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सत्यकाम जाबाल
प्राचीन चरित्रकोश
सत्यतपस्
९)।
उपनिषद में प्राप्त है । इसके उपकोसल नामक शिष्य ने सत्यकामा--भङ्गकार राजा की कन्या, जो श्रीकृष्ण बारह वर्षों तक इसके आश्रम में रह कर अध्ययन किया। | की पत्नी थी। आगे चल कर सृष्टि के अंतिम सत्य का ज्ञान प्राप्त करने सत्यकेतु-(सो. क्षत्र.) एक महापराक्रमी राजा, के लिए उपकोसल अरण्य में गया। वहाँ उसके द्वारा | जो भागवत, विष्णु एवं वायु के अनुसार धर्म केतु राजा उपासित 'गार्हपत्य', 'अन्वाहार्य' एवं 'आहवनीय' | का पुत्र, एवं धृष्टकेतु राजा का पिता था (भा. ९.१७.८नामक तीन अनि मनुष्य रूप धारण कर उसके सम्मुख उपस्थित हुए, एवं उन्होंने सृष्टि का अंतिम तत्त्व क्रमशः २. एक यक्ष, जिसने उग्रसेन राजा की पत्नी पद्मावती सूर्य, चंद्र, एवं विद्यत् में रहने का ज्ञान इसे प्रदान किया। का हरण किया था ( गोभिल २. देखिये)।
आगे चल कर उपकोसल ने अग्नि देवताओं के द्वारा प्राम। सत्यघोष--एक शूद्र, जिसके पुत्रों के नाम गर एवं हुए आत्मज्ञान की कहानी इसे कथन की। उस समय उसे | सगर थे (पा. क्रि. ३)। प्राप्त इए ज्ञान की विफलता बताते हुए इसने उसे कहा, सत्यजित्-एक नाग, जो कश्यप एवं कद्र के पुत्रों में 'अग्नि देवताओं ने जो ज्ञान तुझे बताया है, वह अपूर्ण | से एक था। है । सृष्टि के अंतिम तत्त्व का दर्शन सूर्य, चंद्र एवं विद्युत् २. उत्तम मन्वन्तर का इंद्र (भा. ८.१.२४) । में नहीं, बल्कि मनुष्य के आँखों में दिखाई देनेवाले इस ३. एक यक्ष, जो कार्तिक माह के विष्णु के साथ भ्रमण संसार की प्रतिबिंब में ही पाया जाता है। तत्त्वज्ञ जिसे करता है। अमृत, अभय, एवं तेजःपुंज आत्मा बताते हैं, वह इस ४. एक यादव राजा, जो आनक एवं कंका का पुत्र था प्रतिबिंब में ही स्थित है ।
(भा. ९.२४.४१)। सत्यकाम के इस तत्त्वज्ञान में आधिभौतिक सृष्टि कनिष्ठ । ५. (सो. मगध. भविष्य.) एक राजा, जो सुनीथ राजा मान कर मानवी देहात्मा उससे अधिक श्रेष्ठ बताया गया का पुत्र, एवं विश्वजित् राजा का पिता था । वायु एवं ब्रह्मांड है। इस प्रकार बाह्य सृष्टि को छोड़ कर मानवी शरीर ।
में इसे सुनेत्र राजा का पुत्र कहा गया है (भा.९.२२.४९)। की ओर तत्त्वज्ञों की विचारधारा इसने केंद्रित की, यही
। ६. पांचाल देश के द्रुपद राजा का भाई, जो भारतीय इसके तत्त्वज्ञान की श्रेष्ठता कहीं जा सकती है।
युद्ध में द्रोण के द्वारा मारा गया (म. आ. परि. १.७८
७९; द्रो. २०.१६)। अन्य निर्देश--शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक उपनिषद
७. मरुतो के द्वितीय गण में से एक (वायु. ६७.१२४)। आदि ग्रंथों में इसके अभिमतों के उद्धरण अनेक बार पाये
सत्यज्योति-मरुतों के प्रथम.गण में से एक (वायु, जाते हैं। इनमें से शतपथ ब्राह्मण में यज्ञहोम के संबंध में इसका अभिमत पेंग्य ऋषि के साथ उद्धत किया गया
६७.१२३)। है (श. ब्रा. १३.५.३.१)। राज्याभिषेक के समय पठन
सत्यतपस्--उतथ्य नामक ऋषि का नामान्तर । इसे किये जानेवाले मंत्र का इसके द्वारा सूचित किया गया एक
'सत्यवत' नामान्तर भी प्राप्त था । यह सदैव सत्यभाषण विभिन्न पाठ ऐतरेय ब्राह्मण में प्राप्त है (ऐ. बा. ८.७)।
ही करता था, जिस कारण इसे 'सत्यतपस्' एवं 'सत्यव्रत' मैत्रि उपनिषद में भी इसके नाम का निर्देश प्राप्त है
नाम प्राप्त हुए थे। सत्य हमेशा सापेक्ष रहता है, इस तत्त्व (मै. उ. ६.५)। किन्तु अन्य उपनिषद ग्रंथों में निर्दिष्ट
का प्रतिपादन करने के लिए इसकी कथा देवी भागवत में सत्यकाम से यह आचार्य अलग प्रतीत होता है।
दी गयी है (दे. भा. ३.११)।
यह शुरु में अत्यंत आचारहीन एवं विद्याहीन पुरुष २. एक आचार्य, जो जानकि आयस्थूण नामक
था। किन्तु एक बार सहज ही इसके मुख से 'ऐ' नामक आचार्य का शिष्य था (बृ. उ. ६.३.१२ काण्व.)।
'सारस्वत बीजमंत्र का उच्चारण होने के कारण, यह सत्यकाम शैब्य-एक तत्त्वज्ञ आचार्य, जो आत्मज्ञान ऋषि बन गया, एवं सत्यकथन की विभिन्न मर्यादा इसे प्राप्त करने के हेतु पिप्पलाद के पास गये हुए पाँच ज्ञात हुई। आचार्यों में से एक था । प्रणव का ध्यान करने से आत्मज्ञान एक बार एक व्याध एक वराह का पीछा करता हुआ प्राप्त होता है, या नहीं, इस संबंध में इसने पिप्पलाद से | इसके पास आया, एवं इससे वराह का पता पूछने लगा। प्रश्न पूछे थे (प्र. उ. १.१, ५.१)।
इस समय अपने सत्यकथन से वराह की मृत्यु हो १००८