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आग्रायणेषु
आध्यम
...आग्रायणेषु - IV. 1. 102
देखें- भृगुवत्सा IV.I. 102 ...आइ... -I.li.83
देखें- व्याड्यरिभ्य: I. iii. 83 ...आइ... -I. iv. 48
देखें-उपान्वध्यावस: I. iv. 48 आङ्-I.iv.88
आङ शब्द (मर्यादा और अभिविधि अर्थ में कर्म- प्रवचनीय और निपातसंज्ञक होता है)। आङ्-II. . 12
(मर्यादा और अभिविधि अर्थ में विद्यमान) आङ् शब्द (पञ्चम्यन्त समर्थ सुबन्त के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होता है, और वह समास अव्ययीभावसंज्ञक होता
...आइ... -II. iii. 10
देखें- अपाइपरिभिः II. iii. 10 आङ्... - VI. 1.72
देखें-आइमाडो: VI. 1.72 . आङ् -VI. 1. 122
आङको (अच परे रहते संहिता के विषय में अनुनासिक आदेश होता है तथा उस अननासिक को प्रकतिभाव भी होता है)। ...आइ... -VIII. iv.2
देखें- अटकुप्वा VIII. iv.2 आङ:-I. iii. 20 . आङ् उपसर्ग से उत्तर (डुदा धातु से आत्मनेपद होता है, यदि वह मुख को खोलने अर्थ में वर्तमान न हो तो)। आड:-1. iii. 28 ,
आङ् उपसर्ग से उत्तर (अकर्मक यम् और हन् धातुओं से आत्मनेपद होता है)। आड:-I. iii.31 (स्पर्धा-विषय में) आङ् उपसर्ग से उत्तर (हृञ् धातु से आत्मनेपद होता है)।
आङ:-I. iii. 40 . आङ् उपसर्ग से उत्तर (क्रम धातु से आत्मनेपद होता है, उद्गगमन अर्थ में)। आड: - VII.1.65
आङ से उत्तर (यकारादि प्रत्ययों के विषय में लभ अङ्ग को नुम् आगम होता है)।
आड:-VII. iii. 119 (घिसंज्ञक अङ्ग से उत्तर) आङ् =टा के स्थान में (ना आदेश होता है स्त्रीलिङ्ग वाले शब्द को छोड़कर)। आङि-III. ii. 11
आङ पर्वक (ह धात से कर्म उपपद रहते ताच्छील्य गम्यमान होने पर अच्' प्रत्यय होता है)।
आङि -III. iii. 50 __ आङ् पूर्वक (रु तथा प्लु धातुओं से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से घञ् प्रत्यय होता है)। आडि -III: ill. 73 .. (युद्ध अभिधेय हो तो) आङ् पूर्वक (हे धातु को सम्पसारण तथा अप् प्रत्यय होता है)। आङि-VI. iv. 141 (मन्त्र-विषय में) आङ् = टा परे रहते (आत्मन् शब्द के आदि का लोप होता है)। आङि- VII. ii. 105
(आबन्त अङ्गको) आङ्=टा परे रहते (तथा ओस् परे रहत एकारादेश होता है)। ...आडो: -VI. 1. 92
देखें -ओमाडो: VI. 1. 92 आङ्गिरसे -IV.i. 107 (कपि तथा बोध प्रातिपदिकों से) आङ्गिरस गोत्र को कहना हो तो (यञ् प्रत्यय होता है)। ...आझ्यः -I. iii.75
देखें-समुदाझ्यः I. 11.75 ...आझ्याम् -I. iii. 59
देखें-प्रत्याभ्याम् I. iii. 59 ...आभ्याम् -I.iv.40
देखें-प्रत्याझ्याम् I. iv. 40 आइमाडोः -V.i.72
आङ् तथा माङ्को (भी छकार परे रहते तुक का आगम होता है,संहिता के विषय में)। ...आङ्यम...'-I.ili. 89
देखें-पादम्यायमाझ्यस० I. iii. 89 ...आङ्यम... -III. II. 142 देखें- सम्पृचानुरुधा० III. 1. 142