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हलि-VII. 1.81
(उकारान्त अङ्ग को लुक् हो जाने पर) हलादि (पित् सार्वधातुक) परे रहते (वृद्धि होती है)। . हलि- VIII. ii. 77
हल परे रहते (भी रेफान्त एवं वकारान्त धात का जो इकु, उसको दीर्घ होता है)। हलि-VIII. iii. 22
(भो,भगो,अघो तथा अवर्ण पूर्ववाले पदान्त यकार का) हल् परे रहते (सब आचार्यों के मत में लोप होता है)। हलिसक्थ्यो :- Viv. 121 (नज,दुस् तथा सु शब्दों से उत्तर जो) हलि तथा सक्थि शब्द,तदन्त (बहुव्रीहि) से (समासान्त अच प्रत्यय विकल्प से होता है)। ...हलिषु-III. 1. 117
देखें-मुझकल्क III. 1. 117 ...हलो:-III. 1. 125
देखें-ऋहलोः III. I. 125 ...हलो:- VI. iv. 34
देखें- अहलो: VI. iv. 34 ...हलौ-I. 1. 10
देखें- अहालौ I. 1. 10 हलङ्याय-VI.1.66
हलन्त, ड्चन्त तथा आबन्त (दीर्घ) से उत्तर (स.ति.सि का जो अपृक्त हल, उसका लोप होता है)। हलपूर्वात्-VI.1.168
हल पूर्व में है जिसके, (ऐसा जो उदात्त के स्थान में यण) उससे परे (नदीसञक प्रत्यय तथा अजादि सर्वनाम स्थानभिन्न विभक्ति को उदात्त होता है)। ...हकि...-III. I. 129 -
देखें- मानहविर्निवास III. I. 129 हकि...-.1.4
देखें-हविरपूपादिभ्यः V.i.4 हविरपूपादिश्य-v.i.4
हवि विशेषवाची तथा 'अपप' इत्यादि प्रातिपदिकों से (क्रीत अर्थ से पूर्व पूर्व पठित अर्थों में विकल्प से यत् प्रत्यय होता है)।
हविष-II. i. 69
(देवता सम्प्रदान है जिसका, उस क्रिया के वाचक प्र पूर्वक इष धातु तथा बू धातु के कम) हवि के वाचक शब्द से (षष्ठी विभक्ति होती है)। ...हविष्याभ्यः-IV. iv. 122
देखें-रेवतीजगतीहविष्याभ्य: IV. iv. 122 . हव्ये-III. ii. 66
हव्य (सुबन्त) उपपद रहते (वेदविषय में वह धातु से ज्युट् प्रत्यय होता है, यदि 'वह' धातु पद के उत्तर अर्थात् मध्य में वर्तमान न हो तो)।
हव्य = आहुति, आहुति के रुप में दिया जाने वाला . द्रव्य,घी। हशश्वतो:- III. ii. 116
ह,शश्वत् -ये शब्द उपपद हों तो (धातु से अनद्यतन परोक्ष भूतकाल में लङ् प्रत्यय होता है और चकार से . लिट भी होता है)। हशि-VI.i. 110 हश प्रत्याहार के परे रहते (भी अकार से उत्तररु के रेफ को उकार आदेश होता है, संहिता के विषय में)। ...हसो:-III. ii. 62
देखें- स्वनहसोः III. iii. 62 ...हस्त..- IV. iii. 34
देखें-अविष्ठाफल्गुन्यनु IV. iii. 34 हस्तात्- V. ii. 133
हस्त शब्द से (मत्वर्थ में इनि प्रत्यय होता है.जाति वाच्य हो तो)। हस्तादाने-III. iii. 40
(चोरी से भिन्न) हाथ से ग्रहण करना गम्यमान हो (तो चिञ् धातु से कर्तृभिन्न कारक और भाव में घज प्रत्यय होता है)। ...हस्ताभ्याम्-v.i.97
देखें- यथाकथाचहस्ताभ्याम् V.i.97 हस्ति ... -III. ii. 54
देखें- हस्तिकपाटयोः III. ii. 54 ...हस्ति... - IV. ii. 46
देखें-अचितहस्ति .1.46