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अप्राणिषु
अप्राणिषु - VIII. iii. 72 (अनु, वि, परि, अभि, नि उपसगों से उत्तर स्यन्दू धातु सकार को मूर्धन्य आदेश होता है), यदि प्राणी का कथन न हो रहा हो तो ।
अप्रातिलोम्ये -VIII. i. 33
अनुकूलता गम्यमान हो तो (अङ्ग शब्द से युक्त तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता) ।
अप्राप्रेडितयो: - VIII. iii. 49
प्र तथा आम्रेडित से भिन्न (कवर्ग तथा पवर्ग) परे हो तो (वेद विषय में विसर्जनीय को विकल्प से सकारादेश होता है) ।
अप्लुतवत् - VI. 1. 125
(अनार्ष इति के परे रहते प्लुत) अप्लुत के समान हो जाता है।
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अप्लुतात् - VI. 1. 109
अप्लुत (अकार) से उत्तर (अप्लुत अकार परे रहते रु के रेफ को उकार आदेश होता है, संहिता के विषय में) । अप्लुते :
- VI. i. 109
(प्लुतभिन्न अकार से उत्तर) प्लुतभिन्न (अकार) परे रहते (रु के रेफ को उकार आदेश होता है, संहिता के विषय में) । अबहु..... - V. iv. 73 देखें
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अबहुगणात् V. iv. 73
अबहुगणात् - Viv. 73.
बहु तथा गण शब्द अन्त में नहीं है जिसके, ऐसे (संख्येय 'अर्थ में वर्तमान बहुव्रीहि समास-युक्त) प्रातिपदिक से (डच् प्रत्यय होता है)।
अबहुव्रीहि... .. - VI. iii. 46
देखें - अबहुव्रीह्यशीत्यो: VI. iii. 46 अबहुव्रीह्यशीत्योः -VI. iii. 46
बहुव्रीहि समास तथा अशीति शब्द से भिन्न (संख्यावाचक) शब्द उत्तरपद हो तो, (द्वि तथा अष्टन् शब्दों को आकारादेश होता है)।
अबह्वच् - VI. ii. 138
(शिति शब्द से उत्तर नित्य ही) जो अबह्वच् अर्थात् एक या दो अच् वाला (उत्तरपद), उसको (बहुव्रीहि समास में प्रकृतिस्वर होता है, भसत् शब्द को छोड़कर) ।
भसत् = सूर्य, मांस, बतख, समय, डोंगी, योनि । अबोधने - II. iv. 46
ज्ञान अर्थ से भिन्न अर्थ में वर्तमान (इण् के स्थान में गम् आदेश होता है, णिच् परे रहते ) ।
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अभाषितपुंस्कात्
अब्राह्मण... - V. iii. 114 देखें
- अब्राह्मणराजन्यात् V. iii. 114 अब्राह्मणराजन्यात् - V. iii. 114 (वाहीक देशविशेष में शस्त्र से जीविका कमाने वाले पुरुषों के) ब्राह्मण और राजन्यभिन्न समूहवाची प्रातिपदिकों से ( यङ् प्रत्यय होता है) ।
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अभक्ष्य... - IV. iii. 140 देखें - अभक्ष्याच्छादनयो: IV. iii. 140 अभक्ष्याच्छादनयोः - IV. iii. 140,
(षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से) भक्ष्य तथा आच्छावर्जित ( विकार और अवयव) अर्थों में (लौकिक प्रयोगविषय में विकल्प से मयट् प्रत्यय होता है ) । अभविष्यति - VII. iii. 16
(सङ्ख्यावाची शब्द से उत्तर वर्ष शब्द के अचों में आदि अच् को ञित् णित् अथवा कित् तद्धित प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती है, यदि वह तद्धित प्रत्यय) भविष्यत् अर्थ हुआ हो तो ।
अभसत् - VI. ii. 138
(शिति शब्द से उत्तर नित्य ही जो अबह्वच् उत्तरपद, उसको बहुव्रीहि समास में प्रकृतिस्वर होता है), भसत् शब्द को छोड़कर।
अभागे - I. iv. 90
(लक्षणेत्थम्भूताख्यान० ' I. iv. 89 सूत्र पर कहे गये अर्थों में) भाग अर्थात् हिस्सा अर्थ को छोड़कर (अभि शब्द की कर्मप्रवचनीय और निपात संज्ञा होती है)।
अभाव... - VI. iv. 168
देखें - अभावकर्मणोः VI. iv. 168 अभावकर्मणोः - VI. iv. 168
भाव तथा कर्म से भिन्न अर्थ में वर्तमान ( यकारादि तद्धि के परे रहते भी अन्नन्त भसञ्ज्ञक अङ्ग को प्रकृतिभाव हो जाता है।
अभाषितपुंस्कात् - VII. iii. 48
अभाषितपुंस्क = एक ही अर्थ में अर्थात् एक ही प्रवृत्ति निमित्त को लेकर नहीं कहा है पुंल्लिङ्ग अर्थ को जिस शब्द ने, ऐसे शब्द से विहित (प्रत्ययस्थित ककार से पूर्व आकार के स्थान में जो अकार, उसको नञ्पूर्व होने पर और पूर्व होने पर भी उदीच्य आचार्यों के मत में इकारादेश नहीं होता) ।