________________
असज्ञायाम्
असज्ञायाम् - VIII. Iv. 5
(प्र, निर्, अन्तर, शर, इस प्लक्ष, आम्र, कार्ष्ण, खदिर, पीयूक्षा इनसे उत्तर वन शब्द के नकार को) असञ्ज्ञाविषय में (तथा अपि ग्रहण से सञ्ज्ञाविषय में भी णकारादेश होता है)।
-
असज्ञाशाणयो: - VII. iii. 17
(परिमाणवाची शब्द अन्त में है जिस अङ्ग के, उस संख्यावाची शब्द के आगे उत्तरपद के अचों में आदि अच् को जित, णित् तथा कित् तद्धित प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती है), सञ्ज्ञा विषय एवं शाण शब्द उत्तरपद को छोड़कर। .....असती - L. Iv. 62
देखें - सदसती I. 1. 62
असत्यवचनस्य - II. iii. 33
असत्ववाचक = अद्रव्यवाचक (स्तोक, अल्प, कृच्छ्र, कतिपय इन शब्दों से करण कारक में तृतीया विभक्ति विकल्प से होती है)।
-
असत्वे - I. Iv. 57
द्रव्य अर्थ अभिव्यक्त न हो तो (चादिगणपठित शब्द निपातसंज्ञक होते हैं)।
... असन्... - VI. 1. 61
(वेद-विषय में) असृज् शब्द के स्थान में असन आदेश हो जाता है, (शस् प्रकार वाले प्रत्ययों के परे रहते) ।
..असन्तस्य - VI. iv. 14
देखें - अत्वसन्तस्य VI. Iv. 14
..असता - V. Iv. 103
देखें - अनसन्तात् V. Iv. 103 असन्धी - VI. II. 154
(तृतीयान्त से परे उपसर्गरहित मिश्र शब्द उत्तरपद को भी अन्तोदात्त होता है), सुलह करना गम्यमान न हो तो ।
... असमाप्तौ - V. iii. 67
देखें - ईषदसमाप्ती V. III. 67
असमासे - V. 1. 20
समास में वर्तमान न होने पर (निष्कादि' प्रातिपदिकों से 'तदर्हति पर्यन्त कथित सब अर्थों में ठक् प्रत्यय होता
है) ।
असमासे - VII. 1. 71
समास न हो तो (युज अङ्ग को सर्वनामस्थान परे रहते नुम् आगम होता है)।
72
असहाये
असमासे - VIII. I. 14
(उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर णकार उपदेश में है जिसके, ऐसे धातु के नकार को) असमास में (तथा अपि ग्रहण से समास में भी णकार आदेश होता है)। ... असम्प्रति... - II. 1. 6 देखें - विभक्तिसमीपसमृद्धि II. 1. 6 असम्बुद्धौ – VI. iv. 8
सम्बुद्धिभिन्न (सर्वनामस्थान) के परे रहते (भी नकारान्त अङ्ग की उपधा को दीर्घ हो जाता है)। असम्बुद्धी - VII. 1. 92
सम्बुद्धि परे नहीं है जिससे, ऐसे (सखि शब्द से उत्तर सर्वनामस्थान विभक्ति णिद्वत् होती है ) ।
असम्मतौ - III. 1. 128
अपूजित अर्थ में प्रणाय्य शब्द निपातन है)।
असरूप:
III. 1. 94
(धातु के अधिकार में उक्त ऐसे प्रत्यय, जिनका परस्पर समान रूप नहीं है, (विकल्प से बाधक होते है, स्त्री अधिकार में विहित प्रत्ययों को छोड़कर)। असर्वनामस्थानम् - VI. 1. 164
-
(अनु धातु से उत्तर वेद-विषय में) सर्वनामस्थान- भिन्न विभक्ति (उदात्त होती है)।
असर्वनामस्थाने - I. iv. 17
सर्वनामस्थान = सु, औ, जस्, अम्, और से भिन्न (सु आदि) प्रत्ययों के परे रहते (पूर्व की पद संज्ञा होती है) । असर्वविभक्तिः - I. 1. 37
जिससे सब विभक्तियाँ उत्पन्न नहीं होतीं, ऐसे (तद्धितप्रत्ययान्त) शब्द (भी अव्ययसंज्ञक होते है ) । असवर्णे - VI. 1. 123
सवर्णभिन्न (अच्) परे हो तो (इक् को शाकल्य आचार्य मत में प्रकृतिभाव हो जाता है, तथा उस इक् के स्थान में ह्रस्व भी हो जाता है)।
असवर्णे - VI. iv. 78
1
(वर्णान्त तथा उवर्णान्त अभ्यास को) सवर्णभिन्न (अच्) परे रहते (इयङ् और उवङ् आदेश होते है)। असहाये - V. ill. 52
'अकेला' अर्थ में वर्तमान (एक प्रातिपदिक से आकिनिच् प्रत्यय तथा कन् और लुक होते हैं)।