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अपीलो:
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अपोनप्पानप्तृभ्याम् ।
अपीलो: - VI. ii. 120
अपृक्तस्य-VI.i.65 पीलु शब्द को छोड़कर (जो इगन्त पूर्वपद शब्द,उनको अपृक्तसज्ञक (वि) का (लोप होता है)। 'वह' शब्द उत्तरपद रहते दीर्घ होता है)।
अपृक्ते - VII. iii. 91 अपुत्रस्य-VII. iv. 35
(ऊर्गुज् अङ्ग को) अपृक्त (हल् पित् सार्वधातुक) परे पुत्र शब्द को छोड़कर (अवर्णान्त अङ्ग को वेद-विषय में रहते (गुण होता है)। क्यच् परे रहते जो कुछ कहा है, वह नहीं होता)।
अपृक्ते - VII. iii. 96 ...अपूपादिभ्यः - V.i.4
(अस् धातु तथा सिच से उत्तर) अपृक्त (हलादि सार्वदेखें - हविरपूपादिभ्यः V.i.4
धातुक) को (ईट् आगम होता है)। अपूरणी... -VI. iii. 33
अपृथिवी... - VI. ii. 142 देखें - अपूरणीप्रियादिषु VI. iii. 33
देखें- अपृथिवीरुद्र० VI. ii. 142 अपूरणीप्रियादिषु - VI. iii. 33
अपृथिवीरुद्रपूषमन्थिषु-VI. ii. 142 (एक ही अर्थ में अर्थात् एक ही प्रवृत्ति-निमित्त को लेकर देवतावाची द्वन्द्व समास में अनुदात्तादि उत्तरपद रहते) भाषित = कहा है पुल्लिग अर्थ को जिस शब्द ने, ऐसे पथिवी.रुद्र.पषन.मन्थी-इन शब्दों को छोड़कर (एक ऊवजित भाषितपुंस्क स्त्रीलिंग के स्थान में पुंल्लिगवाची साथ पूर्व तथा उत्तरपद को प्रकृतिस्वर नहीं होता है)। शब्द के समान रूप हो जाता है),पूरणी तथा प्रियादिवर्जित
ता ह),पूरणा तथा प्रयादिवाजत अपे-III. ii.50 . (स्त्रीलिंग समानाधिकरण) उत्तरपद परे हो तो। (क्लेश तथा तमस् कर्म उपपद रहते) अपपूर्वक (हन् अपूर्वनिपाते -1. ii. 44
धातु से ड प्रत्यय होता है)। (समास विधीयमान होने पर नियत विभक्ति वाला पद भी उपसर्जन संज्ञक होता है),उपसर्जन के पूर्वप्रयोग वाले अपपूर्वक (तथा चकार से विपूर्वक लष् धातु से भी कार्य को छोड़कर।
घिनुण प्रत्यय होता है)।
अपेत... -II. .37 अपूर्वपदात् - IV. 1. 140 अविद्यमान पूर्वपद वाले (कुल) शब्द से विकल्प करके ।
देखें - अपेतापोढमुक्त० II. 1. 37 यत् और ढकञ् प्रत्यय होते हैं,पक्ष में ख)।
अपेतापोढमुक्तपतितापत्रस्तै: - II.i. 37
(थोड़े से पञ्चम्यन्त सुबन्त) अपेत, अपोढ, मुक्त,पतित, अपूर्वम् - VIII. I. 47
अपत्रस्त - इन (समर्थ सुबन्तों) के साथ (विकल्प से जिससे पूर्व कोई शब्द विद्यमान नहीं है,ऐसे (जातु शब्द समास को प्राप्त होते हैं और वे तत्पुरुष होते है)। से युक्त तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता )।
...अपो: - II. iv. 38 अपूर्वक्चने - IV.ii. 12
देखें- छत्रपो: II. iv. 38 (कौमार शब्द) अपूर्ववचन=जिसका पाणिग्रहण पहले ...अपो: - II. iv.56 न हुआ हो, ऐसे अर्थ को व्यक्त करने में (अण् प्रत्ययान्त देखें- अघत्रपोः II. iv.56 निपातन किया जाता है)।
...अपोढ...- II.i.37 ...अपूर्वस्य-VIII. iii. 17
देखें - अपेतापोढमुक्त II. I. 37 देखें- भोभगो० VIII. iii. 17
अपोनप्त... -IV.ii. 26 अपृक्तः -I. I. 41
देखें-अपोनप्पान्नप्तृभ्याम् IV.ii. 26 - (एक = असहाय अल् वाला प्रत्यय) अपृक्त संज्ञक अपोनप्वपान्नप्तृभ्याम् - IV.ii. 26 होता है।
देवतावाची अपोनपात् तथा अपांनपात् शब्दों से अपृक्तम् -VI. .66
.. (षष्ठ्यर्थ में घ प्रत्यय होता है,और घ प्रत्यय के सन्नियोग (हलन्त, ड्यन्त तथा आबन्त दीर्घ से उत्तर सु, ति तथा से इन शब्दों को क्रमशः अपोनप्त और अपान्नप्तृ रूपों सि का) जो अपृक्त (हल) उसका (लोप होता है)। का आदेश भी होता है)।