बन गया। विजय प्राप्त कि । पश्चात् यह कुन्तिभोज राजा के राज्य ६. (सो. वसु.) वसुदेव एवं ताम्रा के पुत्रों में से एक। | में कुछ काल तक ठहरा , जो पाण्डवों का मित्र था। ७. (सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो वायु के अनु- | पश्चात् इसने गर्मण्वती नदी के तट पर कृष्ण के शत्रु सार सुप्रतीत राजा का पुत्र था (व.यु. ९९.२८४)। इसे जंबूकासुर के पुत्र स युद्ध किया। अन्त में घोर संग्राम कर 'मरुदेव' नामान्तर भी प्राप्त था। इसने उसका वध किया। पश्चात यह दक्षिण दिशा की ८. (सो. क्षत्र.) एक राजा, जो वायु के अनुसार | ओर मुड़ा। वहाँ सेक एवं अपरसेक राजाओं को परास्त हर्यश्व राजा का, विष्णु के अनुसार हर्षवर्धन राजा का, कर, एवं उनसे करभार प्राप्त कर यह नर्मदा नदी के तट भागवत के अनुसार हव्यवन राजा का, एवं ब्रह्मांड के अनु पर आ गया। वहाँ अवंती देश के विंद एवं अनुविंद सार हव्यश्व राजा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम हीन राजाओं को पराजित कर, यह भोजकट नगरी में आ पहुंचा। अहीन, अर्दीन ) था (वायु. ९३.९; भा. ९.१७.१७; वहाँ के भीष्मक राजा के साथ इसने दो दिनों तक संग्राम (ब्रह्मांड. ३.६८.९)। किया, एवं उसे जीत लिया। ९. भास्करसंहितांतर्गत 'व्याधिसिंघुविमर्दनतंत्र 'नामक ग्रंथ का कर्ता। आगे चल कर कोसल एवं वेण्या तीर देश के १०. कुण्डल नगरी के सुरथ राजा का पुत्र । राजाओं को पराजित कर, यह कान्तारक देश में प्रविष्ट सहदेव पाण्डव--हस्तिनापुर के पाण्डु राजा का हुआ । वहाँ कान्तारक, प्राक्कोसल, नाटकेय, हैरबक, क्षेत्रज पुत्र, जो अश्विनों के द्वारा पाण्डुपत्नी माद्री के उत्पन्न मारुध, रम्यग्राम, नाचीन, अनयुक देश के राजाओं को इसने पराजित किया। पश्चात् इसी प्रदेश में स्थित हुए दो जुड़वे पुत्रों में से एक था (म. आ. ९०.७२)। वनाधिपतियों को जीत कर, इसने वाताधिप राजा पर यह पाण्डुपुत्रों में से पाँचवाँ पुत्र था, एवं नकुल का छोटा भाई था। स्वरूप, पराक्रम एवं स्वभाव इन सारे गुण आक्रमण किया, एवं उसे जीत लिया। वैशिष्टयों में यह अपने ज्येष्ठ माई नकुल से साम्य रखता। आगे चल कर पुलिंद राजा को परास्त कर यह दक्षिण था, जिस कारण नकुल-सहदेव की जोड़ी प्राचीन भारतीय दिशा की ओर जाने लगा। रास्ते में पाण्डय राजा के इतिहास में एक अभेद्य जोड़ी बन कर रह गयी (नकुल साथ इसका एक दिन तक घोर संग्राम हुआ, एवं इसने देखिये )। इसके जन्म के समय इसकी महत्ता वर्णन करने- | उसे परास्त किया। पश्चात् यह किष्किंधा देश जा पहुँचा, वाली आकाशवाणी हुई थी (म. आ. ११५.१७; भा. जहाँ मैंद एवं द्विविद नामक वानर राजाओं के साथ सात ९.२२.२८; ३०.३१)। दिनों तक युद्ध कर, इसने उन्हें परास्त किया। बाल्यकाल--इसका जन्म एवं उपनयनादि संस्कार पश्चात् इसने माहिष्मती नगरी के नील राजा के साथ अन्य पाण्डवों के साथ शतशंग पर्वत पर हुए थे। द्रोण सात दिनों तक युद्ध किया । इस युद्ध के समय, अग्नि ने ने इसे शस्त्रास्त्रविद्या, एवं शांतिपुत्र शुक्र ने इसे धनुर्वेद नील राजा की सहायता कर, इसकी सेना को जलाना प्रारंभ की शिक्षा प्रदान की थी। खड्गयुद्ध में यह विशेष निपुण | किया। इस प्रकार सहदेव की पराजय होने का धोखा था। द्रौपदीस्वयंवर के समय इसने दुःशासन के साथ | उत्पन्न हुआ। इस समय सहदेव ने शुचिर्भूत हो कर अग्नि १०२८ के उत्पन्न इसन को जान
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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