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अभिविध्योः
अभ्यासस्य
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अभ्यस्तात् -VII.1.4
अभ्यस्त अङ्ग से उत्तर (प्रत्यय के अवयव झकार के स्थान में अत् आदेश हो जाता है)। । अभ्यस्तात् - VII. I. 78 (अभ्यस्त अङ्ग से उत्तर) शतृ को (तुम् आगम नहीं होता
अभ्यस्तानाम् - VI.1.183
(अजादि अनिट् लसार्वधातुक परे हो तो) अभ्यस्तसञ्जकों के (आदि को उदात्त होता है)। अभ्यादाने - VIII. ii. 87 प्रारम्भ में वर्तमान (ओम शब्द को प्लुत उदात्त होता
...अभिविध्योः - II.i. 12
देखें - मर्यादाभिविध्योः II.i. 12 ...अभिव्यक्तिषु -VIII. I. 15
देखें - रहस्यमर्यादा० VIII. i. 15 ...अभीक: - V.ii. 74
देखें- अनुकाभिकाभीक: V.ii.74 अभे: - VI. ii. 185
अभि उपसर्ग के आगे (उत्तरपद स्थित मुख शब्द को अन्तोदात्त होता है)। अभे: - VII. I. 25
अभि उपसर्ग से उत्तर (भी अर्द धातु से निष्ठा परे रहते इट् आगम नहीं होता, सन्निकट अर्थ में)। अभ्यम् - VIII. I. 30 (युष्मद, अस्मद् अङ्ग से उत्तर भ्यस् के स्थान में भ्यम् अथवा) अभ्यम् आदेश होता है । ...अभ्यम...-III. ii. 157
देखें-जिदक्षि० III. ii. 157 अभ्यमित्रात् -V.ii. 17
(द्वितीयासमर्थ) अभ्यमित्र प्रातिपदिक से (पर्याप्त जाता है' अर्थ में छ, यत् और ख प्रत्यय होते हैं)। . अभ्यवपूर्वस्य - VI. 1. 27
अभि तथा अव पूर्व वाले (श्यैङ् धातु) को (निष्ठा परे रहते विकल्प से सम्प्रसारण होता है)। ...अभ्यस्त... -III. iv. 107
देखें-सिषभ्यस्त III. iv. 107 अभ्यस्तम् -VI.1.5
(धातुओं के एकाच को किये जाने वाले द्वित्व रूपों में दोनों की) अभ्यस्त संज्ञा होती है । ...अभ्यस्तयो:-VI. iv. 112
देखें-स्नाभ्यस्तयो: VI. iv. 112 अभ्यस्तस्य-VI.i. 32 (सन्परक तथा चङ्परक णि के परे रहते हृञ् धातु को सम्प्रसारण हो जाता है,तथा) अभ्यस्त का निमित्त जो (हे धातु), उसको (भी सम्प्रसारण हो जाता है)। अभ्यस्तस्य-VII. III. 87
अभ्यस्त-सज्जक अङ्गकी (लघु उपधा इक को अजादि पित् सार्वधातुक परे रहते गुण नहीं होता)।
...अभ्यावृत्ति... - V. iv. 17 देखें-क्रियाभ्यावृत्तिगणने V. iv. 17
. अभ्यासः -VI.1.4 धातुओं के एकाच् को किये गये द्वित्व में प्रथमरूप अभ्यास-सञ्जक होता है । अभ्यासलोपः -VI. iv. 119 (घुसज्ञक अङ्ग एवं अस् को एकारादेश तथा) अभ्यास का लोप होता है; (कित,डित् हि परे रहते)। अभ्यासस्य-III. 1.6 (मान, बध, दान् और शान् धातुओं से सन् प्रत्यय होता है,तथा) अभ्यास के विकार को दीर्घ आदेश होता है)। अभ्यासस्य -VI.1.1 (तुज् के प्रकारवाली धातुओं के) अभ्यास को (दीर्घ होता ह) अभ्यासस्य-VI. 1. 17 (लिट् लकार के परे रहते दोनों अर्थात् वचिस्वपियजादि तथा पहिज्यादि के) अभ्यास को (सम्प्रसारण हो जाता है)। अभ्यासस्य - VI. iv.78 (इवर्णान्त,उवर्णान्त) अभ्यास को (सवर्णभिन्न अच् परे रहते इयङ्ठवङ् आदेश होते है)। अभ्यासस्य -VII. iv.4 (पा पाने' अङ्गकी उपधा का चङ्परक णि परे रहते लोप तथा) अभ्यास को (ईकारादेश होता है)।